जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का संक्षिप्त बीमारी के बाद गुरुवार को निधन हो गया। सईद को अच्छी खासी मुसलिम आबादी वाले राज्य में भाजपा के साथ लगभग असंभव समझे जाने वाली गठबंधन सरकार बनाने का शिल्पकार माना जाता है। सईद ने पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में पिछले साल एक मार्च को पदभार ग्रहण किया था। उनके निधन के बाद उनकी पुत्री महबूबा मुफ्ती का जम्मू कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है। पीडीपी विधायकों ने गुरुवार को मुख्यमंत्री पद के लिए 56 वर्षीय महबूबी मुफ्ती के समर्थन वाली चिट्ठी राज्यपाल को सौंप दी।
मुफ्ती मोहम्मद सईद का प्लेटलेट्स खतरनाक स्तर तक गिरने के बाद गुरुवार को यहां एम्स में निधन हो गया जहां वे पिछले कुछ दिनों से जीवन रक्षक यंत्र पर थे। उन्हें विशेष विमान के जरिए 24 दिसंबर को श्रीनगर से यहां लाकर एम्स में भर्ती कराया गया था जहां उन्हें सेप्सिस (जीवन के लिए घातक संक्रमण की बीमारी) और निमोनिया से पीड़ित पाया गया। वे जम्मू कश्मीर के दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री है जिनका उनके कार्यकाल के दौरान निधन हुआ है। इससे पहले आठ सितंबर, 1982 को मुख्यमंत्री रहते हुए शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का निधन हुआ था। सईद के परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा है। केंद्र ने गुरुवार को राष्ट्रीय शोक का एलान किया जबकि जम्मू कश्मीर सरकार ने सात दिन के शोक और गुरुवार को अवकाश की घोषणा की है। इस दौरान झंडे आधे झुके रहेंगे। उनको गुरुवार को अनंतनाग जिले के उनके पुश्तैनी कस्बे बिजबेहरा स्थित कब्रिस्तान में पूरे राजकीय सम्मान के साथ सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया।
इससे पहले मुख्यमंत्री के पार्थिव शरीर को भारतीय वायु सेना के विमान से श्रीनगर ले जाया गया जहां उसे गुपकर रोड स्थित उनके आवास पर अंतिम दर्शनार्थ रखा गया। इस दौरान पीडीपी के समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने अपने नेता को याद करते हुए नारेबाजी की। सईद का पार्थिव शरीर वाला ताबूत तिरंगे और जम्मू-कश्मीर के ध्वज से लिपटा हुआ था। सईद के जनाजे में शामिल हुए लोगों में उनके निकट के रिश्तेदार और पीडीपी के वरिष्ठ नेता थे। उनके जनाजे की नमाज यहां सोनवार स्थित शेर-ए-कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम में पढ़ी गई। अपने नेता को आखिरी विदाई देने के लिए कश्मीर घाटी के अलग अलग हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे। मुफ्ती ने 1999 में पीडीपी का गठन किया था।
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद भी उनके जनाजे की नमाज में शामिल हुए। सईद के निकट सहयोगी और राज्य के शिक्षा मंत्री नईम अख्तर ने उनकी जनाजे की नमाज पढ़ाई। जनाजे की नमाज के बाद सईद को 21 तोपों की सलामी दी गई और पुलिस के बैंड ने मातमी धुन बजाई। पुलिस के वाहन पर जब उनके पार्थिव शरीर वाला ताबूत रखा गया और वाहन आगे बढ़ा तो मानो पूरा शहर सड़कों पर आया गया। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और राज्य के राज्यपाल एनएन वोहरा ने सईद के आवास पर पहुंचकर शोक-संतप्त परिवार को सांत्वना दी।
सईद 1987 तक कांग्रेस में रहे। बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी व वीपी सिंह के साथ चले गए। वीपी सिंह ने उन्हें उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर सीट से जनता दल का लोकसभा उम्मीदवार बनाया। वे जीते और देश के एकमात्र मुसलिम गृह मंत्री बने जब उन्हें 1989 में जनमोर्चा नीत सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। सईद ने गृह मंत्री के रूप में पदभार उस समय संभाला था, जब कश्मीर में आतंकवाद ने अपने घिनौना रूप दिखाना शुरू किया था। गृह मंत्रालय में उनके इस कार्यकाल को उनकी तीसरी बेटी रुबैया सईद के अपहरण के साथ जोड़कर याद किया जाता है। जेकेएलएफ के आतंकियों ने आठ दिसंबर, 1989 रुबैया को अगवा कर लिया और रिहाई के बदले में अपने पांच साथियों को छोड़ने की मांग की थी। आखिरकार 13 दिसंबर को सरकार ने घुटने टेकते हुए इन पांचों आतंकवादियों को रिहा कर दिया। इसके दो घंटे रुबैया सईद को भी आतंकवादियों ने छोड़ दिया। इस अपहरण और फिर आतंकियों की रिहाई ने पहली बार भारत को एक ‘कमजोर देश’ के रूप में पेश किया। माना जाता है कि जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला आतंकियों की रिहाई के सख्त खिलाफ थे। फारुक अब्दुल्ला ने बाद में दावा किया कि आतंकियों को रिहा नहीं करने पर केंद्र ने उनकी सरकार को बर्खास्त करने की धमकी दी थी।
उधर, पीडीपी के विधायकों ने गुरुवार को ही एकमत से महबूबा को पार्टी विधायक दल का नेता चुना और इस बाबत राज्यपाल एनएन वोहरा को चिट्ठी लिखी। पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने यहां राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात में समर्थन की चिट्ठी सौंपी। इसमें कहा गया है कि पीडीपी के विधायक राज्य की 13वीं मुख्यमंत्री के तौर पर कामकाज संभालने की खातिर 56 साल की महबूबा का समर्थन करते हैं।
उन्होंने बताया कि लोकसभा सांसद महबूबा को 28 सदस्यीय पीडीपी विधायक दल का नेता चुनने का निर्णय एकमत से किया गया। बहरहाल, पीडीपी नेता ने शपथ ग्रहण की तारीख या वक्त नहीं बताया। उन्होंने कहा कि यह सब कुछ दिनों में होगा। हम अभी अपने प्रिय नेता के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में हैं। इससे पहले, जम्मू-कश्मीर सरकार में पीडीपी की गठबंधन सहयोगी भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए नेता का नाम चुनने की जिम्मेदारी पीडीपी पर ही छोड़ दी थी। पीडीपी नेता ने कहा कि चूंकि मुख्यमंत्री पद के लिए नेता का नाम चुनने की जिम्मेदारी भाजपा ने पीडीपी पर डाल दी है तो महबूबा का राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का रास्ता लगभग साफ हो चुका है। पीडीपी के वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग ने बताया कि जहां तक पीडीपी की बात है, हमारी एक राय है कि महबूबा को ही मुफ्ती साहब की जगह लेनी चाहिए। महबूबा अभी कश्मीर के अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं।
भाजपा ने स्पष्ट किया है कि वह पीडीपी की पसंद को मानेगी। भाजपा उपाध्यक्ष और पार्टी के जम्मू-कश्मीर प्रभारी अविनाश राय खन्ना ने कहा कि यह फैसला करना पीडीपी का काम है कि उसका नेता कौन होगा……हमारा गठबंधन पीडीपी के साथ है। खन्ना से पूछा गया था कि महबूबा के उनके पिता की जगह लेने पर भाजपा की क्या राय है। भाजपा में कई कारणों से महबूबा का विरोध करने वाले लोग भी हैं। इसकी वजह यह है कि पीडीपी ‘स्वशासन’ की अवधारणा में यकीन करती है जबकि भाजपा में कुछ लोग इसे ‘नरम अलगाववाद’ करार देते हैं।
सूत्रों ने बताया कि सईद के निधन के बाद भाजपा के पास विकल्प काफी कम हैं और इसी वजह से उसे उनके निश्चित उत्तराधिकारी के साथ ही आगे बढ़ना होगा। उन्होंने बताया कि सईद के न होने से अब हालात एकदम अलग हैं। महबूबा स्वाभाविक पसंद हैं। उन्होंने कहा कि दोनों पार्टियों ने असंभव से लग रहे गठबंधन को चलाने में काफी प्रयास किया है। सईद 2002 से 2005 तक भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे तब कांग्रेस के साथ उनकी पार्टी की गठबंधन सरकार बनी थी।