Muzaffarnagar Nameplate Controversy: कांवड़ यात्रा के रूट को लेकर उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर पुलिस ने आदेश जारी किया कि कांवड़ यात्रा मार्ग वाले रूट पर आने वाली दुकानों और ठेलों पर उनके मालिकों के नाम पर प्रदर्शित किए जाएं। इसको लेकर यूपी से लेकर केंद्रीय स्तर की सियासत भी बढ़ गई है। पूर्व सीएम अखिलेश यादव से लेकर कांग्रेस के प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के नेता पुलिस के आदेश की आलोचना कर रहे हैं। इसको लेकर बीजेपी को एनडीए के अपने ही सहयोगियों से भी नाराजगी का सामना करना पड़ा है, क्योंकि जेडीयू से लेकर आरएलडी तक की इस मुद्दे पर नकारात्मक प्रतिक्रिया आई है।

बीजेपी के लोकल विधायक से लेकर एक प्रमुख हिंदू संत के समर्थकों ने मांग उठाई और दुकानदारों पर आरोप लगाए। चौतरफा के बीच मुजफ्फरनगर पुलिस ने गुरुवार को एक ताजा एडवाइजरी जारी की इसमें कहा गया कि दुकानदार अपना और अपने कर्मचारियों का नाम अपनी इच्छा से प्रदर्शित कर सकते हैं। दूसरी ओर बीजेपी के सहयोगी दलों जेडीयू और आरएलडी ने नाराजगी जताई। यहां तक की पूर्व केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने इस निर्देश को लेकर नाराजगी जाहिर की।

जेडीयू और आरएलडी ने उठाए सवाल

इस फैसले को लेकर उठाए गए कदम पर जेडीयू नेता त्यागी ने कहा है कि सुरक्षा व्यवस्था के लिए उठाए गए कदम ठीक हैं, लेकिन ऐसा कोई संदेश नहीं जाना चाहिए जिससे सांप्रदायिक विभाजन पैदा हो। क्या यात्रा के मार्ग पर कभी कोई दंगा हुआ। उन्होंने कहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उस इलाके में, जहां से कांवड़ यात्रा गुजरती है, वह ऐसी जहां 30 से 40 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। मुस्लिम कारीगर तीर्थयात्रियों द्वारा लाए जाने वाले कांवड़ बनाने और यात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था करने में भी शामिल होते हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक रूप से मजबूत मानी जाने वाली बीजेपी की दूसरी सहयोगी आरएलडी ने भी मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा इस तरह के निर्देश की जरूरत पर सवाल उठाया है। आरएलडी के प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा कि उन्हें सुरक्षा व्यवस्था मुहैया करानी चाहिए, लेकिन लोगों को दुकानों पर अपना नाम दिखाने के लिए बाध्य करने की जरूरत नहीं है। यह प्रशासन का काम नहीं है। दूसरी ओर बीजेपी नेता ओर पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि कुछ अति-उत्साही अधिकारियों के आदेश हड़बड़ी में गंदगी वाले…असप्रश्यता की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं। आस्था का सम्मान होना ही चाहिए, पर आस्था का संरक्षण नहीं होना चाहिए।

पुलिस ने भी दी सफाई

इस मामले में पुलिस उप महानिरीक्षक (सहारनपुर रेंज) अजय कुमार साहनी ने कहा कि ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां कुछ दुकानों पर मांसाहारी खाद्य पदार्थ बेचे गए या कुछ खास धार्मिक समुदायों के लोगों ने दूसरे समुदाय के नाम पर दुकानें खोलीं। उन्होंने कहा कि मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का निर्णय यह सुनिश्चित करने के लिए लिया गया था कि ऐसी कोई समस्या न पैदा हो। उन्होंने कहा कि मालिक और प्रोपराइटर स्वेच्छा से ऐसा करने के लिए सहमत हुए हैं।

‘हिंदुओं को भी हैं समान अधिकार’

बीजेपी आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर पोस्ट किया कि लगभग दो दशक पहले दिल्ली में सभी भोजनालयों में शराब की बिक्री पर रोक लगा दी गई थी। मुंबई के व्यावसायिक जिले में भोजनालय का नाम, मालिक, संपर्क नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया था। अगर यह भेदभावपूर्ण नहीं था, तो मुजफ्फरनगर में एक आदेश को अलग नजरिए से क्यों देखा जाना चाहिए, सिर्फ इसलिए कि यह उत्तर प्रदेश है। उन्होंने कहा कि भारत की ‘धर्मनिरपेक्षता’ इतनी कमजोर नहीं हो सकती कि सभी भोजनालयों को मालिक/कर्मचारियों का नाम और संपर्क नंबर प्रदर्शित करने के लिए कहने वाला एक समान आदेश इसे बाधित करे… क्या हिंदुओं को समान अधिकार देना पाप है?

‘हिंदू मुस्लिम मुद्दा नहीं’

अमित मालवीय ने कहा कि धर्मनिरपेक्षतावादियों पर यह मानने का भी आरोप लगाया कि यह आदेश मुसलमानों के खिलाफ़ है, क्योंकि वे जानते हैं कि कई मुसलमान कोचिंग संस्थानों से लेकर खाने-पीने की दुकानों तक अपने व्यवसायों के लिए हिंदू नाम रखते हैं और न केवल धार्मिक संवेदनाओं का उल्लंघन करते हैं, बल्कि धर्मांतरण और उससे भी बदतर काम करते हैं। बिहार के बांका से जेडी(यू) के लोकसभा सांसद गिरिधारी यादव ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई “हिंदू-मुस्लिम मुद्दा” नहीं पता है। हमारे राज्य में हिंदू और मुसलमान एक साथ रहते हैं… धर्म श्रद्धा की चीज़ है। हम मुस्लिम त्योहारों में शामिल होते हैं और वे भी हमारे धर्म का सम्मान करते हैं।

कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा कि यह आदेश दलितों के साथ-साथ मुसलमानों के भी खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि “आर्थिक बहिष्कार” किसके लिए है। खेड़ा ने कहा है कि जो लोग तय करना चाहते थे कि कौन क्या खाएगा, वे अब यह भी तय करेंगे कि कौन क्या खरीदेगा और किससे खरीदेगा। कांग्रेस नेता ने कहा कि जब पहले भी इस तरह के खाद्य प्रतिबंधों के बारे में चिंता जताई गई थी, तो भाजपा की ओर से जवाब दिया गया था कि खाने-पीने की दुकानों पर हलाल मांस परोसने के बारे में ऐसी ही आपत्ति क्यों नहीं जताई गई।