प्रभात झा

उत्तर प्रदेश में ही नहीं, भारतीय राजनीति में उन्होंने अपना एक अलग जगह बनाई। उन्होंने कभी समाजवाद की चादर को छोड़ा नहीं। वे अखंड प्रवासी थे। जब तक उनका स्वास्थ्य खराब नहीं हुआ वे सहज, सरल, सुलभ रहे।

गरीबों के लिए राजनीति में काम करना कठिन है, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने अपने समय में सिद्ध किया कि गरीबी अभिशाप नहीं, वरदान भी होती है। वे जुनूनी थे। जिस काम को ठानते थे, पूरा करते थे।

मैं स्वदेश समाचार में था। उस समय राम जन्मभूमि आंदोलन की रिपोर्टिंग करने अक्सर अयोध्या जाया करता था। उन्होंने बयान दिया था कि ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता’ और वहां कार सेवकों की हत्याएं हुई थीं। मैंने ग्वालियर लौटते समय लखनऊ में उनका साक्षात्कार किया था और मेरा सवाल उनसे था – आपने कहा था परिंदा पर नहीं मार सकता, फिर यह सब क्या हुआ? उन्होंने तपाक से उत्तर दिया कि मुख्यमंत्री रहते मेरा यही कहना जायज था।

एक और घटना है। जनेश्वर मिश्रा के निधन पर दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। उस समय भारतीय जनता पार्टी की महामंत्री सुषमा स्वराज, राज्य सभा में हमारी नेता भी थीं। उन्होंने पार्टी का राष्ट्रीय सचिव होने के नाते मुझे भेजा। वहां मुलायम सिंह ने मुझे घर पर मिलने को बुलाया। मैं समय लेकर मिला। उन्होंने मेरे बारे में पूछा। इसके बाद उन्होंने जो कहा, उससे मैं चौंक गया।

उन्होंने पूछा, समाजवादी विचारधारा का अध्ययन किया है? मैंने उनसे कहा कि डा राम मनोहर लोहिया की आत्मकथा पढ़ी है। उनकी दो किताबें पढ़ी है। उन्होंने पूछा कि तुम समाजवाद से प्रभावित नहीं हुए? मैंने कहा कि संघ का बाल स्वयंसेवक हूं। विचारधारा धर्म की तरह धारण किया जाता है, कपड़े की तरह बदले नहीं जाते। उन्होंने पीठ ठोंकी और कहा, जहां भी रहो, मेहनत से काम करो।

उनकी दूसरी पंक्ति थी, अमीरों से दूर रहना, गरीबों के करीब रहना। मुलायम सिंह एक-एक कार्यकर्ता को नाम से जानते थे। वे तीन बार मुख्यमंत्री रहे और एक बार देश के रक्षा मंत्री। उनके संबंध सभी से थे। लखनऊ से जब अटल बिहारी वाजपेयी सांसद थे, तो मुलायम सिंह उनसे मिलने लखनऊ सर्किट पहुंच जाते थे। विचारधारा से उनके घोर विरोधी रहे कल्याण सिंह भी एक समय समाजवादी पार्टी में उनके सहयोगी हो गए थे।

एक बार संसद के केंद्रीय कक्ष में उनके साथ बैठा था। वहां रामगोपाल यादव सहित कई नेता बैठे थे। मैंने उनसे पूछा, भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी तक सबसे अच्छे नेता कौन लगे। उन्होंने सबके सामने कहा, नानाजी देशमुख। मुलायम सिंह ने कहा कि मेरा संबंध इतना निकट का था कि चित्रकूट में उनके बनाए दीनदयाल शोध संस्थान में समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अनुमति नानाजी ने दी।

उनकी बेबाकी, स्पष्टता और दूरदर्शिता का अनुपम उदाहरण संसद में उस समय मिला जब वे यह कहने में नहीं चूके कि 2019 में फिर से मोदी आएंगे। अपने विरोधी के बारे में यह कहने का उनमें अदम्य साहस था ’ इटावा के सैफई में उनकी जान बसती थी। आज उसी सैफई में उनका अंतिम संस्कार हुआ है। वे सीख दे गए हैं कि संवेदनशीलता, सहनशीलता, संवेदना और संवाद से दूर रहकर और कार्यकर्ताओं को भूलकर राजनीति नहीं की जा सकती।
(लेखक पूर्व सांसद हैं)