सरकार के द्वारा अच्छे दामों का वादा किए जाने के बाद भी किसानों को हाल की खरीफ फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी कम में बेचना पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने लागत में 50% रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए जुलाई में एमएसपी को काफी हद तक बढ़ाया था और इसके लिए PM-AASHA नाम की नई खरीद प्रणाली का पालन किया था। हालांकि कई राज्यों में किसान सोयाबीन और मूंग और उड़द जैसी दालों को एमएसपी से भी कम दाम में बेच रहे हैं। 2018 में भी रिकॉर्ड फसल होने के बाद भी लगातार तीसरे वर्ष किसानों को कम दाम मिल रहे हैं। ग्लोबल एनालिटिकल कंपनी CRISIL ने इस हफ्ते की शुरुआत में अपने शोध में कहा, ”2018 एक और वर्ष होने जा रहा है जब किसानों की आय ने मैटेरियल पिक-अप नहीं देखा।” हाई एमएसपी फसल लाभप्रदाता की हालत सुधारने के लिए कम मदद कर पाई क्योंकि मंडी के दामों को देखते हुए सरकार ने समर्थन मूल्य की घोषणा की। बड़े थोक बाजारों की रोज की आवक और दामों का रिकॉर्ड रखने वाले सरकारी पोर्ट agmarknet ने दिखाया कि दाल की किस्मों के लिए कीमतों में अंतर सबसे तेज है।

राजस्थान के अजमेर में मंगलवार (9 अक्टूबर) को मूंग और हरा चना 4200 रुपये प्रति क्विंटल बिका, जोकि इसके लिए निर्धारित एमएसपी 6975 रुपये से 40 फीसदी कम दाम था। मूंग दाल के दाम इसी साल के एमएसपी से ही नहीं, बल्कि पिछले वर्ष निर्धारित 5,575 प्रति क्विंटल एमएसपी से भी कम थे। इसके लिए प्रति क्विंटल उत्पादन लागत 4650 रुपये थी। लाइव मिंट की खबर के मुताबिक मध्य प्रदेश के मंदसौर में जहां पिछले वर्ष जून में फसल के कम दामों को लेकर विरोध प्रदर्शन करते हुए पुलिस फायरिंग में 5 किसान मरे थे, वहां सोमवार को उड़द और काला चना 3510 रुपये प्रति क्विंटल बेचे गए, जोकि प्रति क्विंटल तय एमएसपी 5600 रुपये से 37 फीसदी कम दाम थे। मध्य प्रदेश में दालों की तरह सोयाबीन निर्धारित एमएसपी 3399 रुपये प्रति क्विंटल से 10 फीसदी कम दाम यानी 2800 से 3000 रुपये प्रति क्विंटल बेची जा रही है।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की किसान शाखा के अध्यक्ष और पूर्व नेता केदार सिरोही ने मीडिया से कहा, ”राज्य सरकार कह चुकी है कि 20 अक्टूबर से निर्धारित एमएमपी पर फसलों की खरीद शुरू होगी लेकिन तब तक उन छोटे किसानों के द्वारा 60 फीसदी उपज बेच दी जाएगी जो अपने उत्पादन को रोके रखने की स्थिति में नहीं हैं। बता दें कि किसानों को मिल रहे कम दाम आने वाले विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की फांस बन सकते हैं क्योंकि मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव के लिए 2 महीनों से भी कम वक्त रह गया है।