कलकत्ता हाईकोर्ट ने नारद मामले में सुनवाई को 26 मई तक के लिए टाल दिया है। 5 जजों की बेंच ने मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि तृणमूल नेताओं की गिरफ्तारी की अभी क्यों जरूरत पड़ रही है? जिनमें से दो नेता तो कैबिनेट मंत्री हैं और एक नेता विधायक हैं। कोर्ट ने कहा कि जब 7 सालों तक मामले में कोई गिरफ्तारी इस तरह की नहीं की गई तो अचानक चार्जशीट दाखिल करने के बाद यह गिरफ्तारी क्यों की जा रही है?

सीबीआई की ओर से पेश हुए वकील तुषार मेहता ने कहा कि यह मुद्दा तब अहम होता जब कोर्ट सिर्फ बेल पर सुनवाई कर रहा होता। सॉलिसिटर जनरल से कोर्ट ने यह भी पूछा कि मामले में मुकदमे की स्थिति क्या है? जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि 17 मई को चार्जशीट दाखिल की गई थी। चारों नेताओं के खिलाफ अभी आरोप लगाए जाने बाकी हैं।कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या हाईकोर्ट ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई जमानत पर रोक लगा सकता है? सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अदालत के समक्ष बड़ा मुद्दा यह है कि क्या 17 मई को विशेष सीबीआई न्यायाधीश के समक्ष जमानत की सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों से बाहरी दबाव बनाया जाना सही था या नहीं?

मालूम हो कि नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले में गिरफ्तार चार नेताओं को घर में ही नजरबंद करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। हाईकोर्ट ने 21 मई को पश्चिम बंगल के दो मंत्रियों, एक विधायक और कोलकाता के पूर्व महापौर को घर में नजरबंद करने का आदेश दिया था।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पीठ में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा मंत्री सुब्रत मुखर्जी और फरहाद हकीम, तृणमूल कांग्रेस विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व महापौर शोभन चटर्जी को दी गई जमानत पर रोक लगाने को लेकर मतभेद था। मतभेद के मद्देनजर मामले को दूसरी पीठ में भेजने का भी फैसला किया।

इस पीठ में न्यायमूर्ति अरिजित बनर्जी भी शामिल थे। अंतत: पीठ ने निर्देश दिया कि अबतक न्यायिक हिरासत में रह रहे ये नेता अब घर में ही नजरबंद रहेंगे। कानून अधिकारी ने बताया कि सीबीआई ने वृहद पीठ के समक्ष नजरबंद के आदेश को चुनौती दी है।

उल्लेखनीय है नारद स्टिंग ऑपरेशन टेप मामले में सीबीआई ने इन चारों नेताओं को सोमवार सुबह गिरफ्तार किया था। सीबीआई 2017 के हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, इस मामले की जांच कर रही है।