सुजान चिनाय
इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने जी-20 का शुभंकर, वेबसाइट और विषय-वस्तु जारी की। शुभंकर में प्रयुक्त ध्येय वाक्य है- ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’। यह आह्वान ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के रूप में चिरकाल से भारतीय जनमानस में रचा-बसा हुआ है।
जी-20 की भारत की अध्यक्षता को निरंतरता और परिवर्तन के आईने में देखा जाएगा। ऐसे में भारत द्वारा विकास के एजंडे को प्राथमिकता में रखना चाहिए। ऊर्जा विविधीकरण, व्यापार और प्रौद्योगिकी में उभरती चुनौतियों पर मतभेदों को सुलझाने की आवश्यकता होगी। अमेरिका, चीन और यूरोप में मुद्रास्फीति के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की आशंका है।
इसलिए समग्र अर्थशास्त्र और व्यापार में नीतिगत सामंजस्य अनिवार्य है। अक्तूबर 2021 में ‘वैश्विक आपूर्ति शृंखला समुत्थान’ यानी ‘ग्लोबल सप्लाई चेन रिजिलिएन्स’ की बैठक में प्रधानमंत्री ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला में सुधार के लिए तीन महत्त्वपूर्ण पहलुओं- विश्वसनीय स्रोत, पारदर्शिता और समय-सीमा में सहयोग की वकालत की।
डिजिटल रूपांतरण के लिए भारत की प्रतिबद्धता एक सुलभ और समावेशी डिजिटल सार्वजनिक ढांचे के निर्माण में महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगी। भारत ने लोक कल्याणकारी योजनाओं में एकीकृत भुगतान प्रणाली (यूपीआइ), प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) और आधार कार्ड की सफलता ने विकसित होती दुनिया के सामने डिजिटल व्यवस्था की प्रासंगिकता साबित की है।
कोविन प्लेटफार्म के जरिए टीके की डिजिटल आपूर्ति ने टीके की उपलब्धता और जनता तक उसकी सहज पहुंच का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है। आज के समय में जब सभी अर्थव्यवस्थाएं बहुत तेजी से डिजिटलीकरण की तरफ बढ़ रही हैं तब एक अंतर-संचालित तंत्र पर आम सहमति का विकास करना आवश्यक हो गया है, जिसमें निजी क्षेत्र भी स्वतंत्रतापूर्वक कुछ नया और रचनात्मक कर सकें।
जी-20 के अध्यक्ष के रूप में भारत के सामने जलवायु परिवर्तन निस्संदेह सबसे महत्त्वपूर्ण विषय है। स्वच्छ ऊर्जा संचरण और वैश्विक जलवायु न्यूनीकरण जैसे कार्यक्रम भारतीय नेतृत्व की पूर्ण समर्पित प्रतिबद्धता को प्रस्तुत करते हैं। काप-27 और जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत को जलवायु वित्त पर ध्यान केंद्रित करना होगा। साथ ही विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को 2020 से 2025 के दौरान जलवायु संतुलन के लिए सौ अरब डालर की निर्धारित राशि के आगे भी विचार करना होगा। अब तक इस संकल्प के पूरे होने में जो देर हुई है, वह भारत की अध्यक्षता के दौरान 2023 तक पूरी हो जाने की आशा है।
काप-26 के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ‘पंचामृत’ घोषणाएं की थी। इसके अंतर्गत 2070 तक संपूर्ण शून्य, 2030 तक पांच सौ गीगावाट तक गैर-जीवाश्म र्इंधन आधारित ऊर्जा की क्षमता प्राप्त करने, हमारी ऊर्जा की आवश्यकता पचास फीसद तक अक्षय ऊर्जा द्वारा प्राप्त करने, कार्बन उत्सर्जन में दस अरब टन की कमी लाने और भारतीय अर्थव्यवस्था में कार्बन तीव्रता में पैंतालीस फीसद तक कटौती करने की प्रतिबद्धता है। निश्चित तौर पर इन लक्ष्यों ने भारत को एक जलवायु अगुआ के तौर पर स्थापित किया है।
जी-20 की अध्यक्षता भारत के लिए अपने स्वच्छ ऊर्जा सहयोग और हरित संचरण- विशेषकर सौर, वायु और हाइड्रोजन- को लेकर यूरोपीय संघ, जापान और अमेरिका के साथ मिल कर उठाए जाए रहे कदमों को प्रेरणा देने का एक अवसर है। प्रधानमंत्री ने 2018 में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में ‘एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड’ का आह्वान किया था। जी-20 की अध्यक्षता भारत को इस विचार को आकार देने के लिए एक मंच उपलब्ध कराएगी। स्वच्छ ऊर्जा और एसडीजी की उपलब्धियां एक-दूसरे को मजबूत बना सकती हैं।
ग्रीन हाइड्रोजन पूरी जिम्मेदारी से जीवाश्म र्इंधन को स्थानांतरित कर देगा। यह एक बड़े और औद्योगिक स्तर पर संभव होगा। इसमें रिफाइनरी, उर्वरक, परिवहन और सीमेंट जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं, जहां संपूर्ण शून्य सरल नहीं है। भारत के पास तीव्र और कार्बनमुक्त आर्थिक विकास की क्षमता और उपकरण दोनों हैं। इसके जरिए हम विश्व को संपूर्ण शून्य की आकांक्षा का स्मरण करा सकते हैं। यूरोप में ऊर्जा-बाजार की अस्थिरता के समय जो सहयोग दिया गया, उससे जी-20 नागरिक परमाणु ऊर्जा के सहयोग का एक विस्तृत और मजबूत ढांचा तैयार कर सकती है, जिसमें छोटे ‘रिएक्टर’ के लिए भी पूरी संभावनाएं होंगी।
बहुपक्षीय संस्थानों को आज अप्रतिनिधिक और अप्रभावी रूप में देखा जाने लगा है। एक नए बहुपक्षवाद और वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के पुनर्मूल्यांकन के लिए पर्याप्त ऋण वृद्धि सुनिश्चित करने और स्थायी हरित संचरण के लिए मिश्रित वित्त का आह्वान एक लोकप्रिय वैश्विक भावना को दर्शाता है। हाल के वर्षों में भारत की वैश्विक पहलों जैसे ‘सागर’ यानी क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास, ‘नीली अर्थव्यवस्था’, ‘स्वच्छ महासागर’ और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे में जी-20 में भारत की अध्यक्षता के बाद और प्रगति होगी।
जी-20 में भारत को अपने साथ-साथ सबसे व्यापक और कमजोर क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। दक्षिण एशिया को अपनी आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए भारत की अध्यक्षता को एक प्रतिनिधि अवसर के रूप में देखना चाहिए। यह वास्तव में अंतर-दक्षिण एशियाई आर्थिक एकीकरण को आगे बढ़ा सकता है, जो भारत के उत्थान के लिए बहुत आवश्यक है।
(लेखक भारत के ‘जी-20 प्रेसीडेंसी’ के ‘थिंक-20’ समूह के अध्यक्ष हैं।)