बीते कुछ महीनों से चर्चा छिड़ी हुई है कि सरकार संविधान की प्रस्तावना से ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ (‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’) शब्द हटा सकती है। इसको लेकर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बड़ा बयान दिया है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को राज्यसभा में स्वीकार किया कि कुछ ग्रुप संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन सरकार की ऐसा करने की कोई योजना या इरादा नहीं है।

सरकार ने क्या जवाब दिया?

समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा उठाए गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, “भारत सरकार ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने के लिए औपचारिक रूप से कोई कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है। हालांकि कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक हलकों में इस पर चर्चा या बहस हो सकती है, लेकिन सरकार ने इन शब्दों में संशोधन के संबंध में कोई औपचारिक निर्णय या प्रस्ताव की घोषणा नहीं की है।”

आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने दिया था बयान

बता दें कि आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने एक कार्यक्रम में बयान दिया था कि आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जोड़े गए ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों पर चर्चा जरूरी है। सपा सांसद सुमन ने अर्जुन मेघवाल से इस पर प्रतिक्रिया मांगी थी कि क्या कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी प्रस्तावना से इन दो शब्दों को हटाने के लिए माहौल बना रहे हैं।

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आरएसएस नेता दत्तात्रेय के बयान और सरकार के रुख के बीच अंतर करते हुए अर्जुन मेघवाल ने कहा, “कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा बनाए गए माहौल के संबंध में यह संभव है कि कुछ समूह अपनी राय व्यक्त कर रहे हों या इन शब्दों पर पुनर्विचार की वकालत कर रहे हों। ऐसी गतिविधियां इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा या माहौल बना सकती हैं, लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि सरकार के आधिकारिक रुख या कार्यों को दर्शाए।”

मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने नवंबर 2024 में डॉ. बलराम सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी हवाला दिया। इस फैसले में कोर्ट ने 42वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, “न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भारतीय संदर्भ में समाजवाद एक कल्याणकारी राज्य का प्रतीक है और निजी क्षेत्र के विकास में बाधा नहीं डालता, जबकि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग है।”

क्या है मोदी सरकार का रुख?

इस मुद्दे पर सरकार के रुख के बारे में पूछे जाने पर मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, “सरकार का आधिकारिक रुख यह है कि संविधान की प्रस्तावना से ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्दों पर पुनर्विचार करने या उन्हें हटाने की कोई योजना या इरादा नहीं है। प्रस्तावना में संशोधन संबंधी किसी भी चर्चा के लिए गहन विचार-विमर्श और व्यापक सहमति की आवश्यकता होगी, लेकिन अभी तक सरकार ने इन प्रावधानों को बदलने के लिए कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है।”

26 जून को दत्तात्रेय होसबोले ने 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोलते हुए कांग्रेस से आपातकाल के लिए माफ़ी मांगने को कहा था। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि 1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्दों को हटाने पर चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कार्यक्रम में कहा, “बाद में इन्हें (समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष) हटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। इसलिए, इस पर चर्चा होनी चाहिए कि इन्हें रहना चाहिए या नहीं। मैं यह बात बाबासाहेब अंबेडकर के नाम पर बनी एक इमारत (अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर) में कह रहा हूं, जिनके संविधान की प्रस्तावना में ये शब्द नहीं थे।”