ओडिशा में ओबीसी सर्वे की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। आज शुरू हुआ ये सर्वे 27 मई तक चलने वाला है। इस सर्वे के जरिए पिछड़ेपन की सामाजिक और शैक्षणिक स्थितियों का जायजा लिया जाएगा। इसके अलावा परिवार में कितने सदस्य हैं, कैसे घर में वे रह रहे हैं, इन पहलुओं को भी सर्वे में शामिल किया जाएगा। बिहार के बाद ओडिशा देश का दूसरा राज्य बन गया है जहां पर ओबीसी सर्वे किया जा रहा है।
टाइमिंग सटीक, ओबीसी सर्वे से क्या होगा हासिल?
अब इस ओबीसी सर्वे की टाइमिंग मायने रखती है, इस समय देश में जातिगत जनगणना को लेकर बहस चल रही है, कई राज्यों द्वारा मांग भी उठाई जा रही है कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो लगातार ये मांग उठा ही रहे हैं, उनकी तरफ से तो सबसे पहले बिहार में ओबीसी सर्वे करवा भी दिया गया है। उसी कड़ी ओडिशा ने भी अपने कदम बढ़ा दिए हैं। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर ये ओबीसी सर्वे के मायने क्या हैं? आखिर इस एक सर्वे से ऐसा क्या बदल जाएगा?
जानकारी के लिए बता दें कि ओडिशा में जो ओबीसी सर्वे किया जा रहा है, इसके जरिए 208 ओबीसी समुदायों की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का सटीक आंकलन किया जाएगा और फिर उसी आधार पर विकास योजनाओं को उनके लिए लागू किया जाएगा। जानकार मानते हैं कि इस सर्वे से दो लाभ होंगे, एक तो ये कि ओबीसी वर्ग के बीच में भी सरकारी योजनाओं का लाभ ठीक तरह से पहुंच पाएगा, वहीं दूसरी तरफ इसका सियासी फायदा ये रह सकता है कि ओबीसी सर्वे के जरिए इस समाज के बीच में सीएम पटनायक अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवा सकते हैं।
बीजेपी को ओडिशा में रोकने की कोशिश?
यहां ये समझना भी जरूरी है कि ओबीसी वोटों के बीच बीजेपी की लोकप्रियता पिछले कुछ समय में काफी बढ़ गई है। कई राज्यों में पार्टी ने इस समाज को अपने पाले में किया है, ओडिशा में धर्मेंद्र प्रधान जैसा एक बड़ा चेहरा उनके पास है। ऐसे में अब बीजेपी के विस्तार को रोकने के लिए भी ओबीसी को खुश रखना बीजेडी के लिए सियासी रूप से जरूरी हो जाता है। बड़ी बात ये भी है कि मोदी सरकार ने अपने वर्तमान मंत्रिमंडल में ओबीसी को अच्छी संख्या दे रखी है।
ओबीसी के लिए बीजेपी की क्या रणनीति?
आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान मंत्रिमंडल में 27 ऐसे मंत्री हैं जो ओबीसी समाज से आते हैं। इसके अलावा जिस तरह से सरकार कुछ समय पहले ही मेडिकल, डेंटल और दूसरे टेक्निकल कॉलेजों में 27 प्रतिशत सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित की हैं, वो दांव भी सियासी रूप से हिट माना जा रहा है। इस समय ओडिशा में बीजेडी के लिए ओबीसी वोटबैंक चिंता का सबब बना हुआ है। उसी वजह से बीजेपी अपनी रणनीति में लगातार बदलाव कर रही है। पार्टी राज्य में इस समय ओबीसी की अलग-अलग जातियों पर फोकस जमा रही है, फिर चाहे वो यादव हो, तेली हो या हो सुंधी। दूसरी तरफ बीजेपी लगातार ऐसा प्रचार कर रही है कि ओबीसी समाज को खुश करने के लिए बीजेडी चुनावी मौसम में उन्हें जमीन दे रही है, जबकि बीजेपी संविधान के तहत अधिकार देने की बात कर रही है।
21 लोकसभा सीटें और बीजेपी का बढ़ता वोट शेयर
जानकारी के लिए बता दें कि ओडिशा से लोकसभा की 21 सीटें निकलती हैं। अभी तक तो बीजेडी ने राज्य में अपना दबदबा कायम रखा हुआ है, लेकिन जिस तरह से बीजेपी का वोट शेयर पिछले कुछ सालों में बढ़ा है, पार्टी इसे एक बड़ी चुनौती के रूप में देख रही है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने इस राज्य से आठ सीटें निकाल ली थीं। इसी वजह से अब जब 2024 का लोकसभा चुनाव करीब है, ओबीसी वोटरों को साध बीजेडी अपनी स्थिति को सुरक्षित करना चाहती है।