बुधवार सुबह से ही ट्विटर पर #ModiCheatedFarmers नामक हैशटैग ट्रेंड हो रहा है। कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट सावर्जनिक होने के बाद इस ट्रेंड के माध्यम से सोशल मीडिया यूजर प्रधानमंत्री मोदी से अपील कर रहे हैं कि सरकार देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर कानून बनाए। किसान संगठनों ने भी सरकार से कई बार अपील की है कि सरकार एमएसपी को लेकर कानून बनाए।
Modi Cheated Farmers नामक हैशटैग के समर्थन में संदीप धालीवाल नाम के ट्विटर यूजर ने लिखा कि, “किसान विरोधी बीजेपी ने पिछली बार की तरह ही कमेटी बनाई है और किसानों ने 11 अप्रैल से लेकर 17 अप्रैल तक आंदोलन को बुलाया है।” वहीं सरजीत धालीवाल ने हैशटैग पर ट्वीट करते हुए लिखा कि, “एमएसपी एक ऐसा उपकरण है जो भारत में कृषि संकट को दूर कर सकता है। इससे किसानों के हाथ में पैसा आएगा जो सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। खर्च बढ़ने से किसानों की आर्थिक शक्ति बढ़ेगी।” साथ ही सरजीत ने पुछा कि भारत में न्यूनतम वेतन लागू है , न्यूनतम पेंशन लागू है तो फिर MSP क्यों नहीं?
अमन कौर नाम के ट्वीटर यूजर ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा कि, “किसान अभी भी लंबित मांगों के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि मोदी उन्हें पूरा करने के लिए आगे नहीं आए।” जबकि मोहित गहलोत नाम के ट्विटर यूजर ने लिखा कि, “मोदी सरकार द्वारा किसानों के लिए शुरू की गई कृषि बीमा योजना वास्तव में किसानों को नहीं बल्कि बड़े कॉरपोरेट्स को लाभ पहुंचाने के लिए लागू की गई है। मोदी सरकार बार-बार ऐसी नीतियां लाती है जो किसानों के खिलाफ हो।”
प्रभजोत सिंह संधू नाम के ट्विटर यूजर में दुबारा किसान आन्दोलन की शुरुवात को लेकर लिखा कि, “अगर भारत सरकार तीनों कृषि कठोर विधेयक फिर से लाती है, तो किसान आंदोलन को उठने में देर नहीं लगेगी।” जास नाम के ट्विटर यूजर ने लिखा कि, “कृषि कानून निरस्त कर दिए गए हैं लेकिन कुछ भी नहीं बदला है। किसान अब भी भुगत रहे हैं। मोदी की रिपोर्ट के अनुसार 84% किसान कानूनों के समर्थन में थे लेकिन वास्तव में ये कानून किसानों को खत्म करने के लिए ही बनाए गए थे।”
सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक रिपोर्ट जारी होने के बाद राकेश टिकैत ने एक बार फिर किसान आन्दोलन की चेतावनी देते हुए ट्वीट किया कि, “तीन कृषि कानूनों के समर्थन में घनवट ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट सार्वजनिक कर साबित कर दिया कि वे केंद्र सरकार की ही कठपुतली थे। इसकी आड़ में इन बिलों को फिर से लाने की केंद्र की मंशा है तो देश में और बड़ा किसान आंदोलन खड़े होते देर नहीं लगेगी।”