अभी कुछ दिनों पहले केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भारत में सड़क दुर्घटनाओं पर अत्यंत चिंताजनक वक्तव्य दिया। विडंबना है कि उनका बयान अपने अधीनस्थ मंत्रालय से संबंधित किसी कार्यबाधा के संबंध में नहीं, बल्कि भारत में निरंतर बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं और इनमें बड़ी संख्या में मरने और घायल होने वाले लोगों के बारे में है। उन्होंने इतना तक कह दिया कि जब वे सड़क एवं राजमार्ग विकास पर आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भागीदारी करते हैं, तो विभिन्न पक्षों द्वारा भारत में अधिक सड़क दुर्घटनाओं के संदर्भ में पूछे जाने वाले सवालों से वे लज्जित महसूस करते हैं।
उन्हें निरुत्तर होकर अपना मुंह छिपाना पड़ता है। बताया जाता है कि भारत में सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग के हर प्रकार के विकास में जितना उपयोगी कार्य उनके कार्यकाल में हुआ है, संभवत: किसी अन्य मंत्री के नेतृत्व में नहीं हुआ। इस उपलब्धि पर गर्व करने के बजाय मंत्री स्वयं सड़क एवं राष्ट्रीय राजमार्गों पर होने वाले हादसों पर लज्जा अनुभव करें, तो यह विचारणीय विषय होना चाहिए। निश्चित रूप से कहीं कोई कमी रह गई है।
सड़क दुर्घटना भारत के लिए चिंता का विषय
यह वास्तव में भारत के लिए चिंता की बात है। जिस तेजी से भारत विकसित और प्रगतिशील देशों की श्रेणी में शामिल हो रहा है और जिस विश्वास के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था निरंतर एक स्थिर अर्थव्यवस्था बन रही है, उसकी तुलना में बेतहाशा बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं निराश करती हैं। भारत में प्रतिवर्ष लाखों लोग सड़क हादसों में अपने प्राण गंवा देते हैं। यदि सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों पर गौर करें, तो यह देख कर दुख होता है कि वर्ष-प्रतिवर्ष दुर्घटना के आंकड़े बढ़ रहे हैं। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार वर्ष 2012 में भारत में कुल 4,90,383 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। इनमें 1,23,093 घटनाएं प्राणघाती और असमान्य किस्म की थीं। ऐसी घटनाओं में मृतकों की संख्या 1,38,258 थी। वर्ष 2012 से लेकर 2022 तक इन घटनाओं में निरंतर वृद्धि हुई है। वर्ष 2022 में 33.8 फीसद घटनाएं प्राणघाती थीं। इनमें 1,68,491 लोगों की मौत हो गई और 4,43,366 घायल हुए। ये पिछले दस वर्षों का लेखाजोखा है। इससे पहले के दस वर्षाें में भी लगभग यही स्थिति थी।
दुनिया में महामंदी का माहौल, तरक्की के दावे और सपने अधूरे
नब्बे के दशक में वैश्वीकरण और निजीकरण आरंभ होने के बाद जैसे-जैसे महानगरों, छोटे नगरों और उप-नगरों में दुपहिया और चौपहिया वाहनों की संख्या बढ़ने लगी, उसी अनुपात में यातायात संबंधी नियमों के प्रति नागरिक दायित्वबोध में कमी दिखने लगी। यही वह समय था जब दिल्ली की सड़कों पर कारें सीमित संख्या में चला करती थीं, तब तत्कालीन केंद्रीय शासन के नेतृत्व में सड़क सुरक्षा सप्ताह अभियान को बढ़-चढ़ कर चलाया जाता था। वह दौर प्रगति की विसंगतियों से ग्रसित नहीं था। तब की युवा पीढ़ी अपने वरिष्ठों, वृद्धजनों और सामाजिक शिक्षा देने वालों का सम्मान किया करती थी। इसीलिए सड़क सुरक्षा के संबंध में शासकीय और सामाजिक स्तर पर जितनी भी शिक्षाएं प्रदान की जाती थीं, युवा पीढ़ी उनका अक्षरश: पालन किया करती थी। युवक-युवतियां सड़क सुरक्षा सप्ताह अभियान को सफल बनाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाते थे। वह पीढ़ी सड़क पर यातायात के लिए निर्धारित शासकीय नियमों से भली-भांति परिचित होती थी। यातायात नियमों का स्वयं भी व्यावहारिक पालन किया करती थी और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करती थी। नतीजतन, सड़क दुर्घटनाएं कम होती थीं।
उदारीकरण के बाद लोगों ने खूब खरीदी गाड़ियां
नब्बे के दशक में उदारीकरण के बाद लोगों को घर और वाहन आदि भौतिक सुविधाओं के लिए बैंकों से ऋण मिलने लगा। जिस व्यक्ति को आवश्यकता भी नहीं थी, वह भी वाहन खरीदने के लिए उतावला हो उठा। वाहन बेचने वाली कंपनियों को अपने लाभ से सरोकार था, शासन की योजना कंपनियों के लाभ के अनुरूप उनसे अधिक से अधिक विक्रय और आय कर अर्जित करने की थी और वाहन चालन संबंधी लाइसेंस देने वाले यातायात विभाग पर शासन और वाहन कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव था कि लोगों को जल्द लाइसेंस उपलब्ध कराया जाए। नतीजतन, अधिसंख्य मोटर वाहन चालकों को यातायात विभाग की ओर से वाहन चालन का आधारभूत प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया। इसके बाद अकुशल और अर्द्धकुशल चालकों को लाइसेंस मिलने लगे। यह भी आरोप है कि नए चालकों को प्रशिक्षण दिए बिना लाइसेंस प्रदान करने के लिए यातायात विभाग के अधिकारियों को राशि दी जाने लगी। यह परिपाटी आज भी चल रही है। फलस्वरूप यातायात नियमों की आधारभूत जानकारी न होने पर भी लोगों को दुपहिया और चौपहिया वाहन चलाने के लाइसेंस दिए जा रहे हैं।
22 करोड़ से ज्यादा लाभार्थियों तक नहीं पहुंच रहा फ्री अनाज, भूख और कुपोषण की बढ़ती चुनौतियां
मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत जितने भी नियम-कानून हैं, उनकी जानकारी किसी भी व्यक्ति को एक-दो दिन में नहीं हो सकती है। इसके लिए किसी भी व्यक्ति को कम से कम एक या दो सप्ताह का शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। यातायात नियमावली में कम से कम पंद्रह प्रारंभिक और पूर्णरूप में तीस-चालीस नियम हैं। जब तक प्रत्येक वाहन चालक इन नियमों से भलीभांति अवगत नहीं हो जाता, तब तक उसके गाड़ी चलाने पर संदेह रहेगा। नियमों की जानकारी होना तो सुरक्षित यातायात के लिए आवश्यक है ही, साथ ही हरेक वाहन चालक में गंभीर नागरिकबोध होना भी उतना ही अनिवार्य है। वाहन चालकों में दूसरों के जीवन के प्रति संवेदना अवश्य होनी चाहिए। मगर देखा जा रहा है कि जैसे-जैसे दुनिया, समाज और देश अधिक आधुनिक हो रहे हैं, उसी गति से यातायात नियमों की अवहेलना हो रही है। जैसे-जैसे उन्नत वाहन सड़कों पर दौड़ने के लिए तैयार हो रहे हैं, वैसे-वैसे वाहन चालकों में नागरिक बोध और दायित्व कम होता जा रहा है। जिस गति से सड़क परिवहन एवं राजमार्ग की अवसंरचना विकसित हो रही है, उसी गति से वाहन चालकों में अपने और दूसरे व्यक्तियों के जीवन के प्रति उत्तरदायित्व का भाव संकुचित होता जा रहा है।
शासन को सड़क परिवहन के लिए कठोर नियम बना कर उनका ठोस अनुपालन सुनिश्चित करना होगा। चाहे इसके लिए एक अतिरिक्त विभाग ही क्यों न गठित करना पड़े। इस समय मानवीय जीवन की हानि यदि सबसे अधिक किसी कारण हो रही है, तो वह सड़क दुर्घटनाएं ही हैं। समाज में यातायात नियमों के प्रति जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है। शासन और समाज को यातायात के प्रति सार्वजनिक जागरूकता का आरंभ विद्यालयों से करना चाहिए, क्योंकि देखने में यही आ रहा है कि विद्यालयी शिक्षा ग्रहण कर रहे बहुत सारे किशोर यातायात नियमों का उल्लंघन करते हुए अपने वाहनों से सड़कों पर अराजकता फैलाते हैं। इससे जागरूक वाहन चालकों को भी यातायात नियमों का पालन करने पर भी हादसे का सामना करना पड़ता है। सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं में सर्वाधिक मौतें हो रही हैं। दुर्घटनाग्रस्त लोग जीवनभर के लिए विकलांग हो जा रहे हैं। शासन-प्रशासन और समाज को जागरूक और संवेदनशील होने की आवश्यकता है।
मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत जितने भी नियम-कानून हैं, उनकी जानकारी किसी भी व्यक्ति को एक-दो दिन में नहीं हो सकती है। इसके लिए किसी भी व्यक्ति को कम से कम एक या दो सप्ताह का शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। यातायात नियमावली में कम से कम पंद्रह प्रारंभिक और पूर्णरूप में तीस-चालीस नियम हैं। जब तक प्रत्येक वाहन चालक इन नियमों से भलीभांति अवगत नहीं हो जाता, तब तक उसके गाड़ी चलाने पर संदेह रहेगा। नियमों की जानकारी होना तो सुरक्षित यातायात के लिए आवश्यक है ही, साथ ही हरेक वाहन चालक में गंभीर नागरिकबोध होना भी उतना ही अनिवार्य है।