Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर को लेकर दुनिया के कई देशों में जाने वाले भारतीय सांसदों के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भारत सरकार ने टीएमसी के सांसद यूसुफ पठान का नाम भी शामिल था। इस पर टीएमसी ने आपत्ति जताई थी और यह तक कहा गया था कि इस बारे में केंद्र ने टीएमसी से सलाह नहीं ली थी।
टीएमसी ने इसको लेकर सीएम ममता बनर्जी के भतीजे और डायमंड हार्बर लोकसभा सीट से सांसद अभिषेक बनर्जी के नाम की सिफारिश की है। अभिषेक को जेडी(यू) के संजय कुमार झा की अध्यक्षता वाले समूह में युसुफ पठान की जगह शामिल किया गया है। यह प्रतिनिधिमंडल इंडोनेशिया, मलेशिया, दक्षिण कोरिया, जापान और सिंगापुर की यात्रा करेगा। सीपीआई(एम) सांसद जॉन ब्रिटास, बीजेपी सांसद अपराजिता सारंगी और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद भी इस ग्रुप में शामिल हैं।
किरेन रिजिजु से की थी ममता बनर्जी ने सिफारिश
पार्टी का यह रुख परिवर्तन कथित तौर पर तब आया जब केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने टीएमसी अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बात की और उन्होंने प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने के लिए अभिषेक के नाम की सिफारिश की। इसके तुरंत बाद, शिवसेना (यूबीटी) ने पोस्ट किया कि उसके अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को सोमवार को रिजिजू का फोन आया था, जिसमें सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के बारे में बताया गया था।
इसमें कहा गया कि यह प्रतिनिधिमंडल राजनीति नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ भारत के बारे में है और इस बात का भरोसा दिलाए जाने पर हमने सरकार को भी भरोसा दिलाया है कि हम इस प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से वही करेंगे जो हमारे देश के लिए सही और जरूरी है। इसमें यह भी कहा गया कि पार्टी सांसद प्रियंका चतुर्वेदी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होंगी।
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शिवसेना सांसद संजय राउत ने बताया था बारात
दो दिन पहले शिवसेना सांसद संजय राउत ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने के केंद्र के फैसले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया था। इसे बारात बताकर खारिज कर दिया था। प्रतिनिधिमंडल के समय और उद्देश्य पर सवाल उठाते हुए राउत ने इंडिया ब्लॉक से दूर रहने का भी आग्रह किया था और दावा किया था कि संसद में महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व होने के बावजूद शिवसेना, टीएमसी, समाजवादी पार्टी या आरजेडी से सलाह नहीं ली गई।
बीजेपी पर राष्ट्रीय सुरक्षा के एक गंभीर मुद्दे को “राजनीतिक तमाशा” में बदलने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि आम सहमति बनाने के बजाय, सरकार विपक्षी आवाज़ों को नज़रअंदाज़ करते हुए सांसदों को चुन रही है। यह कूटनीति नहीं है – यह एक दिखावा है।
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