पश्चिम बंगाल के निवर्तमान राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने शनिवार (27 जुलाई, 2019) को कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ‘‘तुष्टिकरण नीति’’ राज्य के सामाजिक सौहार्द्र को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रही है। त्रिपाठी के पांच वर्ष के कार्यकाल के दौरान बनर्जी और उनके बीच कई बार असहमति हुई है। त्रिपाठी ने कहा कि बनर्जी के पास अपने निर्णयों को लागू करने के लिए दृष्टि और शक्ति है लेकिन उन्हें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने और संयमित रहने की जरुरत है। त्रिपाठी ने कहा कि मुख्यमंत्री को प्रत्येक नागरिक से बिना किसी भेदभाव के समान तरीके से व्यवहार करना चाहिए।
त्रिपाठी ने विभिन्न मुद्दों पर सवालों के जवाब में कहा, ‘‘मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास दृष्टि है, अपने निर्णयों को लागू करने की शक्ति है लेकिन उन्हें संयमित भी रहना चाहिए। वह कुछ मौकों पर भावुक हो जाती हैं, इसलिए उन्हें इस पर नियंत्रण रखना होगा।’’ जगदीप धनकड़ 30 जुलाई को पश्चिम बंगाल के नये राज्यपाल के तौर पर शपथ लेंगे। त्रिपाठी ने सवालों के जवाब में कहा, ‘‘उनकी (बनर्जी) तुष्टिकरण की नीति सामाजिक सौहार्द्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली है…मैं समझता हूं कि उन्हें प्रत्येक नागरिक को समान रूप से देखना चाहिए। मेरा मानना है कि पश्चिम बंगाल के प्रत्येक नागरिक से बिना किसी भेदभाव के समान रूप से व्यवहार होना चाहिए।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या वह पश्चिम बंगाल में कोई भेदभाव देखते हैं, 85 वर्षीय त्रिपाठी ने कहा, ‘‘भेदभाव प्रत्यक्ष है। उनके (बनर्जी) बयान भेदभाव दिखाते हैं।’’ उन्होंने राज्य में हिंसा पर भी चिंता जतायी और कहा कि कानून एवं व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि कानून एवं व्यवस्था की स्थिति में काफी सुधार की जरुरत है। मुझे नहीं पता कि लोग हिंसा क्यों अपना रहे हैं। कोई राजनीतिक कारण, कोई साम्प्रदायिक कारण या बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं के प्रवेश का तांता या कई अन्य कारण हो सकते हैं।’’
राज्य में लोकसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद राजनीतिक हिंसा की कई घटनाएं हुईं। इस सवाल पर कि क्या उन्हें लगता है कि वर्तमान में पश्चिम बंगाल में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की जरुरत उत्पन्न हो सकती है, त्रिपाठी ने कोई सीधा उत्तर देने से परहेज किया। उन्होंने कह, ‘‘राष्ट्रपति शासन कुछ परिस्थितियों में लगाया जा सकता है जिसका उल्लेख उच्चतम न्यायालय के कुछ फैसलों में किया गया है।
त्रिपाठी ने कहा, ‘‘कानून एवं व्यवस्था एक राज्य विषय है। इसलिए केवल कानून एवं व्यवस्था की स्थिति का खराब होना हो सकता है कि अपने आप में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए पर्याप्त नहीं हो।’’ उन्होंने कहा कि यदि ऐसे मामले हैं जहां सरकार संविधान के अनुरूप कार्य नहीं कर रही है तब राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। त्रिपाठी और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख बनर्जी पिछले पांच वर्षों में कई बार एक-दूसरे की सार्वजनिक रूप से आलोचना कर चुके हैं। मुख्यमंत्री अक्सर राज्यपाल पर उनकी सरकार को भाजपा नीत केंद्र सरकार के इशारे पर निशाना बनाने और उसके कार्य में हस्तक्षेप करने के आरोप लगा चुकी हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या पश्चिम बंगाल में आम चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से हुए, त्रिपाठी ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की भूमिका की प्रशंसा की लेकिन आरोप लगाया कि निचले स्तर पर काम करने वाले स्वयं का जुड़ाव राजनीतिक पार्टियों से रखते हैं जिससे मतदाताओं का चुनाव प्रक्रिया में विश्वास कम हुआ है। त्रिपाठी ने कहा कि उन्हें शिकायतें मिली कि पश्चिम बंगाल में चुनाव पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं थे।
उन्होंने कहा, ‘‘जो चीज मुझे पसंद नहीं थी वह थी निचले स्तर पर पुलिस का हस्तक्षेप। उच्च पुलिस अधिकारी अच्छे हैं। वे ईमानदार हैं, लेकिन कान्स्टेबल और उपनिरीक्षक स्वयं का किसी न किसी पार्टी से जुड़ाव इस सीमा तक रखते हैं कि वे चुनाव प्रक्रिया में लोगों का विश्वास बरकरार नहीं रख पाये।’’ उन्होंने राज्य में हाल के आंदोलनों का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘आंदोलन तभी शुरू होते हैं जब कोई असफल होता है। यह सामान्य सिद्धांत है और यह विभिन्न स्थिति में लागू होता है।’’
राज्य में पश्चिम बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन परीक्षा के सफल अर्भ्यिथयों द्वारा विरोध प्रदर्शन किये गए हैं जिन्हें अभी तैनाती नहीं मिली है। इसके साथ ही राज्य में प्राथमिक स्कूल शिक्षकों, जूनियर डाक्टर और बिजली विभाग के कर्मचारियों द्वारा भी प्रदर्शन किया गया है।

