पाकिस्तान से आए एक हिंदू परिवार ने पिछले साल दिसंबर में संशोधित नागरिकता कानून को संसद की मजूरी मिलने की खुशी में तब पैदा हुए शिशु का नाम नागरकिता रखा था। नागरिकता अब एक साल की हो चुकी है मगर उसे अभी भी देश की नागरिकता मिलने का इंतजार है। हिंदी दैनिक भास्कर में छपी एक खबर के मुताबिक वर्तमान समय में नागरिकता परिवार सहित दिल्ली के मजनू का टीला इलाके में स्थित एक बस्ती में रहती है। बताया जाता है कि इस बस्ती में करीब 150 परिवार ऐसे हैं जो पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान से आकर यहां बसे हैं। दिल्ली के ही आदर्श नगर, रोहिणी, सिग्नेचर ब्रिज (वजीराबाद) और हरियाणा के फरीदाबाद में भी पाकिस्तान से आए बहुत से हिंदू परिवार रहते हैं। इन परिवारों की संख्या करीब 750 है।

पिछले कई सालों से अमानवीय स्थिति में जिंदगी गुजार रहे इन परिवारों को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) आने के बाद कुछ उम्मीद नजर आई थी, मगर इसका फायदा इन्हें अभी तक नहीं मिला है। नागरिकता नाम की बच्ची की दादी मीरा देवी बताती हैं कि सीएए पास होना हमारे लिए किसी बड़े त्योहार की तरह था। उस दिन हमने खूब जश्न मनाया, मिठाइयां बांटी। मीरा देवी कहती हैं, ‘शायद उन खुशियों को किसी की नजर लग गई, क्योंकि आज तक हमारी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।’

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बस्ती के मुखिया सोना दास बताते हैं कि हम लोगों को बिजली तक की सुविधा नहीं मिली है। किसी तरह कांटा डालकर थोड़ी-बहुत बिजली मिलती है, मगर वो भी बार-बार काट दी जाती है। हालांकि दिल्ली जल बोर्ड ने पानी जरूर मुहैया कराया है मगर नदी किनारे जंगल के बीच रहना खासा मुश्किल हैं। आए दिन घरों के अंदर सांप-बिच्छू निकलते रहते हैं।

बस्ती में अब एक मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। इसी मंदिर के बाहर बैठे महादेव कहते हैं, ‘मंदिर के दौरान भी हमें बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। निर्माण कार्य शुरू हुआ तो नगर निगम के अधिकारी आ गए और रुकवाने लगे। काफी मेहनत के बाद मंदिर का निर्माण पूरा हुआ है।’

महादेवी बताते हैं कि साल 1992 में बाबरी गिरी तो पाकिस्तान में हमारा रहना बहुत मुश्किल हो गया। पाकिस्तान में हमारे कई मंदिर तोड़ दिए गए। इस्लाम धर्म कबूल करने का दबाव भी बढ़ता रहा। उन्होंने कहा कि जब पानी सिर से ऊपर पहुंच गया तो हमें पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान शरण लेने के लिए आना पड़ा।