Delhi government Hospitals: दिल्ली के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के आकलन को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया है। एक्सपर्ट कमेटी केंद्र और दिल्ली सरकार के साथ-साथ दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित अस्पतालों में सुविधाओं में सुधार के तरीके सुझाएगी।
दिल्ली हाई कोर्ट की एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की डिवीजन बेंच ने एक आदेश पारित करते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में बुनियादी ढांचे जैसे- दवा, मशीन और मैनपावर की कमी है।
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार के 19 हॉस्पिटल में केवल 6 सीटी स्कैन मशीनें ही हैं, जो तीन करोड़ की ज्यादा से आबादी की जरूरतें पूरी करती हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा कि इसके बुनियादी ढांचे को कई गुना बढ़ाने की जरूरत है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह भी साफ है कि जिन अधिकारियों को अस्पताल का प्रबंधन और संचालन की जिम्मेदारी मिली है, वे अपने काम को ठीक से नहीं कर रहे हैं। कोर्ट ने साथ ही कहा कि सरकारी अस्पतालों में सुधार के लिए काफी खर्च की जरूरत है, जिससे अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार किया जा सके।
हाई कोर्ट ने कमेटी से क्या कहा?
स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के मुद्दे पर विस्तार से विचार करें और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के अनुकूलन के तरीकों और साधनों का सुझाव दें।
अस्पताल में आईसीयू और अन्य बिस्तरों के संबंध में वास्तविक समय की जानकारी प्राप्त करने के लिए एक नियंत्रण कक्ष स्थापित करने के लिए तंत्र तैयार करना।
विभिन्न सरकारी अस्पतालों में दवाओं, उपकरणों और उन उपकरणों के प्रबंधन के लिए मैनपावर की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के तरीके और साधन सुझाएं।
स्थानीय अस्पताल को मजबूत करके रेफरल अस्पताल पर तनाव कम करने के तरीके और साधन सुझाएं।
नियमित कर्मचारियों की नियुक्ति होने तक अनुबंध के आधार पर विशेषज्ञों (शिक्षण/गैर-शिक्षण), चिकित्सा अधिकारियों और पैरामेडिक्स के रिक्त पदों को तुरंत भरने के लिए एक तंत्र बनाएं। साथ ही अन्य सिफ़ारिशें जो समिति उचित समझे।
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली में चिकित्सा बुनियादी ढांचे के मुद्दे से संबंधित दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। एमिकस क्यूरी (अदालत के मित्र) वरिष्ठ वकील अशोक अग्रवाल ने हाल ही में इस मामले में एक आवेदन दायर किया था। जिसमें कोर्ट के ध्यान में एक घटना लाई गई थी, जहां चार सरकारी अस्पतालों द्वारा इलाज से इनकार करने के बाद चलती पुलिस वैन से कूदने वाले एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।
इसके बाद दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर स्वीकार किया कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और पैरामेडिक्स की कमी है। उन्होंने यह भी कहा कि नौकरशाही उनके आदेशों का पालन नहीं कर रही है।
इस बीच, स्वास्थ्य सचिव खुद कोर्च में पेश हुए और भारद्वाज द्वारा लगाए गए आरोप से इनकार किया। सचिव ने भी मंत्री की दलीलों का खंडन किया और रिक्तियों और बुनियादी ढांचे के संबंध में एक रिपोर्ट दी।
इस बीच एमिकस क्यूरी ने कहा कि नौ सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड नहीं थे और कई संस्थानों में चिकित्सा उपकरण काम नहीं कर रहे थे। उन्होंने कहा कि रेडियोलॉजी और इमेजिंग जैसे विभागों में मरीजों को मई 2025 से मार्च 2027 तक की नियुक्तियां दी जा रही हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट ने दलीलों पर विचार करने के बाद मुद्दों की जांच करने और दिल्ली में चिकित्सा बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए सुझाव देने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन का आदेश दिया।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि विशेषज्ञ समिति हाई कोर्ट को हर महीने की रिपोर्ट देगी। साथ ही महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल के पहलू को प्रधानता देगी और स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव के साथ-साथ एमिकस क्यूरी अग्रवाल को दिए गए सुझावों पर विचार करना चाहिए। कोर्ट ने आदेश दिया कि कमेटी चार सप्ताह में एक अंतरिम रिपोर्ट तैयार करे और उसे रिकॉर्ड पर रखे। इस मामले में अगली सुनवाई 1 अप्रैल को होगी।