आइसलैंड के रेक्जाविक से अड़तालीस किलोमीटर पूर्व में स्थित अलथिंग को दुनिया की सबसे पुरानी (930 ई.) संसद की सीट माना जाता है। आइसलैंड समृद्ध, विनम्र और एक लोकतांत्रिक देश है। संसद वाले सभी देश लोकतंत्र नहीं हैं। इस प्रकार के उदाहरण सबको मालूम हैं।
भारत में संसद तो है, लेकिन यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या भारत वास्तव में एक लोकतंत्र है? ऐसे में माननीय प्रधानमंत्री को हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर यह घोषणा करते हुए सुनना आश्वस्त करने वाला था कि भारत ‘एक लोकतंत्र है’। अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में अपने संबोधन में उन्होंने चौदह बार ‘लोकतंत्र’ शब्द का इस्तेमाल किया। समाचार रिपोर्टों में कहा गया है कि उन्होंने वाइट हाउस में एक रिपोर्टर के सवाल पर अल्पसंख्यक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ‘दरकिनार कर दिया’।
वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्टर सबरीना सिद्दीकी भाग्यशाली थीं कि उन्हें एक प्रश्न पूछने की इजाजत दी गई- एक ऐसा विशेषाधिकार, जिससे पिछले नौ वर्षों के दौरान भारत में पत्रकारों को वंचित रखा गया है। प्रधानमंत्री का उत्तर (अनूदित) आश्चर्यजनक रूप से लंबा और विस्तृत था:
सवाल: ‘…आप और आपकी सरकार अपने देश में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों में सुधार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम रखने के लिए क्या कदम उठाने जा रही है?’
जवाब: ‘मैं सचमुच हैरान हूं कि लोग ऐसा कहते हैं। और इसलिए, लोग यह नहीं कहते हैं। वास्तव में, भारत एक लोकतंत्र है।’
और प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि ‘जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं है।’
भारत में 20.3 करोड़ मुसलिम (जनसंख्या का 14.2 फीसद), 3.3 करोड़ ईसाई (2.3 फीसद), 2.4 करोड़ सिख (1.7 फीसद) और अन्य अल्पसंख्यक हैं। क्या उनके साथ भेदभाव किया जाता है? यह सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए। यहां कुछ तथ्य हैं, जिनके जरिए आपको उत्तर ढूंढने में मदद मिल सकती है:
धार्मिक भेदभाव
उन्यासी सदस्यीय मंत्रिपरिषद में कोई मुसलिम नहीं है, एक ईसाई और एक सिख है, जबकि लोकसभा और राज्यसभा में भाजपा के 395 सांसद हैं। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल छह मुसलिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था- तीन जम्मू-कश्मीर में, दो पश्चिम बंगाल में और एक लक्षद्वीप में- और वे सभी हार गए। नतीजतन, लोकसभा में मुसलमानों की संख्या केवल 4.42 फीसद है, जबकि जनसंख्या में मुसलमान लगभग 10.5 फीसद हैं।
उत्तर प्रदेश (403 सीटें), गुजरात (182) और कर्नाटक (224) में विधानसभा के पिछले चुनावों में, भाजपा ने एक भी मुसलिम उम्मीदवार नहीं उतारा था। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के 34 न्यायाधीशों में से एक मुसलिम, एक पारसी है और कोई ईसाई और सिख नहीं है। फुसफुसाहट यह है कि ‘एक ही प्रतिनिधि पर्याप्त है’।
भारत के एकमात्र मुसलिम बहुल राज्य जम्मू-कश्मीर को मई, 2019 में विखंडित कर दिया गया और इसका दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश कर दिया गया।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पड़ोसी देशों के मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है। इसमें नेपाल के बौद्ध और ईसाई प्रवासियों तथा श्रीलंका और म्यांमा के किसी भी धर्म के प्रवासियों को शामिल नहीं किया गया है। कर्नाटक में चुनाव की पूर्व संध्या पर भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर मुसलमानों द्वारा हिजाब, हलाल, अजान और प्रार्थनाओं पर विवादों को हवा दी गई थी।
गोरक्षा और लव जिहाद भाजपा द्वारा समर्थित अभियान हैं, जो मुसलिम दुग्ध उत्पादकों, व्यापारियों और मुसलिम युवाओं को निशाना बनाते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2017 से 2021 के बीच धार्मिक समुदायों के बीच हिंसा की 2900 घटनाएं हुईं। 2010 से 2017 के बीच ‘लिंचिंग’ में 28 लोग मारे गए (24 मुसलिम थे)। 2017 में, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने लिंचिंग पर डेटा एकत्र करना बंद कर दिया।
‘आउटलुक’ (13 मार्च, 2023) की एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ईसाइयों को उनकी आस्था पर लक्षित हमलों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें ईसाई सभाओं, चर्चों और शैक्षणिक संस्थानों को खतरा भी शामिल है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी रिपोर्ट, 2022, (15 मई, 2023) में कहा गया है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति बहुत खराब है।
उनचास पेज की रिपोर्ट में ऐसे मामलों के कई उदाहरण दिए गए हैं, जिनमें अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया और उन पर हमला किया गया। नार्वे के वी-डेम इंस्टीट्यूट के चुनावी लोकतंत्र सूचकांक में भारत की श्रेणी 2022 में 100 से गिरकर 2023 में 108 पर आ गई। इसमें भारत को ‘चुनावी निरंकुश’ बताया गया। अमेरिका स्थित फ्रीडम हाउस ने अपनी ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड’ रिपोर्ट में भारत का दर्जा घटाकर ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ कर दिया है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
दिसंबर, 2022 में सात पत्रकार जेल में थे; जिनमें से पांच मुसलिम थे। दो को क्रमश: चौदह महीने (मनन डार) और दो साल (सिद्दीकी कप्पन) के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया। लोगों को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की आलोचना करने पर गिरफ्तार किया गया। मसलन, एक होर्डिंग लगाने के अपराध में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री को 1,105 रुपए की कीमत पर रसोई गैस सिलेंडर की पेशकश करते हुए दिखाया गया था।
तथ्यों की जांच करने वाली वेबसाइट ‘आल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को एक व्यक्ति की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था, जिसने आरोप लगाया था कि जुबैर ने कुछ हिंदू भिक्षुओं को ‘नफरत फैलाने वाला’ कहा था और उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई थी। पुरानी ट्वीटों पर नए आरोप जोड़े गए। अंतत:, सर्वोच्च न्यायालय ने सभी एफआइआर को समाहित किया और जुबैर को भविष्य की एफआइआर सहित सभी मामलों में जमानत दे दी।
अंतरराष्ट्रीय डिजिटल अधिकार संगठन, ‘एक्सेस नाउ’ के अनुसार, 2022 में दुनिया भर में 187 बार इंटरनेट बंद हुआ। भारत में 84 बार बंद हुआ। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023 में, भारत 180 देशों में से 161वें स्थान पर खिसक गया है। मेरी इच्छा है कि प्रधानमंत्री भारत में धार्मिक भेदभाव और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पत्रकारों के सवालों का जवाब दें।