मनुष्य अपने पुरुषार्थ के नगाड़े कितने ही क्यों न पीट ले, अपने कर्तव्य के ध्वज हाथ में लेकर उन्मत होकर वह कितना ही क्यों न नाच ले, लेकिन अंत में विशाल और अनंत आकाश के सामने वह ठिगना और अपूर्ण ही रहता है। अपूर्णता ही जीवन का स्थायी भाव है, इस बात का अनुभव देश की सामान्य जनता को लोकसभा में प्रधानमंत्री के विरुद्ध विपक्षियों द्वारा मणिपुर प्रकरण पर लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर हो गया।

उस तथाकथित महामानव की इतनी दुर्दशा हो जाती है कि वह मुंह छुपाने के लिए आश्रय खोजने लगता है। कई व्यक्ति धैर्यवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होने के बावजूद अहंकार से ग्रस्त होने के कारण सफल नहीं हो पाते है। कुछ ऐसी चूक वह कर जाता है जो समाज के लिए अक्षम्य होता है।

असम से कांग्रेस सांसद गौरव गोगई ने पीएम मोदी से तीन सवाल पूछे

असम से कांग्रेस सांसद गौरव गोगई ने चर्चा की शुरुआत करते हुए मणिपुर के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरा। गौरव गोगई ने चर्चा के दौरान केंद्र सरकार से तीन सवाल पूछे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर क्यों नहीं गए? उन्हें वहां के हालात पर बोलने के लिए 80 दिन क्यों लगे? मुख्यमंत्री एन. वीरेंद्र सिंह को हटाया क्यों नहीं गया?

विपक्ष के आरोप का जवाब देने के लिए झारखंड से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे खड़े हुए। उन्‍होंने विपक्ष के आरोपों का खण्डन करते हुए कहा कि विपक्ष को जनता से जुड़े मुद्दों से सरोकार नहीं है। यह प्रस्ताव एक गरीब के बेटे के खिलाफ लाया गया है। समझ में यह बात नहीं आती कि आखिर प्रधानमंत्री कब तक अपनी छवि देश की जनता के बीच निरीह, गरीब और पीड़ित की बनाकर रखेंगे?

No Confidence Motion | Monsoon Session | Gaurav Gogoi |
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान लोकसभा में बोलते असम से कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई। (फोटो- पीटीआई)

जो व्यक्ति लगभग पंद्रह वर्ष तक किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो, नौ वर्षों से देश का प्रधानमंत्री हो, करोड़ों की गाड़ियों में सफर करता हो, अलग विमान में सफर करता हो, दिन में दो-तीन बार कपड़े बदलता हो…क्या ऐसा व्यक्ति भारत में गरीब कहलाता है? अपने को पीड़ित, गरीब, असहाय बताकर सामान्य जनता को हमारे नेता कब तक मूर्ख बनाते रहेंगे।

सच तो यह है कि लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव तो मणिपुर प्रदेश के लिए था, लेकिन निशिकांत दुबे जनता को असली मुद्दे से भटकाकर देश—दुनिया घुमाकर उन्हें गुमराह करते रहे। सच तो देश की जनता ने देख लिया कि इतना रीढ़विहीन और डरपोक राजनेता आज तक देश में कोई दूसरा नहीं हुआ, जो जनता के दुःख-दर्द को सुनने, उन्हें दूर करने के बजाय अपने को ही पीड़ित बताकर उसके समक्ष रोने का अभिनय करने लग जाए।   

राहुल गांधी ने लोकसभा में दूसरे दिन अविश्वास प्रस्ताव पर बहस में हिस्सा लिया। उन्‍होंने जो कहा या पूछा- उस पर सत्‍ताधारी पक्ष की ओर से कोई सीधा जवाब नहीं आया। यह ठीक है कि इस अविश्वास प्रस्ताव से सरकार पर कोई असर पड़ने वाला नहीं था, लेकिन इतना जरूर हुआ क‍ि आम जनता को इस बात पर मनन करने का अवसर मिल गया है कि मणिपुर को इस जातीय हिंसा में किसने और किसलिए झोंका।

No Confidence Motion | Monsoon Session | Rahul Gandhi |
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान लोकसभा में बोलते कांग्रेस नेता राहुल गांधी। (फोटो- पीटीआई)

छोटी-छोटी घटना तो समाज में, गांव में परिवार में होती ही रहती है, लेकिन इतनी बड़ी और हिंसात्मक घटना तो शायद देश में पहली बार घटित हुई है जब महीनों तक मार-काट, आगजनी और यहां तक कि थानों और पुलिस चौकियों पर हमला करके अत्याधुनिक हथियारों को लूट लिया गया हो। अब गौर करने वाली बात यह है कि इन अत्याधुनिक हथियारों का दुरुपयोग ये दंगाई लुटेरे किस प्रकार और किसके लिए करेंगे?

शीर्ष सत्तारूढ़ नेताओं का मौनव्रत साध लेना कहां तक उचित है

मसला बहुत ही गंभीर है, लेकिन इस पर शीर्ष सत्तारूढ़ नेताओं का मौनव्रत साध लेना कहां तक उचित है। अब तो यह बात छोटी पड़ गई है कि दो महिला को 3 मई को निर्वस्त्र करके सारेआम घुमाया गया, उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया, क्योंकि सत्तारूढ़ दल ने आम जन का ध्यान भटकाने के लिए मणिपुर के उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के महत्त्व को यह कहकर कम करने का प्रयास कर दिया है कि राजस्थान, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं जिस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया है।

हद तो तब हो गई जब सत्तारूढ़ ने यह कहना शुरू कर दिया कि मणिपुर की आग को राहुल गांधी और आईएनडीआईए के लगभग 21 सांसदों ने वहां जाकर आमलोगों की भावनाओं को कुरेदा है, जिसके कारण वहां की जातीय हिंसा की आग शांत नहीं हो पाई है। 

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर की घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है। यह बड़ी अजीब बात है कि तीन महीने में लगभग साढ़े छह हज़ार दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुईं जिनकी प्राथमिकी दर्ज की गई, लेकिन इसका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। भला हो सुप्रीम कोर्ट का, जिन्होंने मणिपुर के डीजीपी को सिलसिलेवार ढंग से सारी फाइलों के साथ स्वयं अदालत में उपस्थित रहने का आदेश दिया है।

प्रधानमंत्री पर यही तो आरोप विपक्ष लगा रहा है कि मणिपुर इतने महीनों से जल रहा है, आगजनी हो रही है, नरसंहार हो रहा है, अपराधी स्त्रियों को निर्वस्त्र करके सरेआम घुमाकर उसके साथ दुष्कर्म कर रहे हैं, वहां की गवर्नर का यह कहना है कि इन सारी घटनाओं की जानकारी वह स्वयं केंद्र को देती रहीं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई और वहां इतने बड़े-बड़े कांड होते रहे। दुर्भाग्य यह है कि वहां की जनता की इस व्यथा को अनसुना कर दिया गया। इसलिए तो विपक्ष और विशेष रूप से राहुल गांधी ने संसद में कहा कि आपने मणिपुर को भारत का अपना अभिन्न हिस्सा माना ही नहीं, इसलिए प्रधानमंत्री मणिपुर नहीं गए।

मणिपुर प्रकरण इतना गंभीर हो गया है कि देश ही नहीं, विदेश में भी इस पर भारत सरकार की थू-थू हो रही है। याद करिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब फ्रांस यात्रा पर थे, तो उनके वहां रहते 27 यूरोपियन देशों ने मणिपुर की घटना पर भारत के विरुद्ध एक प्रस्ताव पेश कर दिया था, लेकिन उसकी भी परवाह न करते हुए सरकार ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।

देश इस बात से दुखी है कि अपने ही देश के एक राज्य में इतनी वीभत्स घटना घटित हो गई और प्रधानमंत्री ने उसका कोई संज्ञान नहीं लिया। सामान्य जन का मानना है कि वहां के पीड़ितों के दर्द को सहलाने के लिए और उनकी समस्या हल करने के लिए यदि प्रधानमंत्री का एक दौरा हो जाता, तो उन्हें राहत मिलती। देखना यह है कि इस अविश्वास प्रस्ताव के बाद सत्तारूढ़ दल मणिपुर प्रकरण पर कोई ठोस कदम उठा पाते हैं या नहीं अथवा प्रधानमंत्री इस मणिपुर का दौरा करके मामले पर कोई ठोस कार्रवाई करते हैं या नहीं। वैसे प्रधानमंत्री ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान मणिपुर के लोगों को विश्वास दिलाया है कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है। 

निशिकांत ठाकुर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)