मोदी सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया। तय पहले से था, नंबर विपक्ष के पास कभी नहीं था, लेकिन फिर भी ये दांव चला गया। तर्क दिया गया कि इस बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ेंगे। उन्हें लगा इस बहाने पीएम मोदी को बोलने पर मजबूर कर दिया जाएगा। अब पीएम मोदी ने बोला, पूरे दो घंटा 13 मिनट तक बोला, मणिपुर के अलावा भी कई मुद्दों पर भी अपनी बात रखी और कह सकते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नेरेटिव पूरी तरह सेट कर दिया गया। अब ऐसा नहीं है कि सिर्फ पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने इरादे साफ किए हों, जो इंडिया गठबंधन ये अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था, उसने भी बता दिया कि वो किस पिच पर आगामी चुनाव खेलने जा रहा है।

बीजेपी का डबल इंजन, विपक्ष के लिए बनी संजीवनी

अब वैसे तो कई मुद्दों को लेकर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान चर्चा हुई, लेकिन क्योंकि विपक्ष मणिपुर को केंद्र में रखना चाहता था, इससे साफ है कि इस मुद्दे को वो चुनावी मौसम में पूरी तरह इनकैश करना चाहता है। ये बात नहीं भूली चाहिए कि मणिपुर में भी बीजेपी की डबल इंजन वाली सरकार है। ये वो डबल इंजन है जिसका जिक्र पीएम मोदी करते नहीं थकते हैं। कोई भी चुनाव क्यों ना हो, डबल इंजन वाला दांव हर बार चला जाता है। उत्तर प्रदेश हो, उत्तराखंड हो, गुजरात हो, पूर्वोत्तर का त्रिपुरा हो, बीजेपी ने इस डबल इंजान के नाम कई राज्यों में अपनी सरकार बनाई है। लेकिन कर्नाटक में ये इंजन चुनावी मौसम में पटरी से बुरी तरह उतर गया और अब मणिपुर में हालात विस्फोटक बने हुए हैं।

बीरेन सिंह का विवादों में रहना, कानून व्यवस्था चुनौती

यानी कि विपक्ष इस बार अपने चुनावी नेरेटिव में मणिपुर के सहारे डबल इंजन वाले दांव की हवा निकालने की पूरी कोशिश करने जा रहा है। इसके अलावा मणिपुर के जो मुख्यमंत्री हैं- एन बीरेन सिंह, वो भी विवादों में घिरे पड़े हैं। उनकी वैसे भी कोई मास लीडर वाली छवि नहीं है, इस वजह से वे आसानी से सभी के निशाने पर आ रहे हैं। इस समय तो क्योंकि मणिपुर वैसे भी सुलग रहा है, ऐसे में सरकार पर उनके इस्तीफे का दबाव लगातार बना हुआ है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी एक नहीं कई नेताओं ने विपक्ष की तरफ से सीएम बीरेन सिंह का इस्तीफा मांगा, सरकार पर आरोप लगाया कि वो एक विफल सीएम को बचाने का काम कर रही है।

अब ये आरोप बताते हैं कि मणिपुर की ही कानून व्यवस्था भी विपक्षी गठबंधन के लिए एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।ये ज्यादा बड़ी बात इसलिए है क्योंकि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में विपक्ष का ये मुद्दा जमीन पर ज्यादा नहीं टिकता है। आंकड़े कुछ अलग गवाही भी दे सकते हैं, संभव है कि कुछ जगह सरकार के खिलाफ भी दिखाई पड़े, लेकिन क्योंकि सीएम योगी आदित्यनाथ की मार्केटिंग इस तरह से की गई है कि उनकी पहचान एक सख्त नेता वाली है, इसके ऊपर जब से उन्हें ‘बुलडोजर बाबा’ का तमगा दिया गया है, उनकी छवि और ज्यादा सशक्त बनी है। ऐसे में कानून व्यवस्था वाली जो दाल यूपी में नहीं गलने वाली, उसे मणिपुर में पूरी तरह इंडिया भुनाने की कोशिश करने वाला है।

महंगाई-बेरोजगारी, इंडिया के आम आदमी वाले मुद्दे

अब मणिपुर के अलावा विपक्ष के एजेंडे पर महंगाई, भारत-चीन सीमा विवाद, बेरोजगारी, जांच एजेंसियों का दुरुपयोग जैसे मुद्दे भी छाए रहे। यहां भी महंगाई और बेरोजगारी दो ऐसे मुद्दे हैं जिसका सीधा वास्ता आम जनता से पड़ता है। यानी कि अगर इन मुद्दों पर ठीक तरह से रणनीति बनाकर विपक्ष खेलता है तो एनडीए के लिए खतरे की घंटी बज सकती है। इस समय टमाटर के दाम जिस तरह से रॉकेट बने हुए हैं, उसे देखते हुए विपक्ष का महंगाई वाला दांव हिट भी साबित हो सकता है। उसी तरह बेरोजगारी को लेकर भी कई राज्यों में बीजेपी के लिए खबर अच्छी नहीं है। एमपी में तो आए दिन लोगों का नौकरी के लिए सड़क पर प्रदर्शन करना आम बात हो गई है। ऐसे में ये मुद्दा भी बीजेपी के खिलाफ चुनावी मौसम में इस्तेमाल किया जा सकता है।

अजित का साथ, भ्रष्टाचार में घिरी बीजेपी

इसके अलावा इंडिया गठबंधन के नेताओं ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी बीजेपी को घेरने का काम किया। इसे एक साहसी कदम कहा जा सकता है क्योंकि ये एक ऐसा मुद्दा जिसके सहारे कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को क्लीन बोल्ड किया है। दो बार जो सत्ता में बीजेपी आई भी है, वहां भी इस भ्रषटाचार वाले नेरेटिव ने बड़ा योगदान दिया है। लेकिन इस बार इंडिया गठबंधन के पास भी अपने तर्क तैयार रहे। तभी तो अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जेडीयू सांसद ललन सिंह ने कह दिया कि भ्रष्टाचारियों से इतनी नफरत होती तो अजित पवार को साथ नहीं लेते। उन्होंने यहां तक कहा कि बीजेपी अपनी वॉशिंग मशीन में डालकर सभी को धो देती है।

यानी कि अगर बीजेपी भ्रष्टाचार पर विपक्ष को घेरने का काम करती है तो इस बार एकजुट इंडिया गठबंधन भी उसी मुद्दे पर बीजेपी के ही अंदाज में उस पर वार करने की तैयारी कर रहा है। बड़ी बात ये है कि भी जिन अजित पवार के जरिए बीजेपी पर हमला किया जा रहा है, अभी तक देश की सबसे बड़ी पार्टी के पास इसे लेकर कोई सॉलिड सफाई नहीं है। इस बात का भी जवाब नहीं दिया गया है कि जिस एनसीपी को कुछ दिन पहले तक पीएम मोदी खूब कोस रहे थे, उसके भ्रष्टाचार गिना रहे थे, कैसे उसी पार्टी के एक बड़े नेता को तुरंत एनडीए में शामिल कर लिया गया? ऐसे में भ्रष्टाचार की पिच पर इस बार एनडीए और इंडिया के बीच में दिलचस्प मुकाबला दिखने वाला है।

राहुल गांधी का अलग नेरेटिव, कॉमन मैन वाली छवि

अब इंडिया गठबंधन का नेरेटिव तो समझ में आ गया, लेकिन यहां पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का एक अलग नेरेटिव भी साथ चलने वाला है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद से राहुल की छवि जिस तरह से बदली है, उसका असर कर्नाटक चुनाव में भी देखने को मिल गया था। उनकी मोहब्बत की दुकान वाली राजनीति ने जमीन तक पर अपना असर दिखाया है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी शुरुआत में सबसे पहले राहुल ने यहीं बोला कि वे दिमाग से नहीं दिल से बोलने वाले हैं। ऐसे में वे खुद को पूरी तरह एक आम आदमी के रूप में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अपने 36 मिनट के भाषण के दौरान कांग्रेस नेता ने सबसे ज्यादा समय भारत जोड़ा यात्रा पर बोलने में लगा दिया। इसका यही कारण रहा कि इस यात्रा ने राहुल को एक दूसरा सियासी जीवन दिया है जहां पर उनकी छवि और ज्यादा परिपक्व वाली दिखी है, जहां पर उनका जनता के साथ सीधा संवाद हुआ और सबसे बड़ा उनका जमीनी मुद्दों से मजबूत कनेक्शन बैठा है।

राहुल का राष्ट्रवादी एजेंडा

इसके अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस बार बीजेपी की राष्ट्रवाद वाली पिच पर भी पूरी तरह खेलते दिख रहे हैं। उनके भाषण के जिस अंश को अब लोकसभा की कार्यवाही से हटा दिया गया है, वहां पर उनकी तरफ से जितने भी वार किए गए, उसके केंद्र में राष्ट्रवाद, देशभक्ति रही। उन्होंने भारत माता का बार-बार जिक्र कर बताने की कोशिश कर दी कि बीजेपी का राष्ट्रवाद झूठा है, वो देश से प्यार नहीं करते। वहीं दूसरी तरफ अपनी भारत जोड़ो यात्रा का जिक्र कर ऐसा मैसेज भेजा जैसे वे देश के सच्चे सपूत हैं जो जमीन पर जा लोगों की परेशानियों को सुन रहे हैं। इस नेरेटिव पर खेलना कांग्रेस नेता के लिए मुश्किल बहुत है, लेकिन अगर सफल हो जाएं तो इंडिया गठबंधन के लिए ये गेमचेंजर साबित हो सकता है।

अब ये जितने भी मुद्दे रहे ये तोृ इंडिया गठबंधन के हैं, उनकी रणनीति का हिस्सा है। लेकिन इसका काउंटर करने के लिए एनडीए के पास अपने कई मुद्दे तैयार हैं। उन मुद्दों की साफ झलक कुल 4 घंटे और 25 मिनट में मिल गई। असल में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने दो घंटा 12 मिनट तक नॉन स्टॉप बोला था। उनकी तरफ से मणिपुर पर तो विस्तार से सबकुछ बताया ही गया, इसके अलावा उन्होंने इंडिया गठबंधन पर भी चुन-चुन कर हमला किया। उनकी तरफ से भाषण में कई मौकों पर परिवारवाद, तुष्टीकरण और भ्रष्टाचार का जिक्र किया गया। उनकी तरफ से इन तीनों ही पहलुओं को भारतीय राजनीति के लिए नासूर बता दिया गया।

तुष्टीकरण, परिवारवाद और कांग्रेस का भ्रष्टाचार, बीजेपी की रणनीति

अब जिसे अमित शाह नासूर बता रहे हैं, असल में 2014 से ये बीजेपी के प्रमुख मुद्दे रहे हैं। मुस्लिमों के तुष्टीकरण का आरोप तो वो विपक्ष पर लंबे समय से लगा रही है, इसके अलावा गांधी परिवार, मुलायम परिवार पर निशाना साधते हुए परिवारवाद का भी जिक्र करते रहते हैं और भ्रष्टाचार को लेकर तो कांग्रेस, बीजेपी का सॉफ्ट टारगेट रही है। यानी कि यहां पर बीजेपी की रणनीति में इस बार भी कोई बदलाव नहीं होने वाला है। वहीं एक बार फिर एनडीए की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही सबसे बड़े चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट करने की तैयारी है।

मोदी का चेहरा और सत्ता वापसी का आत्मविश्वास

इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अमित शाह और पीएम मोदी द्वारा सिर्फ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का माखौल नहीं उड़ाया गया, बल्कि उनकी तरफ से दावा कर दिया गया कि 2024 में भी बीजेपी को ही वापस आना है। पीएम मोदी ने तो एक कदम आगे बढ़कर यहां तक कह दिया कि 2028 में भी विपक्ष उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आ रही है। ये आत्मविश्वास भी बीजेपी की रणनीति का हिस्सा ही दिखाई पड़ता है क्योंकि इससे नरेंद्र मोदी की जनता के बीच में जो पॉपुलर इमेज है, वो और ज्यादा मजबूत बन जाती है।

बड़े सपनों का दांव, शाइनिंग इंडिया 2.0?

इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी के शाइनिंग इंडिया कैपेन की तरह बीजेपी 2024 में भी जनता के सामने कुछ महत्वकांक्षी सपने सेट करने जा रही है। इसकी झलक भी अविश्वास प्रस्ताव के दौरान दिखाई पड़ गई। पीएम मोदी ने अपने भाषण में जोर देकर कहा कि उनके तीसरे कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। अब ये सपना कब तक पूरा होगा, कोई नहीं जानता, लेकिन नेरेटिव सेट कर दिया गया है। ये सपने ही बीजेपी की चुनावी नैया को पार लगाने का दमखम रखते हैं।

किसानों की आय दोगुना कर देना, 15 लाख अकाउंट में पैसा आना, मेक इन इंडिया, ये कुछ ऐसे सपने हैं जो जमीन पर कितने उतरे, इसे लेकर विवाद है, लेकिन इन मुद्दों ने बीजेपी को चुनावी फायदा पूरा दिया है। इसी कड़ी में 2024 को लेकर भी ऐसे ही सपनों की लिस्ट तैयार कर ली गई है। यानी कि एनडीए की लिस्ट में विकास तो एक मुद्दा रहेगा ही, लेकिन उसके साथ-साथ राष्ट्रवाद, भ्रष्टाचार, परिवारवाद और उसके ऊपर नए-नए आए यूसीसी जैसे मुद्दे को धार देने का काम किया जाएगा। अब किसके मुद्दे जनता के साथ ज्यादा कनेक्ट बैठाते हैं, ये आने वाले समय में तय हो जाएगा।