घरेलू विवाद के मामले में दिल्ली की कोर्ट ने पति को फटकार लगाते हुए कहा कि उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना ही होगा। पति की इस दलील पर कि वो बेरोजगार है, कोर्ट ने कहा कि ये तर्क देकर वो अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकता। उसे हर हाल में पत्नी के भरण पोषण के लिए पैसा देना होगा। तीस हजारी कोर्ट के अतिरिक्त सेशन जज संजय शर्मा ने अपने फैसले में पुरुष की शिकायत पर ये बात कही।
पति ने महिला कोर्ट के फैसले को डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 की धारा 29 के तहत चुनौती दी थी। महिला कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि उसे वाद के निपटारा होने तक अपनी पत्नी को हर माह गुजारा भत्ता देना होगा। अदालत ने पत्नी को हर हाम 55 सौ रुपये की रकम देने का आदेश दिया था।
पत्नी का आरोप है कि उसका पति मार-पिटाई करता था। दहेज कम लाने के लिए उसके साथ अत्याचार किया गया। 7 अक्टूबर 2013 को उसने ससुराल को छोड़ दिया और अपने मायके में आकर रहने लगी। पत्नी का कहना है कि आरोपी हर माह 50 हजार से ज्यादा की कमाई करता है। वो एक शानदार जिंदगी जी रहा है।
जबकि पति का तर्क है कि वो 6 हजार रुपये प्रतिमाह पर एक स्यूडियो में नौकरी करता था। लेकिन फिलहाल बेरोजगार है। वो अपने बीमार व वृद्ध पिता की देखभाल करता है। दूसरी तरफ उसकी पत्नी सिलाई से अच्छी खासी कमाई कर लेती है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पत्नी केवल 12वीं पास है। वो अपने माता-पिता के पास रह रही है। उसके नाम पर कोई चल या अचल संपत्ति भी नहीं है। उसके पास कोई कामकाज नहीं है जिससे आमदनी हो सके। वो पूरी तरह से अपने माता-पिता पर निर्भर है। हालांकि पति का दावा है कि वो सिलाई के काम से पैसा कमा रही है। लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है।
जबकि दूसरी तरफ पति ग्रेजुएट है और फोटोग्राफरी में उसे अच्छा खासा अनुभव है। उसने अपने जवाब में भी इस बात को माना है। कोर्ट का कहना था कि एक नौकरी खत्म होने का ये मतलब नहीं है कि वो कोई दूसरा काम नहीं तलाश कर सकता। वो हट्टा-कट्टा है। वो दिल्ली के पॉश इलाके में स्थित पैतृक घर में रह रहा है। लिहाजा वो अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकता।