वी. कौशिक कुमार

नवीन पटनायक के नेतृत्व में लगभग 25 साल तक बीजू जनता दल के शासन के बाद ओडिशा की राजनीति अब एक नए युग में प्रवेश कर रहा है। बीजेपी इस राज्य के लोगों की उम्मीदों और अपेक्षाओं को पूरा करने की कोशिश करेगी। यहां के लोगों ने न केवल पार्टी को पूर्वी भारत में पहली बार सरकार बनाने का मौका दिया, बल्कि नरेंद्र मोदी सरकार को 20 सांसद भी दिए। यह एनडीए के सबसे बड़े सहयोगी टीडीपी से चार अधिक हैं। इस काम के लिए पार्टी ने मोहन चरण माझी को चुना है, जो बुधवार को भुवनेश्वर में एक भव्य समारोह में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले रहे हैं।

चुनावों के बाद नए सीएम की घोषणा में एक हफ्ता लग गया

राज्य में एक साथ हुए चुनावों के नतीजों के बाद नए सीएम की घोषणा में एक हफ्ता लग गया, जो संभवतः उस सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श का संकेत है, जो एक ऐसे नेता को चुनने में किया गया होगा, जो न केवल लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरे, बल्कि बीजेपी के बड़े डबल इंजन सिस्टम का एक प्रभावी घटक हो। माझी इस काम में बिल्कुल फिट बैठते हैं।

वह एक आदिवासी नेता हैं और चार बार विधायक रह चुके हैं

वह एक आदिवासी नेता हैं और चार बार विधायक रह चुके हैं। बीच में 10 साल का ब्रेक भी ले चुके हैं। इससे शायद उन्हें जमीनी स्तर पर अनुभव मिला है। हालांकि वे लोगों के मुद्दों पर मुखर होने के लिए जाने जाते हैं। इसके कारण कई बार उन्हें कथित रूप से अजेय बीजेडी शासन में टकराव का सामना करना पड़ा। गुटबाजी वाली राज्य भाजपा इकाई में उनकी स्वीकार्यता ही उनकी खूबी है। बेशक, उन्हें सीएम के रूप में उस स्वीकार्यता को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

लेकिन सबसे बड़ी चुनौती उस नेता की जगह लेना होगी जिसने उनसे पहले 24 साल तक राज्य का नेतृत्व किया। और उस पीढ़ी की उम्मीदों पर खरा उतरना होगा जो नवीन पटनायक के शासन काल में ही पैदा हुई और उन्हीं के शासनकाल में वोट देती रही है। उनकी तुलना पूर्व सीएम और राजनेता नवीन पटनायक से की जाएगी, जिनके अभियान से ज्यादा उनके प्रति लोगों का भावनात्मक लगाव बढ़ा है।

एक ऐसे राज्य के लिए जो कभी अपने समृद्ध इतिहास की तुलना में गरीबी की कहानियों की वजह से ज्यादा चर्चित था। पिछले दो दशकों में ओडिशा ने एक लंबा सफर तय किया है। अब राज्य अपनी इस आकांक्षा को पूरा करने और हासिल करने की आदत डाल रहा है।

बीजेपी के लिए परीक्षा अब शुरू हुई है। वास्तव में पहला कदम सही रहा है। 52 साल की उम्र में सीएम नई ऊर्जा लाने में सक्षम युवा हैं। अपने सरपंच के दिनों से शुरू होने वाले जमीनी अनुभव को देखते हुए उन्हें परिपक्व नेता माना जाने लगा है। वह झारखंड के करीब और खनिज से भरा उत्तरी ओडिशा की सीट क्योंझर का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां पहले कभी कोई शीर्ष नेता नहीं रहा। उनकी यहां तक पहुंच उस क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है, जो कभी बीजेडी के आने से पहले बीजेपी का गढ़ था।

सीएम के रूप में माझी बीजेपी की आदिवासी समुदाय तक पहुंच के अनुकूल भी हैं। राज्य की आबादी का 20% से अधिक आदिवासी है। यह पार्टी के उस आदिवासी छवि में भी इजाफा करता है, जिसमें पहले मयूरभंज से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अब पड़ोसी क्योंझर से माझी को शीर्ष पदों पर लाया गया। दोनों ही संथाल समुदाय से हैं, और इन पदों पर पहुंचने तक दोनों ही देश में अपेक्षाकृत कम जाने जाते थे।

केवी सिंह देव (K V Singh Deo) और प्रावती परिदा (Pravati Parida) को दो उपमुख्यमंत्री के रूप में चुनना भी क्षेत्रीय संतुलन की पटकथा के अनुकूल है। छह बार विधायक रह चुके सिंह देव के पास मंत्री का अनुभव है। सन 2000 से 2009 के बीच बीजेपी राज्य में बीजेडी की जूनियर पार्टनर थी। बोलनगीर जिले के पटनागढ़ के तत्कालीन राजघराने से ताल्लुक रखने वाले सिंह देव के चयन को मोटे तौर पर सरकार में पश्चिमी ओडिशा का प्रतिनिधित्व माना जा रहा है।

इसी तरह पुरी जिले के नीमपारा से पहली बार विधायक बनी परिदा को भी उपमुख्यमंत्री के रूप में चुना गया है। राज्य में पार्टी की महिला शाखा का नेतृत्व करने का अनुभव रखने वाली 57 वर्षीय नेता को चुनकर बीजेपी ने दो काम पूरे किए हैं। एक तटीय ओडिशा को प्रतिनिधित्व देना और दूसरा एक महिला नेता को वरिष्ठ पद पर बिठाना। पार्टी शायद अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश भी देना चाहती थी कि वफादारी रखने वाले को पुरस्कृत किया जाएगा।