संसद के उच्च सदन राज्यसभा ने जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के विस्तार के लिए सोमवार (एक जुलाई, 2019) को मंजूरी दे दी। गृह मंत्री और मौजूदा बीजेपी चीफ अमित शाह ने इससे जुड़ा प्रस्ताव पेश किया। वह उस दौरान देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर फिर से जमकर बरसे। शाह आरोप लगाते हुए बोले कि नेहरू ने राज्य में ‘असंतोष के बीज बोए’ थे। उन्होंने इसके साथ ही कहा कि घाटी में कश्मीरी पंडितों को वापस लाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार प्रतिबद्ध है।

शाह के मुताबिक, राज्य में ‘‘आतंकवाद और अलगाववाद’’ बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसे लोगों को ‘‘कठोरता व कठिनाइयों’’ का सामना करना होगा। राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग जब भी तैयार होगा, केन्द्र सरकार एक दिन की भी देरी नहीं करेगी। उन्होंने जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि तीन जनवरी 2019 तक बढ़ाने संबंधी संकल्प और जम्मू और कश्मीर आरक्षण विधेयक (संशोधन) विधेयक 2019 पर संयुक्त रूप से चर्चा के जवाब में राज्यसभा में ये बातें कहीं।

गृह मंत्री के जवाब के बाद सदन ने इस संकल्प और विधेयक को ध्वनिमत से पारित किया, जबकि लोकसभा इन्हें पहले ही पारित कर चुकी है। उच्च सदन ने अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष द्वारा पेश प्रस्ताव को ध्वनिमत से नामंजूर किया। इससे पहले, गृह मंत्री ने चर्चा का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें यह बात सर्वमान्य रूप से सामने आई है कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। यह संदेश जम्मू कश्मीर मुद्दे का हल निकालने और घाटी के लोगों का मनोबल बढ़ाने में मददगार होगा।

बकौल शाह, ‘‘जम्मू कश्मीर देश का अभिन्न अंग है और इसे हिन्दुस्तान से कोई अलग नहीं कर सकता।’’ उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार की आतंकवाद के प्रति ‘‘कतई बर्दाश्त नहीं करने ’’ की नीति है और हम उसको हर पल निभाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वहीं, वह बोले- हम नहीं चाहते हैं कि लोग नेहरू पर गुमराह किए जाएं, पर पूर्व में की गई बड़ी गलतियों से सीख जरूर ली जानी चाहिए। कश्मीर से जुड़ी सभी समस्याएं नेहरू की वजह से हुई थीं।

बता दें कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि तीन जुलाई 2019 को समाप्त हो रही थी और संसद में यह प्रस्ताव पारित होने व अन्य कानूनी औपचारिकताओं के बाद राज्य में इसकी अवधि छह महीने के लिये बढ़ गई है। जम्मू और कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक 2019 के तहत राज्य के जम्मू, सांभा और कठुआ में अंतरराष्ट्रीय सीमा के नजदीक बसी ग्रामीण आबादी को आरक्षण देने का प्रावधान है। (पीटीआई-भाषा इनपुट्स के साथ)