National Consumer Court: दिल्ली स्थिति राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत (National Consumer Court) ने पटना के दो प्राइवेट अस्पतालों के दो डॉक्टरों को चिकित्सकीय लापरवाही के लिए एक महिला को 50 लाख रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया है। जिसके कारण 2007 में जन्म के कुछ ही दिनों बाद उसके बेटे का पैर काटना पड़ा था।

दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती होने के समय बच्चे के रिकॉर्ड से पता चला कि उसका बायां पैर “गैंगरीन” से ग्रस्त था, अर्थात रक्त आपूर्ति होने की कमी के कारण ऊतक मृत हो गए थे, जिसके कारण घुटने के नीचे से पैर काटना पड़ा।

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने 10 अक्टूबर को सोनी भारती को राहत दी, जिसने 11 फरवरी, 2007 को पटना के मानस नर्सिंग होम में एक लड़के को जन्म दिया था। बच्चे को जल्द ही एक अन्य नजदीकी अस्पताल, किड्स केयर क्लिनिक के नवजात आईसीयू (एनआईसीयू) में स्थानांतरित कर दिया गया, क्योंकि उसे सीने में संक्रमण और सांस लेने में समस्या हो रही थी।

उपभोक्ता अदालत ने नवजात शिशु पर डॉप्लर परीक्षण (रक्त प्रवाह का पता लगाने के लिए किया जाने वाला परीक्षण) करने में देरी के लिए दोनों अस्पतालों के डॉक्टरों को फटकार लगाई। दूसरे अस्पताल ने बच्चे पर प्रवेश के छठे दिन ही परीक्षण किया, जब भारती ने बच्चे के पैर पर नीला रंग देखा। भर्ती होने के 10वें दिन बच्चे को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में रेफर कर दिया गया।

एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में कहा कि पेरिफेरल सायनोसिस (हाथों, उंगलियों और पैर की उंगलियों का नीला पड़ना) के तथ्य को दर्ज करने और डॉपलर टेस्ट के संचालन में देरी और डॉक्टरों द्वारा देखभाल करने का उल्लंघन किया गया।

भारती ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को बताया था कि दवाओं की अधिक खुराक, गलत उपचार तथा डॉक्टरों द्वारा उपचार में अत्यधिक देरी के कारण उसके बच्चे का बायां पैर काटना पड़ा।

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने कहा कि इस मामले में, इस तथ्य को देखते हुए कि मरीज को जन्म के कुछ दिनों के भीतर ही अपना बायां पैर गवाना पड़ा। आय की हानि जैसे किसी भी उपलब्ध मानदंड पर मौद्रिक दावे का परिमाणीकरण संभव नहीं है। हालांकि, दिव्यांक व्यक्ति के रूप में जीवन भर के अस्तित्व के लिए, 50 लाख रुपये का दावा अत्यधिक या अनुचित लाभ के रूप में नहीं माना जा सकता है, क्योंकि इसमें प्रोस्थेटिक्स, शिक्षा और आजीविका के लिए बाद में रोजगार सहित उपचार के लिए विभिन्न लागतें शामिल होंगी।

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डॉक्टरों ने कहा था कि बच्चे को उचित देखभाल और सावधानी के साथ अच्छा उपचार प्रदान किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि एक बाल रोग विशेषज्ञ और हृदय रोग विशेषज्ञ से भी परामर्श किया गया था, जिन्होंने उनके उपचार की सलाह दी थी।

इससे पहले, राज्य उपभोक्ता अदालत ने डॉक्टरों का पक्ष लेते हुए कहा था कि भारती रिकॉर्ड में कोई विशेषज्ञ चिकित्सा राय पेश करने में विफल रही हैं, जिससे यह साबित हो सके कि डॉक्टरों ने मरीज की देखभाल में लापरवाही बरती थी। दूसरी ओर, एनसीडीआरसी ने यह भी फैसला सुनाया कि डॉक्टरों का यह तर्क कि मरीज का निदान सही था, स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने फैसला सुनाया, “किड्स केयर अस्पताल (पटना में) द्वारा जारी 21.02.2007 की डिस्चार्ज स्लिप में किसी भी तरह के सेप्सिस या गैंग्रीन का कोई उल्लेख नहीं है।