PM Modi Lok Sabha Speech LIVE: पीएम नरेंद्र मोदी का लोकसभा में संबोधन शुरू हो गया है। संविधान को लेकर हुई घंटों की चर्चा के बाद अब पीएम मोदी भी अपने विचार रख रहे हैं। उनकी तरफ से एक तरफ देश के नागरिकों का जिक्र हो रहा है दूसरी तरफ वे संविधान निर्माताओं का भी आभाव व्यक्त हुआ है।

पीएम मोदी की पूरी स्पीच यहां पढ़िए-

हम सभी के लिए, हम देशवासियों के लिए इतना ही नहीं, विश्व के लोकतंत्र नागरिकों के लिए भी, यह बहुत ही गौरव का पल है। बड़े गर्व के साथ लोकतंत्र के उत्सव को मनाने का अवसर है। सबसे विशाल लोकतंत्र की यह यात्रा है। यह 75 वर्ष पूर्ण होने पर उत्सव मनाने का पल है। मेरे लिए खुशी की बात है कि संसद भी इस पर शामिल होकर अपने विचार रख रहा है।

मैं देश के सभी लोगों का कोटी कोटी नमन करता हूं जिन्होंने इस नई व्यवस्था को जीकर दिखाया है। संविधान निर्माताओं की जो भावना थी, भारत का नागरिक हर कसौटी पर खरा उतरा है। इसलिए भारत का नागरिक ही सर्वधिक अभिनंदर का आभारी है। संविधान निर्माता इस बात को लेकर जागरूक थे कि भारत का जन्म 1947 में हुआ है, वे यह नहीं मानते थे कि भारत को उसका लोकतंत्र कोई 1950 में मिला है, वो तो मानते थे कि हजार साल की भारत की यात्रा रही, वो उसके बारे में जानते थे।

पीएम ने आगे कहा कि भारत का लोकतंत्र बहुत ही समृद्ध रहा है, विश्व के लिए प्रेरित रहा है। इसी वजह से भारत आज मर्दर ऑफ डेमेक्रेसी के रूप में जाना जाता है। हम सिर्फ विशाल लोकतंत्र नहीं है, हम लोकतंत्र की जननी है। संविधान बनाने में महिलाओं की भी सक्रिय भूमिका थी। उनका संविधान पर गहरा प्रभाव रहा था। दुनिया के कई देश जहां संविधान भी बना, लेकिन बात जब महिलाओं को अधिकार देने की बात आई, भारत ने शुरुआत से ही यहां एक बड़ी भूमिका निभाई।

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जब जी20 समिट भी हुई थी, उसी भावना को आगे बढ़ाते हुए, हमने दुनिया के सामने वुमन लेड डेवलपमेंट का जिक्र किया था, इस पर चर्चा करवाई थी। इतना ही नहीं हम सभी सांसदों ने मिलकर एक स्वर से नारी शक्ति अधिनियम पारित करके हमारी महिला शक्ति को, भारतीय लोकतांत्रिक में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए बड़ा कदम उठाया। आज हर योजना की सेंटर में महिलाएं होती हैं, जब संविधान के हम 75 वर्ष मना रहे है, यह अच्छा संयोग है कि राष्ट्रपति पद पर भी एक आदिवासी महिला बैठी हैं।

इस सदन में भी महिला सांसदों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है, मंत्रिपरिषद में भी उनका योगदार बढ़ रहा है, शिक्षा का क्षेत्र हो, खेल कूद का क्षेत्र हो, जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं का योगदान, उनका प्रतिनिधित्व गौरव दिलवाने वाला रहा है। स्पेस टेक्नोलॉजी में तो उनकी भूमिका तारीफ हर भारतीय गर्व के साथ करता है। इसकी सबसे बड़ी प्रेरणा हमारा संविधान ही है। अब हमारा देश बहुत आगे से विकास कर रहा है। भारत बहुत ही जल्द विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की कदम बढ़ाने वाला है।

इतना ही नहीं, 140 करोड़ भारतीयों का संकल्प है, जब हम आजादी की शताब्दी मनाएंगे, इस देश को विकसित बनाकर रहेंगे, यह हर भारतीय का सपना है। लेकिन इस संकल्प से सिद्धि के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है भारत की एकता, हमारा संविधान भी भारत की एकता का आधार है। हमारे संविधान के निर्माण कार्य में बड़े-बड़े दिग्गज थे, साहित्यकार थे। विवेचक, सामाजिक कार्यकर्ता भी थे, समाज का हर वर्ग का प्रतिनिधित्व था। सभी भारत की एकता के प्रति बेहद ही संवेदनशील थे।

वो सभी लोग सजग थे, बाबा अंबेडकर ने तो चेताया था कि समस्या यह है कि देश में जो विविधता से भरा जनमानस है, उसे कैसे एकमत किया जाए, कैसे देश के लोगों को एक दूसरे के साथ होकर निर्णय लेकर प्रेरित किया जाए, जिससे देश में एकता की भावना मजबूत हो। मुझे बड़े दुख के साथ कहना है कि आजादी के बाद संविधान निर्माताओं के मन में संविधान के प्रति सम्मान था, लेकिन आजादी के बाद संविधान पर सबसे बड़ा प्रहार देश की एकता पर हुआ, उसके मूल भाव पर हुआ। विविधता में एकता तो भारत की ताकत रही है, इस देश की प्रगति भी विविधता को सेलिब्रेट करती है। लेकिन गुलामी की मानसकिता में पले-पढ़े लोगों ने. जिन लोगों के लिए 1947 में ही देश आजाद हुआ, वो विविधता में भी विरोधावास ढूंढते रहे।

विविधता के खजाने को सेलिब्रेट करने के बजाय ऐसे जहरीले बीज बोने की कोशिश हुई, जिससे भारत की एकता को चोट पहुंची। मैं कहना चाहता हूं कि आर्टिकल 370 एकता में एक बड़ी रुकावट थी। लेकिन हमने एकता को प्राथमिकता देते हुए इसे खत्म करने का काम किया। इतने बड़े देश में अगर आप ठीक तरह से आगे बढ़ना चाहते हैं, अगर विश्व को भी निवेश के लिए आगे आना है तो उसके लिए हमारे देश में बड़े अर्से तक जीएसटी को लेकर सिर्फ चर्चा चलती रही, लेकिन आज एक आम नागरिक को इसकी बड़ी मदद मिल रही है।

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वन नेशन वन टैक्स की भूमिका को आगे बढ़ाया जा रहा है। हमारे देश में राशन कार्ड किसी भी गरीब का बड़ा दस्तावेज रहा है। लेकिन अगर एक गरीब अगर एक राज्य से दूसरे राज्य जाता था, उसे कुछ नहीं मिलता था, लेकिन असल में उसका हर जगह अधिकार रहना चाहिए था, इसी वजह से हमने वन नेशनल वन राशन कार्ड की बात कही थी। देश के गरीब को, देश के सामान्य नागरिक को मुफ्त में इलाज मिले, गरीबी से लड़ने की उसकी ताकत बढ़ जाती है। वन नेशन वन हेल्थ कार्ड भी इसी वजह से हमने शुरू किया था।

देश में कई बार ऐसा हुआ कि एक हिस्से में तो बिजली थी, लेकिन वो सप्लाई नहीं होती थी। पिछली सरकार में ही अंधेरे वाली हेडलाइन हुआ करती थी, लेकिन एकता के मंत्र को लेकर हम लोगों ने वन नेशन वन ग्रिड को हकीकत बनाया, आज बिजली के प्रवाह को हर कोने में ले जाया गया है। हमारे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर में भेदभाव की बू आती रही है, लेकिन हमने उसे मिटाते हुए देश की एकता को ध्यान में रखा, संतुलित विकास पर फोकस किया। हमने नॉर्थ ईस्ट हो या जम्मू-कश्मीर हो, हमने इंफ्रास्ट्रक्चर को सामर्थ देने का काम किया है।

मैं जोर देकर बोलना चाहता हूं कि युग बदल चुका है, हम गर्व के साथ अब कह पाते हैं कि ऑपिटिकल फाइबर को हर पंयाचत तक पहुंचाने का प्रयास किया है। हमारे संविधान का ध्यान रखते हुए मातृ भाषा पर भी फोकस किया गया। न्यू एजुकेशन पॉलिसी में इस बात पर ध्यान दिया गया है, अब गरीब का बच्चा भी अपनी भाषा में डॉक्टर की पढ़ाई कर सकता है।

काशी सम्मेलन और तेलुगू सम्मेलन समाज को मजबूती देने का काम करता है। इसका दूसरा कारण भी यही है कि संविधान की मूल धारा में एकता का जिक्र है। संविधान के आज जब 75 वर्ष हो रहे हैं, लेकिन हमारे यहां तो 25 वर्ष का भी महत्व होता है, 50 साल का भी महत्व होता है, लेकिन इतिहास में झाककर देखें तो तब आखिर हो क्या रहा था। इमरजेंसी लाया गया था, कुचल दिया गया था। देश को जेल थाना बना दिया गया था, नागरिकों के अधिकारों को लूटा गया था, प्रेस की स्वतंत्रता पर ताले लग गए थे। कांग्रेस के माथे से यह पाप कभी नहीं मिटेगा। जब भी लोकतंत्र की चर्चा होगी, कांग्रेस का यह पाप नहीं धुलने वाला है।

वैसे जब देश संविधान का 50 वर्ष मना रहा था, तो यह मेरा भी सौभाग्य था कि मुझे भी संविधान की प्रक्रिया से मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल गया था। जब मैं सीएम था, उसी कार्यकाल में संविधान के 60 साल हुए थे, तब एक सीएम के नाते मैंने तय किया था कि गुजरात में संविधान के 60 साल मनाएंगे। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि हाथी पर संविधान यात्रा निकाली गई थी। हमारे लिए संविधान का महत्व इतना है।

मुझे याद है जब मैंने लोकसभा के पुराने सदन में संविधान दिवस मनाने की बात कही थी, एक बड़े नेता ने कहा था कि 26 जनवरी तो है, एक और तारीख की क्या जरूरत है। लेकिन मेरे लिए खुशी की बात है कि इस विशेष सत्र में संविधान की शक्तियों पर चर्चा होती, लेकिन सभी की अपनी मजबूरियां होती हैं, किसी ने अपनी विफलताओं का दुख प्रकट किया है। अगर दलघट की भावनाओं से उठकर संविधान पर चर्चा होती तो अच्छा होता। मैं तो संविधान के प्रति विशेष आभार व्यक्त करता हैं।

मेरे जैसे अनेक लोग जो यहां नहीं पहुंच पाते, संविधान के जरिए ऐसा हो पाया। यह संविधान की ताकत थी कि जनता के आशीर्वाद से इतने बड़ा दायित्व मुझे मिला। यह भी बड़ी बात है कि हमे देश ने तीन बार आशीर्वाद दिया है। यह हमारे संविधान के बिना कभी संभव नहीं होता। मैं कुछ तथ्यों को रखना चाहता हूं, कांग्रेस के एक परिवार ने संविधान को चोट पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मैं इसलिए परिवार का उल्लेख करता हूं, क्योंकि 55 साल एक ही परिवार ने राज किया था। इसलिए देश को क्या-क्या हुआ है, यह जानने का पूरा अधिकार है। और इस परिवार के कुविचार, कुरीति, कुनीति, यह परंपरा लगाता चल रही है। हर स्तर पर इस परिवार ने संविधान को चुनौती दी है।

1947 से 1952 तक इस देश में चुनी हुई सरकार नहीं थी, एक अस्थाई व्यवस्था थी, एक सेलेक्टिव सरकार थी। और चुनाव नहीं हुए थे, जब तक चुनाव नहीं हुए, अंतरिम सरकार का खाका बनाया गया था। 1952 के पहले तो राज्यसभा का भी गठन नहीं हुआ था। राज्यों में भी कोई चुनाव नहीं हुए थे, लेकिन उसके बावजूद भी , 1951 में एक अध्यादेश के जरिए संविधान को बदल दिया था। उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी पर बड़ा हमला किया गया। यह संविधान निर्माताओं का भी अपमान था, लेकिन उनकी जब नहीं चली तो जैसे ही मौका लगा, उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी पर हथौड़ा मार दिया, उन्होंने संविधान निर्माताओं का अपमान किया।

पिछले दरवाजे से उन्होंने वो सब किया जो वैसे नहीं कर पाते। इतना ही नहीं, उसी दौरान उस समय के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को एक चिट्ठी लिखी थी। उसमें कहा था कि अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच में आ जाए, तो हर हाल में संविधान में परिवर्तन करना चाहिए। यह सीएम को चिट्ठी लिखी गई थी। और फिर एक और पाप हुआ, राष्ट्रपति राजेंद्रर प्रसाद ने बोला था कि यह गलत हो रहा है, तब स्पीकर पद पर बैठे शख्स ने भी बोला था कि नेहरू जी गलत कर रहे हो, सभी महान कांग्रेसी नेताओं ने पंडित नेहरू को रुकने के लिए कहा था। लेकिन उनका तो अपना संविधान चलता था, उन्होंने किसी की बात नहीं मानी। इंदिरा गांधी ने भी उन्हीं की परंपरा को आगे बढ़ाया था।

मैं तो यहां पर संविधान की बात कर रहा हूं। इमरजेंसी में लोगों के अधिकार छीने गए, हजारों लोगों में जेल में डाला गया, अखबार की स्वतंत्रता पर ताले लगे। इतना ही नहीं समझौते वाली अदालत जैसी विचारधारा को उन्होंने ताकत दी। जिस जज ने इंदिरा के खिलाफ फैसला सुनाया, उन्हें मुख्यन्याधीश तक बनने नहीं दिया गया। यहां भी कई ऐसे दल बैठे हैं, जिनके मुखिया भी जेल में हुआ करते थे, आज मजबूरी है कि वे यहां साथ बैठे हैं। देश में जब जुर्म का तांडव चल रहा था, लाठियां बरसाई जाती थीं। तब की निर्दीय सरकार संविधान को चूर-चूर करती रही।

यह परंपरा यही पर नहीं रुकी, नेहरू ने जो शुरू किया था, जिसे इंदिरा गांधी ने आगे बढ़ाया, इसी वजह से राजीव गांधी की सरकार उस वृद्ध महिला से हक छीन लिया था जिसे कोर्ट ने हक दिया था। शाहबानो की भावना, कोर्ट की भावना को राजीव गांधी ने नकार दिया था, उन्होंने संविधान को कुचल दिया था। उन्होंने न्याय के लिए एक बूढ़ी महिला का साथ नहीं दिया बल्कि कट्टरपंथियों के साथ चले गए, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। लेकिन बात यहां पर नहीं रुकी। संविधान के साथ खिलवाड़ करने का लघु उनके मुंह पर लग चुका था।

इसी वजह से अगली पीढ़ी भी ऐसे ही आगे बढ़ी। एक किताब को कोट करता हूं, उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोट करते हुए कहा गया कि मुझे स्वीकार करना होगा कि पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र है, सरकार पार्टी के प्रति जवाबदेह है। इन लोगों ने संविधान को हर मौके पर अस्वीकार किया, उनकी आदत ही ऐसी बन चुकी थी। दुर्भाग्य तो यह है कि एक अहंकारी व्यक्ति कैबिनेट के फैसले को फाड़ दे, फिर कैबिनेट पर भी उस फैसले को बदल दे। मैं जो कुछ भी कह रहा हूं, संविधान के साथ जो हुआ, सिर्फ उसका जिक्र रहा हूं। मेरे मन के विचार नहीं है ये।

जब अटल जी की सरकार थी, अंबेडकर जी का स्मारक बनाने का फैसला हुआ था। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, 10 साल यूपीए की सरकार थी, उस काम को होने नहीं दिया, जब हमारी सरकार आई, अंबेडकर के प्रति हमारी श्रद्धा होने के कारण हमने उनके मेमोरियल का निर्माण करवाया।

वोटबैंक की राजनीति में डूबे लोगों ने धर्म के आधार पर, तुष्टीकरण के नाम पर आरक्षण को कमजोर करने का काम किया, इसका नुकसान एसी, एसटी और ओबीसी वर्ग को हुआ। नेहरू जी ने खुद आरक्षण के खिलाफ लंबी-लंबी चिट्ठी लिखी हैं। अंबेडकर जी तो समता के लिए, संतुलित विकास की पैरवी करते थे। लेकिन इन लोगों ने उनके खिलाफ भी मोर्चा खोला था, मंडल कमीशन की रिपोर्ट को भी ठंडे बस्ते में डालकर रखा। उनके जाने के बाद ओबीसी को आरक्षण मिला पाया था। यह कांग्रेस का पाप है, अगर समय रहते ओबीसी को आरक्षण मिलता तो आज कई बड़े पद पर उस वर्ग के लोग रहते।

जब हमारे यहां संविधान का निर्माण चल रहा था, तब संविधान निर्माताओं ने धर्म के आधार पर आरक्षण होना चाहिए या नहीं, इस पर घंटों चर्चा हुई थी, सभी का मत बना था कि भारत जैसे देश में एकता के लिए धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं हो सकता है। सोच विचार कर तय हुआ था कि भारत की एकता के लिए संप्रदायिक और धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं होगा। लेकिन कांग्रेस ने सत्ता भूख के लिए, धर्म के आधार पर आरक्षण देने का खेल किय, यह संविधान के खिलाफ है। कुछ जगह तो उन्होंने ऐसा कर भी दिया है। संविधान निर्माताओं को गहरी चोट देने का निरलच प्रयास किया जा रहा है।

आज कांग्रेस के लोग संविधान निर्माताओं की बात भी नहीं मानते क्योंकि ऐसा उनकी राजनीति को सूट नहीं करता है। लोगों को डराने के लिए संविधान को हथियार बनाया जा रहा है। कांग्रेस पार्टी के मुंह से संविधान शब्द शोभा नहीं करता है। दूसरी तरफ अटल जी थे जिन्होंने संविधान बचाने के लिए 13 दिनों में पीएम पद से इस्तीफा देना ज्यादा सही माना। 1998 में भी एनडीए की सरकार चल रही थी, लेकिन कुछ लोगों को लगता था कि हम नहीं तो कोई नहीं, इसी वजह से अटल सरकार को गिराने के लिए वोट हुआ, बाजार में माल तक भी बिकता था, लेकिन संविधान के प्रति समर्पित ने अटली जी की सरकार ने एक वोट से हारना पसंद किया और इस्तीफा दे दिया।

यह हमारा इतिहास है,यह हमारे संस्कार है, यह हमारी परंपरा है। कांग्रेस के लिए सत्ता भूख ही एक मात्र इतिहास है, उसका वर्तमान है। 2014 के बाद जब एनडीए को सेवा का मौका मिला, संविधान और लोकतंत्र को मजबूती मिली। यह जो पुरानी बीमारियां थी, उससे मुक्ति का हमने अभियान चलाया। हमने भी संविधान संशोधन किए, लेकिन देश की एकता के लिए, देश के विकास के लिए। हर संविधन के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ काम किया। हमने तो जब संशोधन किया तो ओबीसी समाज को ध्यान में रखकर किया। ओबीसी के सम्मान के लिए हमने संविधान संशोधन किया है।

अगर सबसे बड़ा कोई जुमला था वो था गरीबी हटाओ जो चार पीढ़िओं तक इन्होंने चलाया, इससे बस उनकी राजनीतिक रोटियां सिकती थी,लेकिन गरीबों को कुछ नहीं मिला। सोचने की बात है कि क्या एक गरीब को टॉयलेट का हक नहीं था, आज तो उनके सम्मान को बचाने के लिए हमने काम को अपने हाथों में लिया। सामान्ग नागरिक की गरिमा को ध्यान में रखते हुए हमने सारा काम किया।

अगर हमारा गरीब परिवार अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है, कोई एक बीमार हो जाए तो सब बिगड़ जाता है। इसी वजह से हर गरीब को मुफ्त इलाज मिले, हमने आयुष्मान योजना को शुरू किया। जरूरतमंदों को राशन देने की बात कही तो उसका भी मजाक बनाया।

मैं 11 संकल्प बताने जा रहा हूं, सभी नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करे, सबका साथ सबका विकास हो, भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस हो, भ्रष्टाचारी की सामाजिक स्वीकार्यता ना हो, गर्व का भाव होना जरूरी, गुलामी की मानसिकता से मुक्ति, देश की राजनीति को परिवारवाद से मुक्ति, संविधान का सम्मान हो, राजनीति स्वार्थ के लिए संविधान को हथियार बना बनाया जाए, जिनको आरक्षण मिल रहा हो, वो ना छीना जाए, धर्म के आधार पर आरक्षण वाली कोशिशों को रोका जाए, महिला केंद्रित विकास में भारत आगे रहे, राज्यों के विकास से राष्ट्र का विकास, एक भारत श्रेष्ठ भारत के प्रति आगे बढ़ें।