गुजरात चुनाव का प्रचार अंतिम दौर में है। पीएम नरेंद्र मोदी लगातार प्रचार कर रहे हैं। मोदी के करिश्मे के सहारे बीजेपी को फिर से जीत दर्ज करने की उम्मीद है। पिछले 27 सालों से गुजरात की सत्ता पर काबिज बीजेपी के लिए इस चुनाव में जीत बड़ी उपलब्धि होगी। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। बीजेपी 100 के आंकड़े के करीब (99) सीटों पर जाकर रुक गई थी, जबकि कांग्रेस 77 के आंकड़े तक जा पहुंची।
2017 के चुनाव में कांग्रेसी मणिशंकर अय्यर का एक बयान कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए मुसीबत पैदा कर गया था। जब उन्होंने पीएम मोदी को नीच कह डाला था। बीजेपी और खुद पीएम ने अय्यर की बात को जमकर भुनाया। इस बार भी कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा कहे गए रावण जैसे जुमले पीएम ने उछाले।
2022 के चुनाव में पहले चरण के मतदान का प्रतिशत पिछली बार की तुलना में कम रहा है। सियासी गणित कहता है कि अगर मतदान पहसे कम या नजदीकी आसपास रहा है तो मौजूदा सरकार के लिए कोई ज्यादा खतरा नहीं होता। इसका सीधा मतलब ये होता है कि लोगों का वोटिंग की तरफ कोई रुझान नहीं है। यानि वो सरकार बदलने के इच्छुक नहीं हैं। वोटिंग ज्यादा होती है तो माना जाता है कि लोग किसी बदलाव के लिए तत्पर हैं।
कांग्रेस आखिरी बार 1990 में गुजरात की सत्ता में आई थी। उसके बाद हुए मंडल आंदोलन ने उसकी स्थिति को खराब कर दिया। ओबीसी वोट बैंक में बिखराव से बीजेपी को सत्ता में आने का मौका मिला। फिर गोधरा दंगे हुए। उसके बाद हिंदू एकजुट होकर नरेंद्र मोदी के पीछे जाकर खड़े हो गए। चुनाव हिंदू बनाम मुस्लिम हुए और बीजेपी ने बड़े आराम से जीत हासिल की। गोधरा और उसके पहले या बाद में जो कुछ हुआ वो हिंदूओं को मोदी के पीछे खड़ा कर गया। फिर मोदी पीएम बने तो इसे गुजरातियों ने अपनी शान माना। इस चुनाव में भी बीजेपी ने 2002 दंगों का मुद्दा उठाया। पार्टी के दूसरे सबसे कद्दावर माने जाने वाले नेता अमित शाह ने कहा- 2002 में जब दंगाइयों को भाजपा ने सबक सिखाया तब गुजरात में अखंड शांति कायम हुई।
बीजेपी को गुजरात में उस समय तगड़ा झटका लगा था जब 1995 में उसकी सरकार बनने के बाद तत्कालीन पीएम पीवी नरसिंहराव ने तोड़फोड़ का दी। सीएम केशुभाई पटेल की सरकार में शंकर सिंह वाघेला से सेंध लगवा दी थी। अटल बिहारी वाजपेयी उस समय गुस्से से बिफर गए थे तो लाल कृष्ण आडवाणी ने इसे शर्मनाक बताया था।
1996 से 1998 के बीच शंकर सिंह वाघेला और दिलीप पारिख के एक साल 192 दिन की सरकार को छोड़ दें, तो भारतीय जनता पार्टी 1995 से सत्ता में है। शंकर सिंह वाघेला और दिलीप पारिख ने भाजपा से अलग होकर राष्ट्रीय जनता पार्टी बनाई थी। बाद में दोनों कांग्रेस में शामिल हो गए। 1996 में 27 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन भी लगा था। कांग्रेस 1995 के बाद से सत्ता में नहीं आई।
लेकिन इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल ने भी गुजरात के चुनाव में आप को चर्चा में लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गुजरात की 182 में से 80 सीटें ऐसी हैं जो शहरी मानी जाती हैं। उसे उम्मीद है कि वो गुजरात में भी पंजाब वाला करिश्मा दोहरा सकती है। 2017 के चुनाव में पंजाब में केजरीवाल ने केवल 22 सीट जीती थीं। लेकिन 2022 में पंजाब में वो पूरा सूबा ही जीत गए। अरविंंद केजरीवाल इस उम्मीद में हैं कि गुजरात के लोग भी बदलाव चाह रहे हैं। असल में जनता क्या चाह रही है, यह आठ दिसंबर को पता चलेगा।