Pending Cases In Court: सुप्रीम कोर्ट के जज डीवाई चंद्रचूड़ (Justice Chandrachud) ने कहा है कि भारत में अदालतों पर मुकदमों का अत्यधिक बोझ है और लंबित मामलों की संख्या के मद्देनजर मध्यस्थता जैसे समाधान तंत्र एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने शुक्रवार (19 अगस्त 2022) को पुणे में इंडियन लॉ सोसाइटी’ में आईएलएस सेंटर फॉर आर्बिट्रेशन एंड मेडिएशन (ILSCA) का उद्घाटन करने के बाद न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ स्मृति व्याख्यान दे रहे थे। गौरतलब है कि इंडियन लॉ सोसाइटी ने अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश किया है। इस दौरान जस्टिस ने कहा कि हम जानते हैं कि भारत में अदालतों पर मुकदमों का अत्यधिक बोझ है।

पेंडिंग मामलों की संख्या में बढ़ोत्तरी: जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च’ द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, 2010 और 2020 के बीच सभी अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में सालाना 2.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।” उन्होंने कहा कि पिछले दो साल में कोरोना महामारी और इसके इंसानों पर पड़े प्रभाव ने पेंडिंग मामलों की पहले से ही चिंताजनक दर को और बढ़ा दिया है।

सुप्रीम कोर्ट में 71,000 मामले लंबित: जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, जिला और तालुका अदालतों में 4.1 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं और विभिन्न उच्च न्यायालयों में लगभग 59 लाख मामले लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा, ‘‘इस समय सुप्रीम कोर्ट में 71,000 मामले लंबित हैं। इस संख्या को देखते हुए, मध्यस्थता जैसे समाधान तंत्र एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं।” उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि मध्यस्थता का इस्तेमाल पूरी दुनिया और निश्चित रूप से भारत में प्रमुखता से बढ़ा है। संसद में हाल ही में मध्यस्थता विधेयक- 2021 पेश किया गया है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘मैं विधेयक के प्रावधानों पर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन प्रावधानों को लेकर विभिन्न हितधारकों की प्रतिक्रिया से यह साफ पता चलता है कि विवाद समाधान के तरीके के रूप में मध्यस्थता को स्वीकार किया जा रहा है।” उन्होंने कहा ​​कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सिंगापुर मध्यस्थता संधि पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाले देशों के समूह में शामिल रहा है। उन्होंने कहा कि सिंगापुर मध्यस्थता संधि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता समझौते को लागू करने की दिशा में सही कदम है।