मराठा समुदाय के आरक्षण की लड़ाई तेज होती जा रही है। इसको लेकर आंदोलन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जारांगे-पाटिल (Manoj Jarange Patil) अपनी लड़ाई को मुंबई ले जाने के लिए अड़े हैं। समुदाय का कहना है कि वह आरक्षण के लिए अंतिम सांस तक लड़ेंगे और किसी भी हालत में इससे पीछे नहीं हटेंगे। कार्यकर्ता मुंबई पहुंचकर अपनी मांग पूरी होने तक आजाद मैदान पर भूख हड़ताल पर बैठना चाहते हैं। वह जालना जिले में अपने गांव से पांच दिवसीय मार्च के बाद हजारों समर्थकों के साथ बुधवार को पुणे पहुंचे। हालांकि राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के क्यूरेटिव पेटीशन पर फैसले पर भरोसा है। सुप्रीम कोर्ट से समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ता के लिए क्यूरेटिव पेटीशन ही अंतिम विकल्प है।

मराठा समुदाय से अब तक हो चुके हैं 12 सीएम

मराठा समुदाय अधिकतर कृषि कार्य में लगा है। यह सियासी रूप से प्रभावशाली समुदाय रहा है। 1960 में महाराष्ट्र के बनने से लेकर अब तक इस समुदाय के 12 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। इसमें एकनाथ शिंदे भी शामिल हैं। वह भी मराठा समुदाय से हैं।

नवी मुंबई में आंदोलनकारियों को समझाने में लगे अफसर

सरकारी अधिकारी मनोज जारांगे पाटिल और उनके सहयोगियों से आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से करने और मुंबई नहीं जाने के लिए मना रहे हैं। आंदोलनकारी नेता और समर्थक 26 जनवरी की सुबह नवी मुंबई तक पहुंच चुके थे और वाशी में एक सभा कर रहे थे। वहीं पर राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी उनसे बातचीत करके आगे नहीं बढ़ने के लिए मनाने में लगे हैं। समर्थकों की भारी भीड़ और मुंबई जाने की जिद को देखते हुए सरकार ने वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व में सुरक्षा बल तैनात कर रखे हैं।

2018 में तत्कालीन देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग अधिनियम, 2018 बनाया था। इस कानून ने मराठों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 16% आरक्षण दिया था।

जून 2019 में, जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की बॉम्बे हाई कोर्ट डिवीजन बेंच ने इस अधिनियम को बरकरार रखा, लेकिन फैसला सुनाया कि 16% कोटा “उचित” नहीं है। महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुसार, इसने शिक्षा में कोटा घटाकर 12% और सरकारी नौकरियों में 13% कर दिया। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि “असाधारण परिस्थितियों और असाधारण स्थितियों” को छोड़कर, कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।