एक न्यूज चैनल से बातचीत में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा कि उनके दोस्त हर राजनीतिक पार्टी में हैं। लेकिन वो मानते हैं कि जब आप चुनाव में किसी के लिए रणनीति बनाते हैं तो ज्यादा दोस्त पेशे के लिए अच्छा नहीं है। उनका कहना था कि चुनाव एक तरह का वार है और लड़ाई में ज्यादा दोस्ती नुकसानदेह होती है।

पीके ने बताया कि वो बिहार के एक छोटे से स्कूल में पढ़े थे। उनका साधारण परिवार है। पिता से उन्हें सीख मिली कि जिस व्यक्ति ने जीवन में कुछ हासिल किया है उसमें कोई न कोई खासियत तो होगी ही। उसकी उस चीज को आत्मसात करो। प्रशांत का कहना है कि जब वो मोदी से मिलते हैं तो देखते हैं कि एक प्रचारक कैसे देश का पीएम बन गया। इसी तरह से वो देखते हैं कि मुलायम सिंह यादव भी कैसे यूपी के बड़े बने। वो उनसे कुछ नया और अच्छा हासिल करने की कोशिश करते हैं।

उनका कहना था कि जब भी वो किसी कामयाब व्यक्ति से मिलते हैं तो वो ये नहीं सोचते कि उसकी जाति धर्म क्या है। वो उसकी खूबियों से चीजों को लेने की कोशिश करते हैं। उनका कहना था कि कमियां तो हर इनसान में होती हैं। अगर कमी देखने लग गए तो फिर आगे बढ़ने का रास्ता खत्म हो जाता है। अगर अच्छाई देखते हैं तो अपने जीवन के लिए एक सीख और रास्ता मिल जाता है।

एंकर ने उनसे पूछा कि जिस पार्टी से वो जुड़ते हैं वहां ज्यादातर लोग खुद को असुरक्षित महसूस करने लग जाते है और फिर वहां से उनका दाना पानी उठ जाता है। प्रशांत के जवाब देने से पहले ही एंकर ने मजाकिया लहजे में कहा कि उन्होंने अमित शाह का नाम नहीं लिया है। प्रशांत का जवाब था कि ऐसा नहीं है। लेकिन अगर ऐसा है तो इसे वो अपनी कमी ही मानेंगे। उनका हमेशा ध्येय रहता है कि जो भी काम वो करें वो बहुत अच्छे से करें और जिसके लिए करें उसे सार्थक फायदा मिले। ऐसा नहीं हो पाता तो ये उनकी नाकामी है।

2019 के इंटरव्यू में एंकर का कहना था कि प्रशांत हिंदुस्तान के अकेले ऐसे आदमी हैं जो नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों के करीब है। पीके ने कहा कि इसमें कोई दोराय नहीं। वो जब भी चाहते हैं दोनों के घर जा सकते हैं। उनका कहना था कि प्रियंका गांधी एक बेहतरीन नेता हैं और उनके यूपी में जाने से लंबे समय के लिए पार्टी को फायदा होगा। उनका कहना था कि प्रियंका की काबिलियत 2022 चुनाव में दिखेगी। तब तक वो यूपी की राजनीति को आत्मसात कर चुकी होंगी।