निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से देश में उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में बढ़ोतरी के रुझान को देखते हुए यह राहत दी गई है। खुदरा बाजार में कीमतों में एक साल पहले की तुलना में 11.5 जबकि पिछले माह के मुकाबले 3 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई है।
भारतीय बाजार में गैर- बासमती सफेद चावल की पर्याप्त उपलब्धता और घरेलू बाजार में मूल्य वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए भारत सरकार ने इस किस्म की निर्यात नीति में संशोधन किया है। इस पर लगने वाले 20 फीसद निर्यात शुल्क को सरकार ने हटाकर तुरंत प्रभाव से ‘प्रतिबंधित’ श्रेणी में डाल दिया है। देश के कुल चावल निर्यात में गैर- बासमती सफेद चावल का 25 फीसद योगदान है। इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से देश में उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।
घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में बढ़ोतरी के रुझान को देखते हुए यह राहत दी गई है। खुदरा बाजार में कीमतों में एक साल पहले की तुलना में 11.5 जबकि पिछले माह के मुकाबले 3 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई है।घरेलू बाजार में कीमतें कम करने और पर्याप्त उपलब्धता के लिहाज से पिछले साल 8 सितंबर को गैर-बासमती सफेद चावल पर 20 फीसद निर्यात शुल्क लगाया गया था।
निर्यात शुल्क लगाने के बावजूद इस किस्म के चावल का निर्यात 33.66 लाख मीट्रिक टन (सितंबर-मार्च 2021-22) से बढ़कर 42.12 लाख मीट्रिक टन (सितंबर- मार्च 2022-23) तक पहुंच गया। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में अप्रैल से जून की अवधि के दौरान इस किस्म के 15.54 लाख मीट्रिक टन चावल का निर्यात किया गया।
वित्त वर्ष 2022-23 की इसी अवधि (अप्रैल- जून) के दौरान केवल 11.55 लाख मीट्रिक टन चावल का निर्यात हुआ था यानी 35 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। निर्यात में तेजी से होने वाली बढ़ोतरी के लिए भू-राजनीतिक परिदृश्य, अल-नीनो धारणा समेत दुनिया के चावल उत्पादक देशों में कठिन जलवायु परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं।
बहरहाल, गैर-बासमती चावल (उसना चावल) और बासमती चावल की निर्यात नीति में कोई बदलाव नहीं किया गया है। कुल चावल निर्यात में इनका योगदान ही अधिक होता है। इससे किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजार के लाभकारी दाम का लगातार लाभ मिलता रहेगा।