Who is Justice Baharul Islam, Nishikant Dubey Statement: बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना को लेकर एक विवादित टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा था कि देश में जो भी गृह युद्ध हो रहे हैं उसके लिए CJI संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं। अब यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस बीच निशिकांत दुबे ने मंगलवार को एक के बाद एक दो पोस्ट की है। एक पोस्ट सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बहरुल इस्लाम को लेकर है, जिन्होंने सियासत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का सफर तय किया था। हालांकि बहरुल इस्लाम का सफर वाकई में बहुत ही रोचक है।

कौन थे बहरुल इस्लाम?

बहरुल इस्लाम असम हाई कोर्ट में 1951 में एक वकील के रूप में रजिस्टर्ड हुए और सुप्रीम कोर्ट में 1958 में रजिस्टर्ड हुए। हालांकि उन्होंने 1956 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली और 1962 में उन्हें राज्यसभा भेज दिया गया। 1968 में उन्हें फिर से राज्यसभा भेजा गया। इसके बाद 1972 में उन्हें असम और नागालैंड हाई कोर्ट (गुवाहाटी हाई कोर्ट) का जज नियुक्त कर दिया गया। राज्यसभा से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 1979 में उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया जाता है। फिर 1980 में वह इस पद से रिटायर हो जाते हैं।

अचानक बनाया गया SC जज

इसके बाद बहरुल इस्लाम के सफर में रोचक मोड़ आता है। 4 दिसंबर 1980 को बहरुल इस्लाम को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया जाता है। इसे रोचक मोड़ इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि रिटायर्ड जजों को अकसर रिअप्वाइंट नहीं किया जाता था।

‘ऐसे CJI भी थे जिनके पास कानून की डिग्री नहीं थी…’, न्यायपालिका पर टिप्पणी के बाद निशिकांत दुबे ने किया एक और पोस्ट

चुनाव लड़ने के लिए दिया इस्तीफा

इस नियुक्ति के 3 साल बाद 12 जनवरी 1983 को बहरुल इस्लाम सुप्रीम कोर्ट के जज पद से इस्तीफा दे देते हैं। दरअसल बहरुल इस्लाम कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में असम की बरपेटा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। हालांकि इस दौरान चुनाव पोस्टपोन कर दिया जाता है। इसके बाद कांग्रेस उन्हें एक बार फिर से राज्यसभा भेज देती है।

क्या है निशिकांत दुबे की पोस्ट?

निशिकांत दुबे ने अपने पोस्ट में कहा, “कांग्रेस के संविधान बचाओ की एक मजेदार कहानी। असम में बहरुल इस्लाम साहिब ने कांग्रेस की सदस्यता 1951 में ली। तुष्टिकरण के नाम पर कांग्रेस ने उन्हें 1962 में राज्यसभा का सदस्य बना दिया। छह साल बाद दुबारा 1968 में राज्य सभा का सदस्य सेवाभाव के लिए बनाया। इनसे बड़ा चमचा कांग्रेस को नज़र नहीं आया। राज्यसभा से बिना इस्तीफ़ा दिलाए हाईकोर्ट का जज 1972 में बना दिया। फिर 1979 में असम हाईकोर्ट का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बना दिया। बेचारे 1980 में रिटायर हो गए,लेकिन यह तो कांग्रेस है। जनवरी 1980 में रिटायर हुए जज को दिसंबर 1980 में सीधे सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया। 1977 में इंदिरा गांधी जी के उपर लगे सभी भ्रष्टाचार के केस इन्होंने तन्मयता से ख़त्म कर दिए। फिर खुश होकर कांग्रेस ने इन्हें 1983 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर कर कांग्रेस से राज्यसभा का तीबारा सदस्य 1983 में ही बना दिया। मैं कुछ नहीं बोलूंगा?”