स्वामी विवेकानंद के विचार और साधना में योग विद्या का बहुआयामी समन्वय है। ज्ञान, कर्म और भक्ति की त्रिवेणी उनके व्यक्तित्व से अविरल प्रवाहित होती है और राजयोग की पराकाष्ठा उनके जीवन को सूर्य की भांति दीप्तिमान बनाती है।
विवेकानंद की मान्यता में ‘अहं ब्रह्मास्मि’ की मौलिक धारणा संपूर्ण मानव जाति को अखंडता का आधार प्रदान करती है और इसी ऋषिसूत्र में समस्त समस्याओं का समाधान निहित है। योग को लेकर उन्होंने जो विचार व्यक्त किए, वह योगज्ञान का एक तरह से आधुनिक भाष्य है।
योग की अनेक धाराएं हैं। इनमें भी मंत्रयोग, हठयोग, लययोग और राजयोग को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है। स्वामी विवेकानंद ने योग की इन विशिष्ट परंपराओं को विश्व के समक्ष व्यावहारिक ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने राजयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग आदि योग पद्धतियों के द्वारा जनसामान्य एवं खासतौर पर युवाओं में अध्यात्म एवं योग के प्रति समर्पण की भावना को जागरूक किया।