देश की संस्कृति की प्रतीक मानी जाने वाली यमुना नदी की सफाई पर पिछले दो दशकों में कई सौ करोड़ रूपये खर्च किये गये लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और अन्य क्षेत्रों में यमुना एक गंदे नाले के रूप में दिखती है। यमुना जिये अभियान के संयोजक मनोज मिश्रा ने बताया कि यमुना एक्शन प्लान प्रथम की अवधि 1993 से 2003 थी और इस अवधि में इस पर कुल 680 करोड़ रुपये खर्च किये गए ।
यमुना एक्शन प्लान द्वितीय साल 2004 के बाद आगे बढ़ाया गया और इसके लिए तय धनराशि 624 करोड़ रुपये थी । जल बोर्ड के खर्च पर कैग रिपोट में 1999 से 2004 में 439 करोड़ रुपये व्यय हुए । यमुना की सफाई पर दिल्ली राज्य औद्योगिकी एवं आधारभूत संरचना विकास निगम :डीएसआईडीसी: ने 147 करोड़ रुपये खर्च किया । इसके बाद भी यमुना किस बदहाली की शिकार है, यह किसी से छिपी नहीं है।
दिल्ली व आसपास के क्षेत्र में नदी की स्थिति के बारे में राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान नागपुर ने अपनी वर्ष 2005 की रिपोर्ट में ही कह दिया था, ऊपर से ताजा पानी न मिलने के कारण नदी बड़े क्षेत्र में मौत की कगार पर पहुंच चुकी है। यमुना संरक्षण कार्यकर्ता उमा राउत ने कहा कि यमुना नदी की सही स्थिति समझने के लिए उसे कई भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग उसके उद्गम स्थल से ताजेवाला इलाके के पास तक का है। यह मुख्य रूप से नदी का पहाड़ी क्षेत्र है। यहां नदी अभी तक साफ है लेकिन बड़े पैमाने पर बांध निर्माण से यहां भी निकट भविष्य में यमुना की स्थिति गिरि व टोंस जैसी सहायक नदियों की तरह बिगड़ सकती है।