भारतीय रेल के प्रत्येक मंडल को इसके तहत आने वाले एक स्टेशन को मॉडल स्टेशन के रूप में विकसित करने के लिए 20 करोड़ रुपये की राशि दी गई है। सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। सूत्रों ने बताया कि 68 रेलवे जोन के मंडलीय रेलवे प्रबंधकों को संबंधित रेलवे स्टेशनों की पहचान करने और वहां यात्री सुविधाओं और बुनियादी ढांचा से जुड़ी सुविधाओं जैसे लिफ्ट के प्रबंधन, पैदल पारपथ, सीट प्लेटफॉर्म और पेय जल उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है।
सूत्रों ने बताया , ‘‘सभी 68 मंडलों को अगले दो महीने के भीतर अपने पंसद के रेलवे स्टेशन को विकसित करने को कहा गया है। इसके बाद ये मॉडल स्टेशन अन्य स्टेशन को विकसित करने के रूप में उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाएंगे। प्रत्येक स्टेशन पर 20 करोड़ रुपये का खर्चा किया जाएगा।” आने वाले महीनों में जिन स्टेशनों को विकसित किया जाना हैं उनमें लोनावाला, वाराणसी सिटी, पुणे, मथुरा, पटना, हावड़ा, इलाहाबाद, उदयपुर, बीकानेर, वारंगल, दिल्ली मेन, अंबाला, रायपुर, अहमदाबाद और मैसूर शामिल हैं। इसी बीच रेलवे बोर्ड के नवनियुक्त अध्यक्ष विनोद कुमार यादव ने 68 मंडलों के अधिकारियों के साथ रविवार को बैठक की और रक्षा, सुरक्षा, राजस्व और बुनियादी ढांचों जैसे मुद्दों पर चर्चा की।
वहीं, इससे पहले भारतीय रेलवे ने अपने नेटवर्क से मानवरहित फाटकों को खत्म करने का अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है, बस इलाहाबाद संभाग का एक फाटक इसका उपवाद है। पिछले साल 3,478 मानवरहित फाटक खत्म किये गये। खत्म किया जाने वाला अंतिम मानवरहित फाटक जोधपुर संभाग में बाड़मेर-मुनाबाओ खंड में था जिसे मानवयुक्त बनाया गया। रेलवे के लिए इन मानवरहित फाटकों को खत्म करना उसके अपने नेटवर्क में सुरक्षा में सुधार की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है। वास्तव में, जब से रेलमंत्री पीयूष गोयल ने इस काम को प्राथमिकता बनाया तब से ऐसे फाटकों पर मौतों में भारी कमी आयी।
एक अधिकारी ने कहा, ‘‘यह रेलवे के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि ये (मानवरहित फाटक) मौत के भंवरजाल हैं। जिस रफ्तार से यह काम पूरा किया गया है, इसपर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। वर्ष 2009-10 में केवल 930 मानवरहित फाटक खत्म किये गये थे जबकि 2015-2016 में 1253 मानवरहित फाटक खत्म किये गये। पिछले साल सभी संभागों में 3,478 मानवरहित फाटक खत्म किये गये। पिछले सात महीने में यह काम पिछले सालों की तुलना में पांच गुणा तेजी से किया गया।’’
2014-2015 में मानवरहित फाटकों पर विभिन्न घटनाओं में 130 लोगों की जान चली गयी थी । 2015-16 में ऐसे फाटकों पर 58 लोगों और 2016-17 में 40 लोगों की मौतें हुईं। 2017-2018 में 26 लोग ऐसे फाटकों पर अपनी जान गंवा बैठे जबकि पहली अप्रैल, 2018 से 15 दिसंबर,2018 तक 16 लोग काल कवलित हो गये, उनमें 13 लोग कुशीनगर हादसे में मारे गये जिनमें ज्यादातर बच्चे थे। पिछले साल अप्रैल में हुए कुशीनगर हादसे के बाद ही गोयल ने सभी मानवरहित फाटकों को खत्म करने की समय सीमा 2020 से घटाकर सितंबर, 2019 कर दी।

