पिछले साल जून 2023 में ओडिशा के बालासोर में एक भयानक रेल हादसा हुआ था। इस रेल हादसे में 297 लोग मारे गए थे और 800 से अधिक लोग घायल हुए थे। हालांकि पीड़ितों के परिजन अभी भी मुआवजे के लिए परेशान हैं। सैकड़ो पीड़ितों ने रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल का रुख किया है। रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के सामने अधिक मुआवजे के लिए 841 याचिकाएं दायर की गई है। रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में पीड़ित परिजन अधिक मुआवजे के लिए याचिका दायर करते हैं। परिवारों का प्रतिनिधित्व वकीलों द्वारा किया जाता है।

मुआवजे के लिए पीड़ितों ने किया क्लेम ट्रिब्यूनल का रुख

इंडियन एक्सप्रेस ने रिकॉर्ड को पढ़ा और इसमें पता चला कि मुआवजे के लिए अधिकतम राशि पश्चिम बंगाल के निवासी को दी गई। इस हादसे में उसके लेफ्ट हैंड की कलाई जल गई थी और उसका दाहिना हाथ फैक्चर हो गया था। नियम के अनुसार उसे 2 लाख रुपये का मुआवजा मिलना था लेकिन उसे 5.4 लाख रुपये मिला। वहीं तीन मामलों में अनुग्रह राशि से केवल 10 हजार रुपये अधिक मुआवजा दिया गया।

वहीं रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल ने मौतों के 183 मामले में हर एक परिजन को 8 लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दिया है। इन परिवारों ने कहा था कि जिनकी मृत्यु हुई है, वह परिवार में एकमात्र कमाने वाले थे। वहीं मौत से जुड़े 9 मामलों में अभी याचिका लंबित है। इसमें कोलकाता के 4, पटना के तीन और रांची के दो मामले शामिल हैं। वहीं कोलकाता के एक मामले को खारिज कर दिया गया।

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जब यह हादसा हुआ तो दौरान रेलवे ने मारे गए लोगों के परिजनों के लिए 10 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायल और विकलांगों के लिए 2 लाख रुपये और मामूली रूप से घायलों के लिए 50 हजार के मुआवजे का ऐलान किया था। हादसे के 16 महीना में 1102 यात्रियों में से 76% लोगों ने बेहतर राहत के लिए कोलकाता, भुवनेश्वर, रांची, पटना, चेन्नई और भोपाल में रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल का रुख किया है। मृतकों के परिवारों द्वारा 193 आवेदन तैयार किए गए हैं जबकि घायलों द्वारा 648 आवेदन दायर किए गए हैं। बता दें कि 496 घायलों और 192 मृतकों के मामले में मुआवजा मिल चुका है।

90 घायलों को नहीं मिला मुआवजा

90 घायलों ने ट्रिब्यूनल को बताया कि उन्हें रेलवे एवं राज्य सरकारों से मुआवजे का एक भी रुपये नहीं मिला है। इन सभी को क्लेम ट्रिब्यूनल द्वारा राहत दी गई। रेलवे ने एक मृतक के परिवार को भी मुआवजा नहीं दिया है। बता दें कि 297 मृतकों में से 27 लोगों की पहचान नहीं हो पाई थी। घायलों के 215 मामलों में रेलवे ने दुर्घटना में पीड़ितों की प्रेजेंस पर सवाल उठाया। उनके यात्रा के प्रूफ की भी मांग की गई है। 450 घायलों के मामलों में 70% लोग कानून के तहत योग्य नहीं थे। इसका मतलब हुआ कि प्रभावितों की ओर से जो मुआवजा मांगा गया था, उन्हें उससे कम मुआवजा मिला।

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रेलवे ने बताया है कि उसने दुर्घटना के पीड़ितों को कुल 32.8 करोड़ रुपये के मुआवजे का भुगतान किया है। मृतकों के परिवारों को 27 करोड़ रुपये और घायलों को 5.8 करोड़ रुपये दिए गए हैं। दक्षिण पूर्व रेलवे ने अपनी वेबसाइट पर दावा किया है कि उसने 817 मामलों में रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के आदेशों के अनुसार मुआवजे के रूप में कुल 21.84 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।

रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के रिकॉर्ड से यह भी पता चला कि कई घायलों को रेलवे ने यह साबित करने के लिए कहा कि वह वास्तव में ट्रेन में बैठे हुए थे। ऐसा ही एक मामला पश्चिम बंगाल के निवासी मोहम्मद अहमद हलदर के मामले में निकल कर सामने आया। हलदर बिना रिजर्व टिकट के पश्चिम बंगाल के शालीमार स्टेशन से कोरोमंडल एक्सप्रेस में चढ़े थे। उन्होंने जनरल टिकट लिया और शौचालय के पास फर्श पर बैठ गए। जब दुर्घटना हुई उसके बाद उनकी कमर, दाहिनी बांह और बाएं हाथ में चोट आई। हालांकि उन्हें रेलवे की ओर से कोई मुआवजा नहीं मिला। उन्होंने भी कोलकाता रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के सामने एक आवेदन दायर किया है।

हलदर से पूछा गया कि उन्हें साबित करना होगा कि वह ट्रेन में थे। इसको लेकर उन्होंने जवाब दिया कि जब वह दुर्घटना से बाहर निकले तो उनका टिकट गायब हो गया। हालांकि बाद में उन्हें 20 हजार का मुआवजा दिया गया।