विवेक सक्सेना
केंद्र में सत्ता का स्वाद चखने के बाद अब भाजपा राज्यों में भी सत्ता में भागीदारी चाहती है। इसकी वजह उसकी यह सोच है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भगवा लहराए। कश्मीर तो शुरू से उसके लिए भावनात्मक मुद्दा रहा है।
विधानसभा चुनाव के दौरान पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस दोनों पर परिवारों की पार्टी होने का आरोप लगाती आई भाजपा को अब वहां सरकार बनाने के लिए दोनों में से ही किसी से भी हाथ मिलाने से भी गुरेज नहीं है। भाजपा के राज्य में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने की स्थिति में पहुंचने के साथ ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पीडीपी या नेशनल कांफ्रेंस के साथ हाथ मिलाने की संभावना को खारिज नहीं किया। उन्होंने कहा कि सभी विकल्प खुले हुए हैं।
जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के परिणाम में पीडीपी के बाद भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। चुनाव के नतीजे इसके बाद अमित शाह ने कहा कि सभी विकल्प खुले हुए हैं। भाजपा की सरकार बनाने का विकल्प खुला है। किसी को समर्थन देने का विकल्प खुला है। किसी और की सरकार में शामिल होने का विकल्प भी खुला हुआ है। उन्होंने कहा कि भाजपा का फैसला दूसरे दलों की पहल पर भी निर्भर करेगा। भाजपा के अति उत्साह की वजह यह है कि आजादी के बाद पहली बार पार्टी को राज्य में इतनी ज्यादा सीटें मिली हैं। यह बात अलग है कि वह घाटी में अपना खाता भी नहीं खोल पाई है। पार्टी नेताओं का मानना है कि जिस तरह से राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाए गए और घाटी में भी पार्टी ने अपने उम्मीदवार खड़े किए वह कम महत्वपूर्ण नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के साथ ही जम्मू कश्मीर को खास अहमियत देनी शुरू कर दी थी। राज्य में सितंबर में आई प्रलयंकारी बाढ़ के दौरान वे खुद वहां गए। इसके अगले ही दिन गृहमंत्री राजनाथ सिंह को राज्य की जिम्मेदारी सौंप कर युद्ध स्तर पर राहत कार्य करवाए। उन्होंने तो कुछ ऐसा भी कर दिखाया जो कि इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला, जब कुछ महीने पहले सेना की गोली से एक निर्दोष छात्र मारा गया तो पहली बार सेना ने जांच पूरी हुए बिना ही इस कांड के लिए माफी मांग ली। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने धारा 370 का जिक्र तक नहीं किया। इससे लगता था कि वे वहां के लोगों का दिल जीतने का मन बना रहे हैं। पृथकतावादी दल पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद गनी लोन उनसे दिल्ली में मिले थे।
ध्यान रहे कि भाजपा (जनसंघ) के पहले अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जम्मू जेल ही में मौत हुई थी। पार्टी अध्यक्ष रहते हुए मुरली मनोहर जोशी ने घाटी के लाल चौक पर तिरंगा फहराने का फैसला किया था। इसे भाजपा ने अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि माना था।
अहम बात यह है कि घाटी के दोनों ही क्षेत्रीय दलों को भाजपा के साथ हाथ मिलाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आएगी। पीडीपी अध्यक्ष मुफ्ती मोहम्मद सईद, वीपी सिंह सरकार में गृहमंत्री थे। इस सरकार को भाजपा का समर्थन हासिल था। उसी तरह से नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला भी वाजपेयी की राजग सरकार विदेश राज्य मंत्री रह चुके हैं। वहां के क्षेत्रीय दलों का मानना रहा है कि केंद्र में जिसकी भी सत्ता हो उसके साथ बना कर चलने में ही राज्य सरकार के हित सुरक्षित रहते हैं।
बुधवार को पार्टी संसदीय बोर्ड की बैठक में राज्य में विकल्पों पर विचार किया जाएगा। झारखंड में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा, जहां भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने की ओर अग्रसर है। भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की हार के बाद झारखंड में नेतृत्व का मुद्दा भी महत्त्वपूर्ण हो गया है। भाजपा की झारखंड में 2009 में 18 सीटें थीं जो 41 तक पहुंच गई हैं। जम्मू कश्मीर में 2008 में उसकी सीटें 11 थीं जो बढ़कर 25 हो गई हैं। उसे राज्य में सर्वाधिक मत फीसद मिला है। अमित शाह के मुताबिक भाजपा जम्मू कश्मीर में बड़ी लोकतांत्रिक ताकत बनकर उभरी है।