पिछले साल लोकसभा चुनावों से पहले चुनाव प्रचार के लिए कोलकाता पहुंचे नरेंद्र मोदी ने नारा दिया था, ‘बंगाल में दीदी और दिल्ली में मोदी’। अब प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पहले दौरे पर यहां पहुंचे मोदी ने अपने उसी नारे के अनुरूप यहां दीदी के साथ दोस्ती का संकेत दिया है।
प्रधानमंत्री ने रविवार को इस्को संयंत्र के उद्घाटन पर बंगाल के गौरवशाली इतिहास का जिक्र करने के साथ ममता के इस बयान का भी समर्थन किया कि देश के विकास के हित में केंद्र व राज्य का साथ मिल कर काम करना जरूरी है।
दूसरी ओर, चुनावों से पहले और उसके बाद मोदी को दंगा बाबू, बिना दिमाग का नेता और उनकी कमर में रस्सी बांध कर जेल में डालने की धमकी देने वालीं दीदी यानी ममता बनर्जी ने भी पिछली तमाम कड़वाहटों को भुलाकर नई दोस्ती की राह पर कदम बढ़ाया है। इन दोनों की इस दोस्ती ने जहां विपक्षी दलों की कयासबाजी तेज कर दी है, वहां राज्य के लोग भी इसे हैरत भरी निगाहों से देख रहे हैं।
प्रधानमंत्री बनने के नौ महीनों बाद तक मोदी का सामना करने से बचने वालीं ममता बनर्जी मोदी की ओर से बुलाई गई किसी भी बैठक में नहीं गर्इं। लेकिन शनिवार को यहां नजरूल मंच में दोनों नेता कार्यक्रम के तय समय से आधे घंटे पहले ही पहुंच गए। वहां तो उनकी मुलाकात हुई ही, कार्यक्रम के मंच पर पहली बार ये दोनों नेता एक साथ बैठे। उसके बाद राजभवन में हुई आधे घंटे की मुलाकात ने भी दोनों के आपसी संबंधों की कड़वाहट को धोने में अहम भूमिका निभाई। नजरूल मंच में आस-पास बैठे दोनों नेता कई बार गुफ्तगू करते नजर आए।
इसी दौरान किसी बात पर जब दोनों ने एक साथ ठहाके लगाए तो राजनीतिक हलकों में कयासबाजी का नया दौर शुरू हो गया। मंच साझा करने का यह सिलसिला रविवार को आसनसोल के बर्नपुर में भी जारी रहा। यह नजारा देख कर लग ही नहीं रहा था कि इन दोनों नेताओं के बीच कभी कोई दूरी थी।
ममता ने अपने भाषण में जब राज्य के कई पंचायत इलाकों में बैंकों की मौजूदगी नहीं होने की शिकायत की तो मोदी ने भी इस पर अपनी सहमति जताई। बाद में अपने भाषण में वे यह कह कर चुटकी लेने से नहीं चूके कि ममता बनर्जी ने उनके सामने यह समस्या इसलिए रखी है कि वे जानती हैं कि मैं ही इसे दूर कर सकता हूं। यानी दीदी को मुझ पर भरोसा है।
मोदी का कहना था कि बंगाल में यह समस्या 60 साल पुरानी है। ममता ने शनिवार और रविवार को अपने भाषणों में कहा कि देश के विकास के लिए केंद्र और राज्य को मिल कर काम करना चाहिए। बर्नपुर में मोदी ने ममता की बातों का समर्थन करते हुए बंगाल के विकास में हर संभव सहायता का भरोसा दिया। मोदी ने ममता के हालिया बांग्लादेश दौरे के दौरान उनकी भूमिका की भी भूरि-भूरि सराहना की। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की निगाहों में भारत की अहमियत बढ़ाने में ममता के इस दौरे की अहम भूमिका रही है।
मोदी के दो दिन के दौरे के दौरान तमाम कार्यक्रमों में इन दोनों नेताओं के आपसी संबंधों की गर्मी प्रोटोकाल की तमाम सीमाएं पार कर गर्इं। तमाम कार्यक्रमों में ये दोनों साथ हंसते और बतियाते नजर आए।
दोनों नेताओं की इस नई दोस्ती पर विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से कटाक्ष और कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है।
माकपा सांसद मोहम्मद सलीम ने कहा कि कुछ दिनों पहले तक तो मोदी और ममता एक-दूसरे से बात करना तो दूर, उनका नाम लेना भी पसंद नहीं करते थे। लेकिन अब अचानक यह बदलाव रहस्यमय है। उन्होंने सवाल किया कि कहीं सारदा चिटफंड घोटाला ही तो इसकी वजह नहीं है?
ममता को जहां सारदा घोटाले में फंसे अपनी पार्टी के नेताओं की चिंता है, वहीं मोदी को संसद खास कर राज्यसभा में लटके विधेयकों को पारित कराने की। कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान ने कहा कि ममता ने मोदी से बंगाल के भारी कर्जों को माफ करने की अपील की है। अब देखना यह है कि केंद्र इस मुद्दे पर क्या फैसला करता है।
विपक्षी दलों का कहना है कि राज्य की मांगों को लेकर किसी मुख्यमंत्री का प्रधानमंत्री से मिलना और ज्ञापन देना तो एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन रातोंरात मोदी और ममता के आपसी संबंधों में आए इस बदलाव की असली वजह समझ में नहीं आ रही है। विपक्ष ने ममता से मोदी के साथ बैठक में राज्य के हित में हुई बातों का खुलासा करने की मांग की है।
प्रभाकर मणि तिवारी