साल 1959 में तिब्बती धर्म गुरू दलाई लामा को चीनी चंगुल से निकालकर भारत लाने वाले जवानों के दस्ते के आखिरी सैनिक का भी निधन हो गया। नरेन चंद्र दास सात सदस्यीय दस्ते के आखिरी जीवित पूर्व सैनिक थे। उन्होंने और उनके छह साथियों ने दलाई लामा को हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों से निकालकर सुरक्षित भारत में पहुंचाया। भारतीय के सबसे पुराने अर्ध सैनिक बल असम राइफल के सैनिकों की ही जाबांजी थी जो दलाई लामा चीनी चंगुल से निकलकर भारत आ सके।
नरेन दास ने लोकल मीडिया को कई बार बताया था कि कैसे उन्होंने दलाई लामा की मदद 31 मार्च 1959 में की थी। चीनी सैनिक चप्पे चप्पे पर दलाई लामा की तलाश कर रहे थे। तब उनके दस्ते ने धर्म गुरू को एक सैनिक का वेश दिया और उन्हें घोड़े पर हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों को पार कराकर भारत में पहुंचने में मदद की। नरेन दास का सोमवार को निधन हुआ था। उनकी अवस्था फिलहाल 85 साल की हो चुकी थी। उन्होंने अपने असम स्थित घर में आखिरी सांस ली।
जब वो दलाई लामा की मदद कर रहे थे तब उनकी उम्र महज 22 साल की थी। 2017 में उनकी धर्म गुरू से मुलाकात हुई तब लामा ने कहा था- तुम्हारी शक्ल देखकर लगता है कि मैं भी बूढ़ा हो गया हूं। दोनों की मुलाकात तकरीबन 60 साल बाद हुई थी। इसके एक साल बाद दलाई लाना ने नरेन को धर्मशाला आमंत्रित किया था। नरेन ने उस लम्हे को याद करते हुए कहा था कि धर्मगुरू ने उसे गले से लगाया। वो क्षण उसके जीवन का अनमोल पल था। लामा ने उन्हें एक स्मृति चिन्ह भी भेंट किया।
ध्यान रहे कि तिब्बत से निर्वासित होने के बाद दलाई लामा ने भारत में शरण ली थी। उस दौरान वो युवा थे। भारत सरकार की अनुमति मिलने के बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में अपना आश्रम स्थापित किया। उसके बाद से वो वहीं पर रह रहे हैं। हालांकि, चीन ने दलाई लामा को शरण देने के लिए कई बार विरोध जताया पर भारत ने उसकी धमकी अनसुनी कर दीं।