Pune News: पुणे के चंदन नगर में 26 जुलाई की आधी रात के आसपास कारगिल युद्ध के पूर्व सैनिक के रिश्तेदार के घर में भीड़ घुस गई और उन्हें बांग्लादेशी बताने लगी। इतना ही नहीं उनके पहचान पत्र की भी मांग की। इस भीड़ में करीब 60-70 लोग शामिल थे। ट्रक ट्रांसपोर्ट का कारोबार चलाने वाले परिवार के सदस्य शमशाद शेख ने बताया कि भीड़ ने उन्हें धमकी भी दी।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शेख ने बताया कि वहां पर सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी भी थे, पर किसी ने भी उन्हें रोका नहीं। उन्होंने बताया कि परिवार के सदस्यों को रात में ही पुलिस स्टेशन ले जाया गया। पुलिस ने बताया कि यह कार्रवाई बांग्लादेशियों के बारे में मिली एक टिप पर की गई थी और वे भीड़ द्वारा घर में घुसने के आरोपों की जांच कर रहे हैं।

परिवार ने दर्ज कराई शिकायत

परिवार ने चंदन नगर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है। डीसीपी सोमय मुंडे ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया चल रही है, जबकि पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार ने कहा कि एफआईआर पहले ही दर्ज की जा चुकी है। शेख ने बताया कि उनके चाचा हकीमुद्दीन कारगिल युद्ध के रिटायर सैनिक हैं और उनके परिवार के कई सदस्य भी इंडियन आर्मी में सेवा दे चुके हैं।

भीड़ ने हमारे गेट पर लात मारना शुरू कर दिया- शेख

26 जुलाई की घटना के बारे में बताते हुए शेख ने कहा, ‘रात के लगभग 11:30-12 बजे, इन लोगों ने हमारे दरवाजे पर लात मारना शुरू कर दिया और हमारे घर में घुसकर हमारी पहचान पत्र मांगने लगे। 7-10 लोगों के ग्रुप हमारे घर में घुसते रहे और वे हमारे बेडरूम में भी घुस गए और महिलाओं और बच्चों को जगा दिया। हमने उन्हें अपना आधार कार्ड, पैन कार्ड और यहां तक कि वोटर आईडी भी दिखाई, लेकिन वे कहते रहे कि ये नकली हैं।’ शेख ने आगे बताया कि उन्हें एक पुलिस वैन में बिठाकर थाने ले जाया गया, जहां इंस्पेक्टर सीमा ढकने ने उनसे कहा कि अगली सुबह वापस आएं, वरना उन्हें बांग्लादेशी घोषित कर दिया जाएगा।

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शेख के चाचा ने परिवार के सैन्य इतिहास के बारे में बताया

शेख के चाचा इरशाद ने परिवार के सैन्य इतिहास के बारे में इंडियन एक्सप्रेस को बताया। उन्होंने कहा, ‘हमारे परिवार का भारतीय सेना में सेवा करने का 130 साल का इतिहास है। हमारे परदादा हवलदार के पद से रिटायर हुए थे। हमारे दादा सेना में सूबेदार थे और उनके भाई जमशेद खान मध्य प्रदेश के डीजीपी थे। मेरे दो चाचा सेना में सूबेदार मेजर थे और अब रिटायर हो चुके हैं। नईमुल्लाह खान 1962 में सेना में भर्ती हुए और 1965 और 1971 के युद्ध में लड़े, मोहम्मद सलीम 1968 में सेना में शामिल हुए और उन्होंने 1971 के युद्ध में लड़ाई लड़ी। मेरे अपने भाई हकीमुद्दीन 1982 में पुणे में बॉम्बे सैपर्स में शामिल हुए और ट्रेनिंग के बाद पूरे भारत में तैनात रहे। उन्होंने कारगिल युद्ध में लड़ाई लड़ी और 2000 में सेवानिवृत्त हुए। वह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में रहते हैं।’

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परिवार ने हकीमुद्दीन और सलीम के सेना के पहचान पत्र और पेंशन डॉक्यूमेंट भी शेयर किए। अहमद ने बताया कि उनके चाचा 1961 में पुणे आ गए थे और उनके बड़े भाई 1978 में यहां आ गए थे, जबकि अहमद खुद 1996 से पुणे में रह रहे हैं। डीसीपी सोमय मुंडे के अनुसार, ‘हमें सूचना मिली थी कि वहां कुछ संदिग्ध अवैध बांग्लादेशी नागरिक हैं, इसलिए हम मौके पर गए। उनके कुछ डॉक्यूमेंटों की जांच की गई और कुछ को पुलिस स्टेशन लाया गया। देर होने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया और अगली सुबह वापस बुलाया गया। यह रात में किया गया, क्योंकि कभी-कभी इन तलाशी अभियानों में संदिग्ध भाग जाते हैं। जानकारी मिली थी कि उनमें से कुछ असम के थे। उस समय यह बात सच नहीं पाई गई, लेकिन हम अभी भी जांच कर रहे हैं।’ मुंडे ने आगे कहा कि परिवार के इस आरोप की जांच की जा रही है कि बजरंग दल के सदस्यों की भीड़ घर में घुस आई थी।

हमसे सबूत मांगा जा रहा है – अहमद

अहमद ने गुस्सा होकर कहा, ‘हमारा परिवार सीमाओं पर देश की सेवा करता रहा है। तमाम दुश्मनों से लोहा लिया। मेरे चाचा 1971 के युद्ध में घायल हुए थे। यह अफसोस की बात है कि हमने देश के लिए इतना कुछ कुर्बान कर दिया और हमसे सबूत मांगा जा रहा है। पुणे जैसे शांत शहर में, जहां हम 64 सालों से रह रहे हैं, हमने ऐसी बात कभी नहीं सुनी थी।’ उन्होंने आगे कहा, ‘वे 5 साल के बच्चों को रात में जगा रहे हैं, बच्चा खड़ा भी नहीं हो पा रहा था और गिर पड़ा। पुलिस ने हमें रात के 2 बजे थाने क्यों बुलाया? क्या यही सही समय था कि पुलिस हमारे घर आए? क्या हम हिस्ट्रीशीटर हैं, माफिया हैं, या हमारे खिलाफ आतंकवादी टैग, मकोका या टाडा के आरोप हैं कि पुलिस आधी रात को आए।’ विदेश में नाश्ते की टेबल पर चेक राजदूत ने आर्मी चीफ को दी थी खबर