क्या कश्मीर मसले पर मोदी सरकार ने महात्मा गांधी की अनदेखी की? क्या एतिहासिक फैसला लेने से पहले एकबार भी कश्मीर पर गांधी की विचारों पर अम्ल किया गया। अगर आर्टिकल 370 को हटाए जाने के पहले और बाद के घटनाक्रम को देखे तो मोदी सरकार कश्मीर नीति पर राष्ट्रपिता गांधी के विचारों को अनदेखा करती नजर आई।

ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है कि क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बड़े फैसले के बाद राष्ट्र के नाम संबोधन किया और फिर स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से भाषण दिया। लेकिन दोनों ही भाषणों में गांधी के कश्मीर पर विचारों को अनदेखा किया गया।

आखिर गांधी की कश्मीर को लेकर क्या नीति थी कि मोदी सरकार उनका नाम लेने से बचती नजर आई। वही सरकार जो समय-समय पर गांधी का नाम लेती रही है वह इसबार चुप क्यों है। वरिष्ठ पत्र उर्मिलेश ने ‘सत्य हिंदी’ में एक अपने एक लेख के जरिए इसका जिक्र किया है।

लेख के मुताबिक कश्मीर पर महात्म गांधी की स्पष्ट नीति थी कि वहां की आवाम अपने फैसले लेने के लिए सर्वोपरि है। गांधी जी ने कहा है कि किसी भी देश का शासक वहां की जनता का सेवक होता है। इसलिए अपने देश या फिर क्षेत्र पर फैसला लेने का अधिकार वहां की आवाम के पास होना चाहिए न कि शासक को।

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साफ है गांधी मानते थे कि शासक किसी तरह की हेरफेर कर जनता के अधिकार को नजरअंदाज नहीं कर सकते। लेकिन केंद्र सरकार ने राज्य की आवाम, वहां के क्षेत्रीय नेताओं और दलों को संज्ञान में नहीं लिया। केंद्र ने राज्यपाल सत्य पाल मलिक को दिल्ली बुलाकर राय मशविरा किया और फैसले पर मुहर लगा संसद में बिल पारित करवा दिया। बहरहाल बीजेपी ने अपने पुराने वादे को निभाया और पीएम ने कहा है कि उनकी सरकार न तो समस्याएं पालती है और न ही उन्हें टालती है।