Arvind Kejriwal New Delhi Seat: दिल्ली की सत्ता पर कब्जे की जोरदार लड़ाई शुरू हो गई है। सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी चुनाव मैदान में उतर गए हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बाद भाजपा ने भी शनिवार को अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की। इस लिस्ट के आने के बाद यह साफ हो गया है कि आम आदमी पार्टी के दो बड़े नेताओं- अरविंद केजरीवाल और आतिशी के लिए इस बार चुनावी मुकाबला आसान नहीं है।
यह माना जा रहा है कि आने वाले एक हफ्ते के भीतर दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो जाएगा और फरवरी के पहले या दूसरे हफ्ते में दिल्ली में नई सरकार के गठन के लिए वोट डाले जाएंगे। इस लिहाज से अगर आप देखें तो दिल्ली में नई सरकार के चुने जाने में ज्यादा वक्त नहीं है।
दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट का बारीकी से विश्लेषण करने पर एक बात समझ में आती है कि दोनों ही दलों- बीजेपी और कांग्रेस आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री आतिशी को उनकी विधानसभा सीटों से बाहर नहीं निकलने देना चाहते।
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केजरीवाल थे आप की बड़ी जीत के हीरो
दिल्ली में 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिली जोरदार जीत के नायक निश्चित रूप से अरविंद केजरीवाल ही थे। अरविंद केजरीवाल ने न सिर्फ अपनी सीट से जीत दर्ज की बल्कि दिल्ली की सभी 70 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार किया। भले ही केजरीवाल इस बार दिल्ली के मुख्यमंत्री ना हों लेकिन उनके कंधों पर इस बार भी न सिर्फ अपनी सीट को जीतने की बल्कि आम आदमी पार्टी की दिल्ली में फिर से सरकार बनाने की चुनौती है। केजरीवाल इसके लिए पूरी ताकत भी लगा रहे हैं।
केजरीवाल के खिलाफ कौन-कौन हैं उम्मीदवार?
अरविंद केजरीवाल और आतिशी के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतारने में ना तो कांग्रेस ने कोई कोर-कसर छोड़ी और ना ही बीजेपी ने। कांग्रेस ने केजरीवाल की नई दिल्ली सीट पर दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को उम्मीदवार बनाया है। संदीप दीक्षित 10 साल तक दिल्ली में (पूर्वी दिल्ली सीट से) सांसद रहे हैं। भले ही वह दो बार सांसद का चुनाव हार चुके हैं लेकिन फिर भी वह नई दिल्ली की सीट के लिए अनजान चेहरे बिलकुल भी नहीं हैं।
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इसलिए संदीप दीक्षित को नई दिल्ली की सीट से उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस ने केजरीवाल के सामने बड़ी चुनौती पेश की है। दूसरी ओर बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल के सामने पूर्व सांसद परवेश साहिब सिंह वर्मा को टिकट दिया है।
दो बार बड़े अंतर से जीते हैं परवेश वर्मा
परवेश साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं। परवेश महरौली की सीट से विधायक रहने के साथ ही दो बार सांसद का चुनाव भी भारी मार्जिन के साथ जीत चुके हैं। ऐसे में यह लगभग तय है कि अरविंद केजरीवाल के लिए नई दिल्ली सीट पर जीत हासिल करना बहुत आसान नहीं होगा।
क्या हुआ था पिछले दो चुनाव में?
नई दिल्ली सीट पर पिछले दो विधानसभा चुनाव के नतीजे देखें तो यह समझ आता है कि दोनों चुनाव में अरविंद केजरीवाल के सामने बहुत मजबूत उम्मीदवार नहीं थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस बार केजरीवाल के सामने चुनाव लड़ रहे दोनों ही उम्मीदवार बहुत सक्षम और राजनीतिक रूप से ताकतवर हैं।
ऐसे में केजरीवाल को न सिर्फ अन्य विधानसभा क्षेत्रों में बल्कि अपनी विधानसभा सीट पर भी बहुत पसीना बहाना होगा।
याद दिलाना होगा कि अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी और कांग्रेस से काफी पहले विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। उन्होंने सबसे पहले अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया और आतिशी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने के साथ ही दिल्ली में पार्टी की रणनीति और चुनाव प्रचार कैसा होगा, इसे भी तय किया। लेकिन फिर भी नई दिल्ली सीट पर उनके लिए चुनावी मुकाबला आसान नहीं है क्योंकि संदीप दीक्षित और परवेश साहिब सिंह वर्मा का भी दिल्ली की राजनीति में अपना प्रभाव है।
तीन बार जीती थीं शीला दीक्षित, केजरीवाल ने हराया था
दिल्ली में 2008 में हुए परिसीमन से पहले नई दिल्ली की सीट गोल मार्केट के नाम से पहचानी जाती थी और इस सीट से शीला दीक्षित तीन बार लगातार विधायक रह चुकी थीं। इसलिए भी संदीप दीक्षित के लिए यहां के मतदाताओं से नाता जोड़ना बहुत मुश्किल नहीं है क्योंकि शीला दीक्षित दिल्ली में लोकप्रिय मुख्यमंत्री रही थीं। हालांकि 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्हें अरविंद केजरीवाल ने अपने पहले ही चुनावी मुकाबले में शिकस्त दे दी थी। तब शीला दीक्षित की हार का अंतर लगभग 26000 वोटों का रहा था।
शीला दीक्षित 15 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद भी अरविंद केजरीवाल जैसे एक नए चेहरे से चुनाव हार गई थीं। इसलिए राजनीति में कुछ भी संभव है और केजरीवाल इस बात को जानते हैं।

अब बात करते हैं कालकाजी विधानसभा सीट से आप उम्मीदवार और मुख्यमंत्री आतिशी की।
कालकाजी विधानसभा सीट पर 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को जीत मिली। 2015 में अवतार सिंह तो 2020 में आतिशी यहां से चुनाव जीत कर दिल्ली की विधानसभा में पहुंचीं। कालकाजी की सीट पर पिछले चुनावी मुकाबले में आतिशी की जीत का अंतर 11393 वोटों का था।
कथित आबकारी घोटाले में लंबे वक्त तक जेल में रहने के बाद केजरीवाल ने हालात को समझते हुए और बीजेपी की ओर से मिल रही चुनौती को देखते हुए आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया। आतिशी के सामने दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष, चांदनी चौक सीट की पूर्व विधायक और कांग्रेस की मुखर नेत्री अलका लांबा चुनाव लड़ रही हैं जबकि भाजपा ने भी आतिशी को कालकाजी से बाहर न निकलने देने की पूरी योजना बनाई है।
गुर्जर नेता हैं रमेश बिधूड़ी
बीजेपी ने यहां से दक्षिणी दिल्ली से दो बार सांसद रहे और दिल्ली में तीन बार विधायक का चुनाव जीतने वाले रमेश बिधूड़ी को उम्मीदवार बनाया है। रमेश बिधूड़ी दिल्ली की राजनीति के बड़े गुर्जर चेहरे हैं और अपने तीखे बयानों के लिए जाने जाते हैं।
आम आदमी पार्टी की कोशिश थी कि आतिशी को कालकाजी सीट के अलावा भी दिल्ली की अन्य विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रचार के लिए भेजा जाए जिससे पार्टी को महिला मतदाताओं के वोट मिल सकें लेकिन शायद आतिशी को अपनी विधानसभा सीट पर ज्यादा वक्त देना पड़ेगा।

अपने दम पर हैट्रिक लगा पाएगी आप?
पिछले दो चुनाव को बड़े अंतर के साथ जीतने वाली आम आदमी पार्टी इस विधानसभा चुनाव में अपने दम पर सरकार बनाने की हैट्रिक लगाना चाहती है लेकिन दिल्ली में इस बार बीजेपी और कांग्रेस के द्वारा बनाई गई इस रणनीति के चलते यह तय है कि अरविंद केजरीवाल और आतिशी को अपनी विधानसभा सीट पर हर मतदाता के घर में दस्तक देनी होगी और ऐसे में बाकी सीटों पर प्रचार के लिए उनके पास ज्यादा वक्त नहीं होगा। इसका असर पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ सकता है।
अगर केजरीवाल और आतिशी अपनी विधानसभा सीटों से बाहर ज्यादा वक्त नहीं दे पाए तो निश्चित रूप से बीजेपी और कांग्रेस इसका ज्यादा फायदा लेना चाहेंगे और दिल्ली में इस बार चुनावी मुकाबला पिछले चुनावी मुकाबले से कहीं ज्यादा रोमांचक और जोरदार होगा।
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