High Court on Verbal Divorce: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरुवार को अमृतसर के पुलिस कमिश्नर को एक लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे एक कपल की सुरक्षा को लेकर निर्देश जारी किए है। लिव इन में रह रही मुस्लिम महिला का आरोप है कि उसके पति ने उसे जुबानी तलाक दिया था, जिसके बाद वह नए साथी के साथ रह रही थी।

दरअसल, पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में 41 साल की आयशा बीवी ने याचिका दायर की थी। उनकी पहले मोहम्मद खुर्शीद से शादी हुई थी और उनसे उनके दो बच्चे हैं। आयशा ने आरोप लगाया कि उनके पति ने मुस्लिम रीति-रिवाजों के तहत मौखिक तलाक दे दिया और फिर जब वह इस मामले में दूसरे याचिकाकर्ता, एक अन्य व्यक्ति के साथ रहने लगीं, तो उन्होंने उन्हें धमकाना शुरू कर दिया।

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महिला को है जान का खतरा

ऐसे में आयशा ने पति और रिश्तेदारों से नाराजगी के डर से दंपति ने 30 अक्टूबर को अमृतसर पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई थी। उसे अपनी और अपने लिव इन पार्टनर की जान का खतरा है। इसके चलते ही न्यायमूर्ति जसजीत सिंह बेदी ने एक आपराधिक रिट याचिका निपटारा करते हुए कहा कि भले ही याचिकाकर्ता लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हों, फिर भी वे अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के हकदार हैं।

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खतरे का आंकलन करें पुलिस कमिश्नर

हाईकोर्ट ने कहा कि अमृतसर के पुलिस आयुक्त लिव-इन कपल को उत्पन्न किसी भी खतरे का आकलन करें और उस पर कार्रवाई करें। महिला के वकील मोहित वशिष्ठ ने हाईकोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला दिया, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को धमकियों के खिलाफ सुरक्षा मांगने के अधिकार की पुष्टि की गई थी।

प्रदीप सिंह एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य (2021) मामले में एक समन्वित पीठ के फैसले का हवाला देते हुए, जस्टिस बेदी ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा, जो कभी महानगरीय क्षेत्रों तक ही सीमित थी, अब छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में भी सामाजिक रूप से पैर जमा चुकी है।

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अदालत ने कहा कि हालांकि ऐसे रिश्ते पारंपरिक मानदंडों के विपरीत हो सकते हैं, लेकिन कानून की नज़र में ये न तो अवैध हैं और न ही अनैतिक। जज ने कहा कि अंतर सिर्फ़ इतना है कि यह रिश्ता सर्वमान्य नहीं है। क्या इससे कोई फ़र्क़ पड़ेगा? मेरी राय में, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।

आयशा के कथित मौखिक तलाक की वैधता पर विवाद पर जज ने इशरत बानो बनाम पंजाब राज्य मामले में 2021 के खंडपीठ के फैसले का हवाला दिया जिसमें अदालत ने अधूरे या विवादित तलाक के बावजूद पुलिस सुरक्षा बरकरार रखी थी। जस्टिस बेदी ने कहा कि ज़ोर व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा पर होना चाहिए, न कि सुरक्षा के स्तर पर वैवाहिक वैधता पर निर्णय लेने पर।

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