ललित मोदी प्रकरण एवं व्यापमं घोटाले पर कांगे्रस सहित विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ा संसद का मानसून सत्र गुरुवार को अनिश्तिकाल के लिए स्थगित हो गया। सत्र के दौरान लोकसभा में कांगे्रस के 44 में से 25 सदस्यों को हंगामा करने के कारण पांच दिन के लिए निलंबित किया गया वहीं बुधवार को सरकार और कांगे्रस ने परस्पर तीखे प्रहार किए।

लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित करते समय इस बात पर दुख व्यक्त किया कि उन्हें निचले सदन की कार्यवाही में लगातार बाधा डालने वाले 25 सदस्यों को अंतिम विकल्प के रूप में पांच दिन के लिए निलंबित करने का कड़ा फैसला करना पड़ा। उन्होंने उम्मीद जताई कि भविष्य में आसन को इस तरह के फैसले करने का मौका नहीं दिया जाएगा।

इक्कीस जुलाई से शुरू  हुए सत्र में कांगे्रस सदस्यों ने दोनों सदनों में ललित मोदी प्रकरण एवं व्यापमं घोटाले पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एवं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की मांग पर जबरदस्त हंगामा किया। इसी के चलते पिछले हफ्ते लोकसभा में 25 कांगे्रस सदस्यों को पांच दिन के लिए निलंबित किया गया।

इस्तीफा नहीं तो चर्चा नहीं, की मांग पर अड़ी कांगे्रस सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने से महज एक दिन पहले बुधवार को लोकसभा में ललित मोदी की मदद करने के लिए सुषमा स्वराज के विरुद्ध लाए गए कार्यस्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के लिए सहमत हो गई। इस दौरान जहां विदेश मंत्री सुषमा एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कांगे्रस के आरोपों का तीखे अंदाज में जवाब दिया वहीं कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और लोकसभा में पार्टी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी।चर्चा के बाद खड़गे द्वारा रखे गए कार्य स्थगन प्रस्ताव को लोकसभा ने ध्वनिमत से खारिज कर दिया।

चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष की एक टिप्पणी से नाराज होकर कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी कुछ समय के लिए आसन के समक्ष आ गईं। कांगे्रस प्रमुख ने शायद ही कभी सदन में ऐसा तेवर दिखाया हो। लोकसभा अध्यक्ष ने बैठक गुरुवार को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने से पहले अपने पारंपरिक संबोधन में कहा कि कि विपक्ष के अवरोधों के बावजूद इस सत्र में 17 बैठकें हुई। जो 46 घंटे से अधिक चली। इस दौरान सदन ने रेलवे और सामान्य बजट की अनुदान मांगों एवं उससे संबंधित विनियोग विधेयकों को अपनी मंजूरी दी।

इसके अलावा सदन ने 10 विधेयक पेश हुए और छह पारित किए गए। प्रश्नकाल में सदस्यों के 48 प्रश्नों के मौखिक जवाब दिए गए और शून्यकाल में सदस्यों ने लोक महत्व के 253 मामले उठाए। नियम 377 के तहत 188 विषय भी उठाए गए और संसद की स्थाई समितियों की 46 रिपोर्ट पेश हुई। अध्यक्ष ने बताया कि इस सत्र में विभिन्न मंत्रियों की ओर से सदन में 46 बयान दिए गए और इस अवधि में विभिन्न मंत्रियों ने 1042 जरूरी कागजात भी सदन के पटल पर रखे। इसके अलावा अनिवार्य मताधिकार पर एक निजी विधेयक पर अधूरी चर्चा को आगे बढ़ाया गया और 45 अन्य निजी विधेयक पेश किए गए।

सत्र के आखिरी दिन विपक्ष द्वारा सदन से वाकआउट किए जाने पर खेद जताते हुए संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि सदन का समापन खुशनुमा माहौल में होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं होने से वे व्यथित हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि संसद का अगला सत्र अच्छे माहौल में चलेगा। उधर राज्यसभा में गुरुवार को दोपहर बारह बजे सभापति हामिद अंसारी ने अपना पारंपरिक संबोधन दिए बिना ही सत्र को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने की घोषणा की।

उच्च सदन में इस सत्र के दौरान नौ घंटे से कुछ अधिक समय ही कामकाज हो पाया। आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने की मांग, लोकसभा में 25 कांगे्रस सदस्यों के पांच दिन के निलंबन, पूर्वोत्तर क्षेत्र के मुख्यमंत्रियों से कथित रूप से विचार विमर्श किए बिना नगा समझौता किए जाने व बिहार सरकार से चर्चा किए बिना राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति के मुद्दे पर भी अलग-अलग अवसरों पर विपक्षी दलों के हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही बाधित हुई।

सत्र में विधायी कामकाज के नाम पर रेलवे और सामान्य अनुदान की अनुपूरक मांगों और इससे संबंधित दो विनियोग विधेयकों को बिना चर्चा के लोकसभा को लौटाया गया। इस दौरान सरकार ने तीन अन्य विधेयकों को वापस लिया। सत्र के दौरान कोई गैर सरकारी कामकाज भी नहीं हुआ। इस दौरान महज छह मौखिक सवालों के जवाब दिए जा सके। सत्र के दौरान पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के निधन पर उनके सम्मान में दोनों सदनों की बैठक को पूरे दिन के लिए स्थगित किया गया।

हंगामे के बीच ही सरकार ने 27 जुलाई को गुरदासपुर में हुए आतंकवादी हमले, पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर में हुए आतंकवादी हमले व मध्य प्रदेश में हरदा के समीप हुए रेल हादसे सहित विभिन्न मुद्दों पर बयान दिए।