प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अगले पांच सालों में विभिन्न सरकारी योजनाओं को लागू करने के लिए 26,968 दलित बहुल गांवों की पहचान की है। इनमें सभी मौजूदा केंद्रीय और राज्य कल्याणकारी योजनाएं शामिल हैं जो सामाजिक-आर्थिक और बुनियादी ढांचे की जरूरतों में महत्वपूर्ण अंतर को पूरा करने और असमानताओं को कम करने के लिए जरूरी हैं।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘आकड़ों के मुताबिक 46,859 राजस्व गांव हैं, जहां आधी से अधिक आबादी अनुससूचित जाति (एसी) के लोगों की है। इसमें से 26,968 गांव ऐसे हैं जहां 500 से अधिक लोगों की आबादी है और अगले पांच सालों में इन गांवों में हमारा विशेष ध्यान होगा।’ सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय इस योजना को कार्यान्वित कर रहा है। हालांकि यह योजना मुख्य रूप से केंद्र और राज्य सरकार की मौजूदा योजनाओं के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के बारे में है। बता दें कि मंत्रालय गेप फंडिंग के रूप में हर गांव को 21 लाख रुपए देता है।

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की कुल आबादी में दलित 16.6 फीसदी है। इसमें पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में इस समुदाय की आबादी बीस फीसदी से ज्यादा है।

बता दें कि प्रधान मंत्री आदर्श ग्राम योजना को पहली बार 2009-10 में शुरुआती आधार पर दलित गांवों के क्षेत्र-आधारित विकास के दृष्टिकोण से शुरू किया गया था। अधिकारी ने कहा कि इन गांवों में योजना के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए एक निर्णय लिया गया था, क्योंकि यह पाया गया था कि पिछले एक दशक में, केवल 2,500 दलित-बहुल गांवों को योजना के तहत लिया गया था।

अधिकारी के मुताबिक, ‘पहले के दृष्टिकोण में पाया गया कि इसकी गति के कारण, लोगों ने धीरे-धीरे रुचि खो दी और कार्यान्वयन आखिर में समाप्त हो गया। इसके अलावा, निरंतरता में गिरावट के कारण, वार्षिक आधार पर योजना के लिए कोई नियमित बजट आवंटन नहीं था। इसलिए हमने कवरेज को बढ़ाने का फैसला किया और अपने नए दृष्टिकोण के अनुसार अब तक 7,000 गांवों को अपनाया गया है।’

ग्रामीण भारत में अपनी सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के लिए सबसे गरीब परिवारों को लक्षित करने के लिए मोदी सरकार की रणनीति ने हाल ही में लोकसभा चुनावों के दौरान इसके लक्ष्य तक पहुंचने की घोषणा की। सभी सरकारी योजनाओं के लक्षित कार्यान्वयन के लिए नीति आयोग द्वारा 115 पिछड़े जिलों की पहचान की गई है।