डॉ राजन शर्मा साफ करते हैं कि आइएमए किसी भी चिकित्सा पद्धति के खिलाफ नहीं है। हर पद्धति का अपना महत्व है। हम इस मिश्रण के खिलाफ हैं जिसकी कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि अभी तक आखों की शल्य चिकित्सा एक एमडी डिग्रीधारी डॉक्टर करता था। अब यही आंखों की शल्य चिकित्सा का अधिकार आयुर्वेद के डॉक्टर को दिया जा रहा है। शर्मा ने बताया कि आधुनिक चिकित्सा में जब कोई बच्चा डॉक्टर बनना चाहता है तो पहले वह नीट की परीक्षा देता है।

इसके बाद एमबीबीएस करता है। फिर वह एमडी की नीट परीक्षा देता है। फिर वह डॉक्टर बनता है और तीन साल का प्रशिक्षण लेता है। लेकिन भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (सीसीआइएम) ने दिशानिर्देश तैयार किए हैं जिसके तहत दो साल में 58 प्रक्रिया हैं जिनको कह दिया गया है कि आयुर्वेद में एमडी को इसकी इजाजत दी जाएगी। शर्मा ने बताया कि किसी भी शल्य चिकित्सा से पहले मरीज को बेहोश करना होता है। आधुनिक चिकित्सा में यह कार्य एक अलग डॉक्टर करता है लेकिन सीसीआइएम के दिशानिर्देशों के मुताबिक यह कार्य भी आयुर्वेद का डॉक्टर करेगा।

उन्होंने प्रश्न उठाया कि शल्य चिकित्सा के दौरान यदि मरीज को कोई परेशानी होती है तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने मेडिकल कॉलेज खोले और मेडिकल की सीटें बढ़ार्इं जो कि बहुत सराहनीय कदम है लेकिन देश में डॉक्टरों की कमी के नाम पर आयुर्वेद के डॉक्टरों को दो साल की डिग्री के बाद शल्य चिकित्सा की इजाजत देना देश की स्वास्थ्य सेवा के साथ खिलवाड़ है।

उन्होंने कहा कि आधुनिक चिकित्सा के डॉक्टरों को काम करने के लिए ही देश में पूरी सुविधाएं नहीं हैं, ऐसे में इन नए डॉक्टरों के लिए कहां से सुविधाएं लाओगे। यह भारतीय चिकित्सा का ‘मिक्सोपैथी’ और ‘खिचड़ीफिकेशन’ है।

शर्मा अपनी बात और समझाते हुए कहते हैं कि शल्य चिकित्सा के लिए एक टीम प्रोटोकॉल होता है। इसके तहत शल्य चिकित्या की योजना बनाई जाती है। यह सब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की देन है। उन्होंने कहा कि आप कहते हैं कि शल्य चिकित्सा का उल्लेख आयुर्वेद में किया गया है, तो आप आयुर्वेद की किताबों से ही उन्हें पढ़ाएं। बिना सोचे-समझे लिए गए फैसले से आयुर्वेद का विकास नहीं बल्कि उसका अंत होगा।

आइएमए का
विरोध बेमानी

आयुर्वेद चिकित्सा में शल्य को नीतिगत स्वीकृति का इस क्षेत्र में पहले से कार्य कर रहे चिकित्सकों ने खुले मन से स्वागत किया है। उनकी नजर में इस कदम से इस पुरानी चिकित्सा पद्धति को आधुनिक और वैज्ञानिक कसौटियों पर खरा उतरने में मदद मिलेगी। दिल्ली में लंबे समय से कार्य कर रहे प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य दीपक तिवारी उन लोगों में शामिल हैं जो आयुष चिकित्सकों को शल्य ंिचकित्सा की इजाजत देने पर काफी खुश हैं।

वे कहते हैं कि अंग्रेजों के शासन के दौरान एलोपैथी के बढ़ावे के उद्देश्य से अंग्रेजों ने भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का दबाया गाय और इसे आगे नहीं बढ़ने दिया गया। जबकि आयुर्वेद के आचार्यों और ग्रंथों से ही पश्चिम के डॉक्टरों ने शल्य चिकित्सा सीखी। पराधीनता के दिनों से भारत में आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा को हतोत्साहित किया जा रहा है। मौजूदा सरकार इस दिशा में कुछ अच्छे कदम उठा रही है तो यह निस्संदेह सराहनीय है।

वे कहते हैं कि व्यावसायिक हितों को देखते हुए आइएमए इस निर्णय का विरोध कर रहा है। लेकिन सरकार को तो राष्ट्रहित देखना है और यह फैसला राष्ट्रहित में लिया गया है। उन्होंने कहा कि एलोपैथी में जिन लोगों के पैरों को काटने के लिए कहा गया था, हमने उन्हीं पैरों को सही करके दिखाया है।