हाल में केंद्र सरकार ने रबी की छह फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में न्यूनतम 130 रुपए और अधिकतम तीन सौ रुपए प्रति कुंतल की बढ़ोतरी की है। गेहूं की एमएसपी में 150 रुपए और सरसों के दाम में प्रति कुंतल तीन सौ रुपए बढ़ाया गया है। इसी तरह मसूर के दाम में 275 रुपए वृद्धि की गई है। सरकारी दर पर रबी फसलों की खरीद-बिक्री का सत्र अप्रैल, 2025 से शुरू होगा। खास बात यह है कि अधिकतर फसलों की एमएसपी अब लागत के लगभग डेढ़ गुना हो चुकी है, जिसकी मांग किसानों की ओर से लगातार हो रही थी। सरकार की ओर से एमएसपी में अब तक 23 फसलों को शामिल किया जा चुका है। एमएसपी बढ़ाने को लेकर किसान लगातार आंदोलन करते रहे हैं। अब सवाल है कि क्या इस बार एमएसपी बढ़ने से अगली बार आंदोलन नहीं होगा!
न्यूनतम समर्थन मूल्य दरअसल, सरकार द्वारा किसानों से तय दर पर फसल खरीदने की गारंटी है। इसका उद्देश्य किसानों को उनकी फसल पर कम से कम एक निश्चित राशि देना है। एमएसपी की वजह से किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव से सुरक्षा मिलती है। एमएसपी की शुरुआत 1967 में हुई थी। इसे तय करने के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की रपट का इस्तेमाल किया जाता है।
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सीएसीपी उत्पादन लागत, बाजार के रुझान और मांग-आपूर्ति के हिसाब से एमएसपी तय करता है। एमएसपी की गणना के लिए सीएसीपी खेती की लागत को तीन हिस्सों में बांटता है। इसमें फसल उत्पादन के लिए किसानों के नकदी खर्च के साथ-साथ पारिवारिक श्रम का भी हिसाब लगाया जाता है। एमएसपी में बढ़ोतरी से किसानों को लाभकारी मूल्य मिलता और फसल विविधीकरण को बढ़ावा मिलता है।
एमएसपी को लेकर किसान कर चुके हैं आंदोलन
असल में एमएसपी को लेकर किसानों ने कई बार आंदोलन किया है। वे हर फसल को एमएसपी पर खरीदने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए पिछली बार उन्होंने लगभग सभी फसलों की एक सूची सरकार को सौंपी थी। किसान संगठन कहते हैं कि सरकार फसलों के विविधीकरण पर जोर दे रही है, लेकिन यह सरकार के रुख पर निर्भर करता है। किसान चाहते हैं कि सरकार फसलों के लिए जो एमएसपी घोषित करती है, उसकी गारंटी दी जाए। अगर सरकार गारंटी देती है, तो फसलों का विविधीकरण अपने आप हो जाएगा। अगर दलहन और तिलहन बेचने से किसान को ज्यादा मुनाफा होगा, तो वह धान और गेहूं क्यों पैदा करेगा। सरकार चाहती है कि फसलों का विविधीकरण हो। यह अच्छी बात है, लेकिन किसानों को यह गारंटी तो मिले कि उसकी फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिकेंगी।
Blog: उत्पाद और खाद्य सुरक्षा की चुनौतियां
एमएसपी बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार का तर्क है कि इससे किसानों की आय बढ़ेगी। हालांकि किसान नेता सरकार के इस दावे से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार के कई उपाय हो सकते हैं। इसमें एक है मूल्य स्थिरता कोष का गठन यानी जब फसलों की बाजार कीमत एमएसपी से नीचे चली जाए, तो सरकार इसकी भरपाई करे। वहीं किसानों को धान-गेहूं की फसल के बजाय ज्यादा कीमत देने वाली फसलों को पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। किसानों को फल-सब्जी उत्पादन और मवेशी तथा मछली पालन के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उनका कहना है कि ‘कान्ट्रैक्ट फार्मिंग’ की आड़ में किसानों को कंपनियों के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए। ये कंपनियां अनुबंध तोड़ देती हैं और किसानों को घाटा उठाना पड़ता है। इससे किसान कर्ज में डूब जाता है और कई मामलों में आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है।
नवाचार को हतोत्साहित करता है एमएसपी व्यवस्था
वहीं कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि एमएसपी व्यवस्था का दबदबा नवाचार को हतोत्साहित करेगा। इससे किसान सरकारी व्यवस्था पर निर्भर होकर रह जाएंगे और जोखिम लेने से डरेंगे। इसलिए किसानों को गेहूं और चावल की एमएसपी खरीद के चक्र से छुटकारा दिलाने की जरूरत है। एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों का अहित करेगी। उनका दावा है कि अगर स्वामीनाथन आयोग के मुताबिक फसलों के दाम बढ़ेंगे, तो खाद्य वस्तुओं के दाम 25 से 30 फीसद बढ़ जाएंगे और सरकार के लिए महंगाई पर नियंत्रण बेहद कठिन हो जाएगा। वहीं किसानों का कहना है कि उनकी फसल की पूरी खरीद की जिम्मेदारी सरकार को लेनी होगी। किसान जितनी फसल पैदा करेंगे, उसकी एमएसपी पर पूरी खरीद सरकार और उसकी एजंसियों को करनी होगी। ऐसा करने से ही किसानों का भला होगा और फसलों का विविधीकरण भी पूरा हो जाएगा।
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कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खाद्य सुरक्षा आत्मनिर्भरता देश के स्थायित्व और सम्मान का विषय है। एमएसपी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ खुले बाजार में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप तंत्र भी साबित हुआ है। आयात द्वारा खाद्य सुरक्षा कतर, बहरीन आदि जैसे कम आबादी और मजबूत औद्योगिक आर्थिक आधार वाले देशों के लिए एक व्यवहार्य आदर्श हो सकता है। इंडियन काउंसिल फार रिसर्च आन इंटरनेशनल रिलेशंस आर्गनाइजेशन फार इकोनामिक कोआपरेशन ऐंड डेवलपमेंट का एक अध्ययन बताता है कि खेती की कीमतों को कृत्रिम रूप से कम रखने की पक्षपाती सरकारी नीतियों के कारण देश के किसान सन 2000 के बाद से लगातार घाटा उठा रहे हैं, जिसने किसानों को लगातार गरीबी रेखा से नीचे रखा हुआ है।
सरकारी नीति के आधार पर किसान आत्महत्या करने को मजबूर
रपट आगे कहती है कि पक्षपातपूर्ण सरकारी नीतियों और कृषि कीमतों के कारण देश के किसानों को वर्ष 2022 में 14 लाख करोड़ रुपए और 2000-2017 के दौरान 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इन पक्षपाती सरकारी नीति आधारित शोषण के कारण ही किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। इस बारे में एक कृषि विशेषज्ञ का कहना है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ बाजारी मुद्रास्फीति को भी नियंत्रित करेगी, जिससे किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाया जा सकेगा। उन्हें बेहतर कृषि उत्पादन प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
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असल में एमएसपी के साथ प्रमुख समस्या गेहूं और चावल को छोड़ कर सभी फसलों की खरीद के लिए सरकारी मशीनरी की कमी है। गेहूं और चावल को भारतीय खाद्य निगम पीडीएस के तहत सक्रिय रूप से खरीदता है। कई राज्य सरकारें संपूर्ण अनाज की खरीद करती हैं। ऐसे राज्यों में किसानों को अधिकतम लाभ होता है, जबकि कम खरीद करने वाले राज्यों के किसान प्राय: प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं। सीएसीपी ने अपनी मूल्य नीति रपट में एमएसपी पर एक कानून बनाने का सुझाव दिया था। ऐसा किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक बताया गया था। उसका कहना था कि सरकार को कृषि और पशुपालन को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे लोगों को प्रोटीन, विटामिन, खनिज और फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थ मिले। इसके अलावा, खरीद को प्रति किसान के हिसाब से सीमित कर दिया जाना चाहिए। वहीं किसानों को बिचौलियों, कमीशन एजंटों और खरीद करने वाले सरकारी अधिकारियों पर निर्भरता से बचाना चाहिए, ताकि उनका शोषण रोका जा सके।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि एमएसपी व्यवस्था का दबदबा नवाचार को हतोत्साहित करेगा। इससे किसान सरकारी व्यवस्था पर निर्भर होकर रह जाएंगे और जोखिम लेने से डरेंगे, इसलिए किसानों को चावल-गेहूं की एमएसपी खरीद के चक्र से छुटकारा दिलाने की जरूरत है। एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों का अहित करेगी। उनका दावा है कि अगर स्वामीनाथन आयोग के मुताबिक फसलों के दाम बढ़ेंगे, तो खाद्य वस्तुओं के दाम 25 से 30 फीसद बढ़ जाएंगे और सरकार के लिए महंगाई नियंत्रण बेहद कठिन हो जाएगा।