सुप्रीम कोर्ट में एक अजब याचिका डाली गई, जिसमें दशहरे पर रावण दहन को अशुभ प्रथा बताया गया। साथ ही, दहन की प्रक्रिया की संवैधानिक जांच करने की मांग की गई। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका को तत्काल प्रभाव से खारिज कर दिया। कोर्ट ने जवाब दिया कि लोगों के विश्वास और सांस्कृतिक प्रथाओं पर फैसला नहीं दिया जा सकता।
इस शख्स ने दायर की थी याचिका: जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई की। इस बेंच में जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम भी शामिल थे। यह याचिका एडवोकेट बिपिन बिहारी सिंह ने दायर की थी। कोर्ट ने रावण को लेकर याचिकाकर्ता के तर्क माने, लेकिन कहा कि रामायण के मुताबिक रावण लंका का राजा था और महान विद्वान था, लेकिन जगह के हिसाब से लोगों की मान्यताएं अलग-अलग हैं और कोर्ट उनकी निगरानी नहीं कर सकती।
Hindi News Today, 04 December 2019 LIVE Updates: देश-दुनिया की हर खबर पढ़ने के लिए यहां करें क्लिक
बेंच ने दिया यह जवाब: जस्टिस रमन्ना ने कहा, ‘‘इसमें कोई शक नहीं है कि रावण महान विद्वान था। पुराणों के मुताबिक, उसे भगवान शिव का वरदान मिला था। इस पहलू पर कोई संदेह नहीं है। कुछ जगह उसे हीरो की तरह पूजा जाता है, लेकिन भारत में अलग सोच है। हम लोगों को उनके विश्वास का पालन करने से कैसे रोक सकते हैं? अदालत धार्मिक मान्यताओं की निगरानी नहीं कर सकती है।’’ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसफ और वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने यह याचिका 29 नवंबर को खारिज कर दी थी। जजों ने इसे सुनवाई के योग्य ही नहीं माना।
याचिका दायर करने की बताई यह वजह: एडवोकेट बिपिन बिहारी सिंह ने बताया, ‘‘उनकी यह याचिका दायर करने की वजह 19 अक्टूबर 2018 को अमृतसर में 61 लोगों की मौत थी, जो दशहरा उत्सव के दौरान जान गंवा बैठे थे।’’ इसके अलावा उन्होंने 2014 में दशहरे के दौरान पटना में मची भगदड़ का भी हवाला दिया, जिसमें 32 लोगों की जान गई थी। एडवोकेट ने कहा, ‘‘मैं नहीं चाहता कि कोर्ट इस प्रथा पर रोक लगा दे, लेकिन सिर्फ इतना चाहता था कि कोर्ट इस मसले पर विशेषज्ञों से बात जरूर करे।’’ एडवोकेट ने दावा किया कि रावण दहन की प्रथा करीब 50-60 साल पहले शुरू हुई है। सनातन धर्म में इसका कोई इतिहास नहीं है।