अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की पार्टी जो कल तक पार्टी विद डिफरेंसेज कहलाती थी, आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बदौलत दिन-दुनी रात चौगुनी गति से आगे बढ़ रही है। मोदी ने पिछले तीन सालों में ना केवल अपनी पार्टी भाजपा को अकेले बहुमत पाने में सक्षम बना दिया है बल्कि उन्होंने पार्टी में वैचारिक परिवर्तन भी लाया है। लेकिन पूरा विपक्ष इसे भांप पाने में विफल रहा है। आज हालात ऐसे हैं कि विपक्ष के पास मोदी का कोई तोड़ नहीं है। मेघनाद देसाई ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि जो लोग उन्हें अंडर एस्टीमेट कर रहे थे, वही लोग उनकी ताकत बढ़ा रहे हैं।

71वें स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी भले ही 125 करोड़ देशवासियों की बात करते हों, देश को जोड़ने की बात करते हों मगर आलोचक और विपक्ष उनके भाषण को सांप्रदायिकता, असहिष्णुता, खतरे में मुसलमान, हिंदू राष्ट्रवाद से जोड़कर देख रहे हैं। मोदी महिलाओं के अधिकारों या गरीबी को दूर करने के बारे में बात करते हैं लेकिन दूसरी तरफ हर कोई उसे विविधता समाप्त करने के लिए एक भयावह योजना समझता है। यही वजह है कि विपक्ष की नकारात्मक सोच से भी पीएम मोदी को वैचारिक ऊर्जा मिलती है और वो प्रगति पथ पर एक के बाद एक सफलता के कदम बढ़ाते जा रहे हैं।

मेघनाद लिखते हैं कि मोदी के लिए फायदा यह है कि सोचने-समझने वाले व्यक्ति के रूप में उन्हें लोग कमतर करके आंकते हैं। वैसे वामपंथी लोग मानते रहे हैं कि राइटिस्ट बेवकूफ होते हैं, धर्मनिरपेक्ष नहीं। उन्होंने लिखा है, “मुझे पता है कि लंदन में लेबर पार्टी कई वर्षों से लगातार एक ही गलती कर रही थी नतीजतन थैचर लगातार कई चुनाव जीत रही थी। चौथे हार के बाद, हमने बहुत उत्साहित होकर उस संदेश से सीखना शुरू किया जो थैचर ने लोगों को बेचा था।”

मोदी के मामले में भी कुछ ऐसा ही बदलाव देखने को मिलता है। इसके लिए सबसे पहले इस बात पर गौर करना होगा कि एमएस गोलवलकर के समय से लेकर आज तक आरएसएस में क्या बदलाव आया है। याद करें जब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सभी के बीच समानता का तर्क दिया तो विरोधियों ने उन्हें आरक्षण विरोधी के रूप में देखा। लेकिन ‘आरएसएस और समानता?’ के बीच जिस तरह से मोदी ने भाजपा के लिए राजनीतिक जमीन बनाई और उसका विस्तार किया है, वह उनके वैचारिक परिवर्तन का परिणाम है।

दरअसल, मोदी ने अपने मूल विचार को छोड़े बिना ही बीजेपी के लिए एक नई विचारधारा तैयार की है क्योंकि हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर चुनाव जीतना मुश्किल था। राम मंदिर और हिन्दू राष्ट्रवाद के चरण परिणाम के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी तीन-तीन बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे। इसलिए नरेंद्र मोदी ने भाजपा और आरएसएस के विचारों को एक साथ समावेशी बनाकर नई विचारधारा को जन्म दिया। उन्होंने दलितों और महिलाओं को आत्मसात किया। ये दोनों उनके लिए बड़े वोट बैंकर्स साबित हुए।