देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 में प्रधानमंत्री बने थे और 20 अगस्त को मात्र 23 दिन बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था।

क्यों? कहा जाता है कि कांग्रेस ने उनको सही वक्त पर हटवाने के लिए ही समर्थन देकर उनको पीएम बनवाया था। चौधरी साहब पर सत्ता-लोलुप होने का लांछन भी लगा था। लेकिन राजनीति में चीजें इतनी सरल नहीं होतीं। एक पक्ष इस दिग्गज नेता का भी था। आइए, दिग्गज किसान नेता की 34वीं पुण्यतिथि पर इस्तीफे उसका पक्ष जानते हैं।

अपनी बात उन्होंने एक समय की लोकप्रिय साप्ताहिक पत्रिका रविवार के साथ एक साक्षात्कार के दौरान शेयर की थी। इंटरव्यू लेने वाले थे स्वर्गीय उदयन शर्मा, जो उस वक्त इस पत्रिका के सम्पादक थे। इस बातचीत में चौधरी साहब ने साफ कहा था कि इंदिरा गांधी चाहती थीं कि मैं संजय गांधी के खिलाफ मामले वापस ले लूं। मैंने इनकार कर दिया। नतीजतन, 19 अगस्त को इंदिरा ने सरकार से कांग्रेस का समर्थन वापस ले लिया और 20 तारीख को उन्होंने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। उसी दिन उनको विश्वास मत हासिल करना था। लेकिन वे कांग्रेस के समर्थन के बिना सदन का सामना करने की स्थिति में नहीं थे।

साक्षात्कार में चरण सिंह कहते हैं कि इंदिरा गांधी को लेकर उन्हें कभी भ्रम न था। पर उनके समर्थन से सरकार इसलिए बना ली कि मामला राष्ट्रीय एकता से जुड़ा था। फिर, उन्होंने यह समर्थन बिना शर्त दिया था। हमने सरकार बनाई थी राष्ट्र निर्माण, अच्छे वातावरण और राष्ट्रीय अनुशासन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए।

लेकिन, शीघ्र ही इंदिरा के करीबियों के संदेश आने लगे…संजय के खिलाफ मुकदमे उठवाइए..वरना 20 तारीख को विश्वास मत पर समर्थन न मिलेगा। साक्षात्कार के दौरान चौधरी साहब कहते हैं यह मूल्यों वाली राजनीति नहीं थी। वे उसूलों की राजनीति करती ही नहीं थीं। इतना कहकर चौधरी साहब ने हरियाणा और बिहार की सरकारों को कांग्रेस के समर्थन की याद दिलाई। बोले, यह समर्थन उस पार्टी की सरकारों के लिए था जिसमें जनसंघ का वर्चस्व था। वे कहते हैं कि मेरे लिए उन लोगों के खिलाफ मुकदमे वापस लेना मुमकिन ही नहीं था, जिन्होंने इमरजेंसी में घोर अत्याचार किए थे। ब्लैकमेल की राजनीति मुझे एक दिन के लिए स्वीकार न थी।

चौधरी साहब बताते हैं कि 19 तारीख को विश्वास मत की पूर्व संध्या पर उनको संदेश मिला कि ‘किस्सा कुर्सी का’ फिल्म वाले केस को लेकर जारी सरकारी अधिसूचना वापस ली जाए। इस केस में संजय गांधी आरोपी थे। बस यही क्षण था कि मैंने सरकार बचाने की जगह नए चुनाव के लिए जनता के पास जाने का फैसला ले लिया और 20 तारीख को समर्थन वापसी की घोषणा के साथ इस्तीफा दे दिया।