एक सत्यकथा है जो देश के लगभग प्रत्येक व्यक्ति को मालूम है। प्रसिद्ध किस्सा एक महत्वाकांक्षी हिंदुस्तानी के बारे में बताता है कि उसने अंग्रेजी जुबान की बारीकियों में महारत हासिल कर ली थी, पश्चिमी शैली का नाच सीख लिया था और वह छुरी-कांटे की मदद से खाने तक का अभ्यस्त हो चुका था। अपने इस नए तौर-तरीकों से लैस होकर उसने इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई की और एक काबिल बैरिस्टर बन गया। तब भी, सूट और टाई पहने, कानून में दीक्षित इस नौजवान को दक्षिण अफ्रीका के अंग्रेजी उपनिवेश की ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था, क्योंकि वह उस तीसरे दर्जे के डिब्बे, जिसमें उस जैसे अश्वेतों से यात्रा करने की अपेक्षा की जाती थी, में बैठने के बजाय प्रथम श्रेणी के डब्बे में बैठने की जिद कर रहा था। उस नौजवान का नाम था मोहनदास करमचंद गांधी। सब जानते हैं कि बाद में वही गांधी भारत से अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ फेंकने के सूत्रधार बने।
संसद में प्रधानमंत्री का विपक्ष के खिलाफ बयान अनुचित
अब ताजा बात करते हैं। इस बार संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई बहस के जवाब में प्रधानमंत्री ने सदन जो कुछ कहा, वह निश्चित रूप से आत्मविकास के साथ अहंकार से भी भरा था। प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर करारा आक्रमण करते हुए कहा कि लगता है विपक्ष ने लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहने का संकल्प ले लिया है। उन्होंने विपक्षियों से अहंकारपूर्वक दावा करते हुए कहा कि विपक्षी अगले चुनाव के बाद दर्शकदीर्घा में बैठे दिखाई देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि एक ही प्रॉडक्ट (राहुल गांधी) को बार-बार लॉन्च करने की कोशिश में न सिर्फ कांग्रेस की दुकान पर ताला लगाने की स्थिति आ गई है, बल्कि विपक्षी गठबंधन का अलाइनमेंट ही टूट गया है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ठीक कहते थे कि सत्ता का खेल तो चलता रहेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी, पर यह देश चलते रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र कायम रहना चाहिए। लेकिन, आज राजनीति और राजनीतिज्ञों की जो स्थिति हो गई है, उसमें क्या ऐसा कुछ हो रहा है?
सत्तारूढ़ दल विपक्ष का अर्थ केवल राहुल गांधी ही मानता हैं
आज सत्तारूढ़ दल यही मानता है कि विपक्ष का अर्थ केवल राहुल गांधी ही हैं, इसलिए सारा आरोप-प्रत्यारोप उनके ही नाम से लगाया जाता है अथवा हिंदू-मुसलमान के नाम पर होता है। फिर सत्तारूढ़ दल का यह भी कहना कि राहुल गांधी को कांग्रेस बार-बार लॉन्च क्यों करती है। सच तो है कि यह उनका अंदरूनी मामला है, लेकिन प्रश्न यह है कि यदि राहुल गांधी विपक्ष की राजनीति करने में फेल रहे हैं, तो फिर राहुल गांधी से सत्तारूढ़ को इतना डर किस बात का कि अभी कांग्रेस द्वारा आयोजित ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में इतनी भीड़ क्यों उमड़ रही है? असम में राहुल गांधी के प्रति इतना डरावना बयान मुख्यमंत्री ने क्यों दिया और न्याय यात्रा को क्यों बाधित किया गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी ने असम के मुख्यमंत्री पर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, वे सही थे? आखिर सत्तारूढ़ के लिए राहुल गांधी इतने महत्वपूर्ण क्यों हो गए, जवाहरलाल नेहरू के लिए सत्तारूढ़ दल इतनी अपमानजनक बातें क्यों करता है?
पंडित नेहरू के बयान को सही अर्थ में नहीं लिया गया
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भारतीय को आलसी और कम बुद्धिमान मानते थे। सांसद गौरव गोगोई ने इसका खंडन करते हुए विरोध जताया। गूगल ने बताया है कि सच में पं. जवाहरलाल नेहरू ने क्या कहा था। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1959 में स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में लाल किले की प्राचीर से कहा था कि ‘भारत में मेहनत करने की आदत कमोबेश नहीं रही है। यह हमारा दोष नहीं है, कई बार इस तरह की आदतें बन जाती हैं, लेकिन तथ्य ये है कि हम उतनी मेहनत नहीं करते हैं, जितनी यूरोप, जापान, चीन, रूस या अमेरिका के लोग करते हैं।
ऐसा नहीं है कि ये देश किसी जादू से रातों रात विकसित हो गए हैं। ये देश मेहनत और अपने कौशल के बूते विकसित हुए हैं। हम भी मेहनत और अक्ल से बढ़ सकते हैं, इसके सिवा कोई और चारा नहीं है। हम किसी जादू से आगे नहीं बढ़ सकते, क्योंकि दुनिया चलती है इंसान के काम से। इंसान की मेहनत से सारी दुनिया की दौलत पैदा होती है। चाहे जमीन पर किसान करता है या कारखाने में या दुकान में। पं. नेहरू ने कहा था कि कुछ बडे़ ऑफिसर दफ्तरों में बैठकर इंतजाम करते हैं, वे दौलत पैदा नहीं करते। दौलत किसान और कारीगर अपनी मेहनत से पैदा करता है, इसलिए हमें अपनी मेहनत को और बढ़ाना है।’
सच तो यह है कि वर्षों की गुलामी के बाद किसी की भी क्षमता कम हो जाती है, लेकिन आजादी के बाद जनता के स्वाभिमान को जगाना नेताओं का कर्तव्य हो जाता है। इसलिए पंडित नेहरू ने यूरोप, जापान ,अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र के नागरिकों जैसा मेहनतकश होने का उदाहरण दिया होगा। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण के अधूरे अंश को संदर्भ से काट कर जिस तरह उद्धृत किया और साफ तौर पर यह साबित करने की कोशिश की कि नेहरू ने भारतीयों को आलसी बता कर अपमान किया, वह पूरी तरह गलत है।
गलत नीयत से गलत तरीके से बात पेश करने और अहंकार से भरी भाषा बोलने वालों को अंग्रेजों का अहंकार तोड़ने वाले गांधी को नहीं भूलना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। यहां लिखी बातें उनके निजी विचार हैं।)