झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से धनशोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) कानून को लेकर चर्चा तेज हो गई है। विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार ने पीएमएलए को इतना कड़ा कानून सिर्फ विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया है। जबकि सच्चाई यह है कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान 2002 में बनाया गया पीएमएलए कानून मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के दौरान जुलाई 2005 में लागू हुआ। पीएमएलए कानून के जिन प्रविधानों की चुभन विपक्षी नेताओं को रही है, उन्हें संशोधित कर धारदार बनाने का काम भी 2009 और 2012 में यूपीए सरकार के दौरान किया गया।
धनशोधन मामले में कसा शिकंजा
पीएमएलए के कठोर कानून के तहत पहली बार अक्तूबर 2009 में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और उनके साथ कई मंत्रियों पर शिकंजा कसा गया। 2010 के बाद 2जी घोटाले और कोयला खनन घोटाले समेत तमाम घोटालों में आरोपियों के खिलाफ धनशोधन मामले का शिकंजा कसा।पीएमएलए कानून के तहत ए राजा समेत तमाम बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने 2012 में संशोधन कर इसे और भी कड़ा बना दिया और इसके आयाम को और बड़ा कर दिया।
पीएमएलए कानून की जरूरत बताई थी
2022 में पीएमएलए के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में चिदंबरम के 2012 में संसद में दिए बयान का भी हवाला दिया था। मजेदार बात यह है कि इन याचिकाकतार्ओं में चिदंबरम के बेटे और कांग्रेस के सांसद कार्ति चिदंबरम भी शामिल थे। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 1999 में वाजपेयी सरकार में तत्कालीन वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा के संसद में दिए बयान का भी हवाला दिया, जिसमें पहली बार उन्होंने कालेधन पर लगाम लगाने के लिए पीएमएलए कानून की जरूरत बताई थी और 2002 में यह कानून पास भी किया गया था। शुरुआत में इस कानून में आतंकी लेन-देन, तस्करी से जुड़े मामले शामिल थे।

2005 में इसे लागू करने के बाद सभी बैंकिंग व वित्तीय संस्थाओं के लिए संदिग्ध लेन-देन की रपट वित्तीय खुफिया इकाई (एफआइयू) को भेजना अनिवार्य कर दिया गया, ताकि बैंकिंग चैनल पर नजर रखा जा सके। 2009 में किए गए संशोधन में भ्रष्टाचार निरोधक कानून जैसे कई कानूनों को पीएमएलए के दायरे में ला दिया गया और ईडी को आरोपियों की संपत्ति को जब्त करने और उन्हें गिरफ्तार करने के अधिकार दिए गए।
वर्ष 2012 में ईडी को मिला अधिकार
2012 में 28 कानूनों के तहत दर्ज केस में ईडी को पीएमएलए के तहत जांच करने का अधिकार दे दिया गया, जबकि पहले सिर्फ छह कानूनों में ईडी को यह दिया गया था। पी चिदंबरम ने न सिर्फ पीएमएलए कानून को धारदार बनाया, बल्कि ईडी को मजबूत बनाने की भी नींव रखी। 2010 तक पूरे देश में ईडी में कर्मचारियों और अधिकारियों की लगभग 600 पद थे। यानी बड़े पैमाने पर धनशोधन के मामलों की जांच के लिए जरूरी संसाधन ईडी के पास नहीं थे। चिदंबरम ने वित्त मंत्री रहते हुए ईडी में स्वीकृत पदों की संख्या लगभग चार गुना बढ़ाते हुए 2200 से अधिक कर दी। अधिकारियों व कर्मचारियों की इतनी बड़ी फौज के साथ ईडी पूरे देश में एक साथ कई मामलों की जांच करने में सक्षम बन सका है।
यूपीए ने कानून में किया संशोधन
भारत में पीएमएलए को उद्भव के लिए यह जानना जरूरी है कि 1998 में भारत पहली बार वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) के एशिया सब रीजनल समूह का सदस्य बना और इसी कारण तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को नया पीएमएलए कानून लाना पड़ा।
एक जुलाई 2005 में यूपीए सरकार द्वारा पीएमएलए को लागू करने के बाद 2006 में भारत को एफएटीएफ को एक पर्यवेक्षक के रूप में आमंत्रित किया गया था। इसके बाद एफटीएफ ने भारत को सदस्यता देने के लिए तैयार हुआ, लेकिन उसके पहले पीएमएलए कानूनों को मजबूत करने की दरकार थी, जिसे यूपीए सरकार ने 2009 में कानून में संशोधन कर पूरा किया।