देश की राजनीति कब क्या खेल दिखा दे, कोई नहीं बता सकता। इस राजनीति में मुद्दे होते हैं, उन पर गरमाती सियासत रहती है और आरोप-प्रत्यारोप का दौर देखने को मिलता है। पिछले 30 दिनों में तो इस देश ने अचानक से कई बड़े मुद्दों की एक साथ बरसात देख ली है। मणिपुर में भयंकर हिंसा जारी है, टमाटर के दाम ने लोगों को लाल कर रखा है, यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बीजेपी ने सियासी बिसात बिछाई और सबसे बड़ा महाराष्ट्र में सियासी खेला हो गया है। इन मुद्दों ने देश की फिजा को बदलने का काम किया है, वो भी इस तरह से कि इन मुद्दों से सभी का कुछ ना फायदा हुआ है।
महंगाई ने विपक्ष को नया मुद्दा दिया है, यूसीसी ने बीजेपी को 2024 के लिए नेरेटिव सेट करने का अवसर प्रदान कर दिया है, और इसके ऊपर अजित पवार के खेल ने चाचा शरद की सियासत को करारी चोट दी है। मणिपुर क्योंकि पूर्वोत्तर का राज्य है, ऐसे में वहां जारी हिंसा का मुद्दा ‘आया राम गया राम’ वाली श्रेणी में आ सकता है जो कभी सुर्खियों में आता है तो कभी दूसरे मुद्दों के सामने दब सा जाता है। लेकिन यहां बात सबसे पहले मणिपुर हिंसा की ही की जाएगी क्योंकि वहां जारी बवाल ने प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मणिपुर हिंसा
पूर्वोत्तर का ये राज्य कई सालों बाद भयंकर हिंसा का दौर देख रहा है। अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, अभी भी जमीन पर स्थिति विस्फोटक बनी हुई है। इस संघर्ष की शुरुआत 27 अप्रैल को हुई थी जब उस जिम को आग के हवाले कर दिया गया जिसका अगले दिन सीएम बीरेन सिंह उद्घाटन करने वाले थे। वो एक आग उस हिंसा का संकेत थी जो पूरे राज्यो को आने वाले दिनों में अपनी चपेट में लेने वाली थी। ऐसा हुआ भी और अगले ही दिन धारा 144 लगा दी गई और पांच दिन के लिए इंटरनेट सस्पेंड कर दिया गया।
लेकिन इस एक्शन का जमीन पर कोई असर नहीं हुआ, पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच में संघर्ष जारी रहा, हिंसा रोकने के लिए आंसू गैस के गोले तक दाग दिए गए। ऐसे में एक तरफ बल प्रयाोग रहा तो दूसरी तरफ विद्रोह ने हालात खराब किए। इस मणिपुर हिंसा का टर्निंग प्वाइंट तीन मई को देखने को मिला जब राज्य में All Tribal Students Union of Manipur (ATSUM) ने एक बड़ी रैली निकाली। इस रैली में 60 हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। इस बात का विरोध किया जा रहा था कि किसी भी कीमत पर मे मैतई को अनुसूचित जनजाति वाली कैटेगरी में ना डाल दिया जाए। अब उस विरोध प्रदर्शन के दौरान Torbung इलाके में हिंसा भड़क गई। दो लोगों की मौत हुई और 11 गंभीर रूप से घायल हो गए।
एक समय कहा जा रहा था कि इस हिंसा की वजह से मणिपुर सीएम अपने पद से इस्तीफा देने जा रहे हैं, लेकिन कुछ घंटों के अंदर घटनाक्रम ऐसे बदले कि इस्तीफा देने से मना कर दिया गया। वैसे बड़े नेताओं में गृह मंत्री अमित शाह और फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी मणिपुर का दौरा किया।
टमाटर के आसमान छूते भाव
देशभर में टमाटर के दाम में आग लगी हुई है। एक महीने पहले तक टमाटर 5 से 10 रुपये प्रति किलो में मिल रहा था, अब वहीं पेट्रोल के दामों पर मिल रहा है। दिल्ली में टमाटर के दाम 140 रुपये प्रति किलो पहुंच चुके हैं। चेन्नई में टमाटर का रेट 117 रुपये किलो चल रहा है। मायानगरी मुंबई की बात करें तो वहां पर टमाटर के दाम 110 रुपये तक पहुंच गए हैं। बेंगलुरू में टमाटर के दाम 100 रुपये चल रहे हैं।
अब इस समय अचानक से बढ़े टमाटर के दाम के कई कारण माने जा रहे हैं। एक तो वर्तमान में सिर्फ शिमला और बेंगलुरू से पूरे देश में टमाटर सप्लाई किया जा रहा है, इस वजह से भी रेट में ये बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। इसके अलावा बारिश ने भी सप्लाई चेन पर ब्रेक लगा दिया है और टमाटर का दाम आसमान छू रहा है। सरकार का कहना है कि ये मौसमी बदलाव की वजह से दाम बढ़ा है, ऐसे में खुद ही रेट काबू में आ जाएंगे। लेकिन महंगाई देश में एक ऐसा मुद्दा है जिसने सरकार बनाई भी हैं और गिराई भी हैं।
2014 में जब सत्ता परिवर्तन हुआ था, यूपीए को उखाड़ फेंका गया था, उस समय इस महंगाई ने बीजेपी प्रचार को काफी बल दिया था। अब 2024 का चुनाव करीब है, ऐसे में कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ इस महंगाई को ही एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर मंथन
देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर चर्चा तो कई मौकों पर हो चुकी है, लेकिन पिछले एक महीने में इस मुद्दे ने ऐसा जोर पकड़ा है कि 2024 का सबसे बड़ा एजेंडा बताया जा रहा है, खबर तो ये भी है कि इस मॉनसून सत्र में सरकार एक बिल पेश कर सकती है। उत्तराखंड में तो शायद कुछ समय में यूसीसी लागू भी कर दिया जाए। एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी तरफ से ड्रॉफ्ट भी फाइनल कर दिया है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड को हिंदी में समान नागरिक संहिता कानून कहते हैं। अपने नाम के मुताबिक अगर ये किसी भी देश में लागू हो जाए तो उस स्थिति में सभी के लिए समान कानून रहेंगे। अभी भारत में जितने धर्म, उनके उतने कानून रहते हैं। कई ऐसे कानून हैं जो सिर्फ मुस्लिम समुदाय पर लागू होते हैं, ऐसे ही हिंदुओं के भी कुछ कानून चलते हैं। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड के आने से ये सब खत्म हो जाता है, जाति-धर्म से ऊपर उठकर सभी के लिए समान कानून बन जाता है।
अब इस मुद्दे को जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सभाओं में उठाना शुरू कर दिया है, मंशा साफ है कि 2024 का चुनाव इस पर लड़ा जाएगा। इसे राजनीतिक जानकार एक गूगली की तरह भी देख रहे हैं जिसका विपक्ष भी खुलकर विरोध नहीं कर सकता है।
अजित पवार का खेल और एनसीपी में फूट
जून का महीना अगर सियासत को गरमाने वाला रहा तो जुलाई ने शुरुआत में ही सबसे बड़ा सियासी बम फोड़ दिया है। अजित पवार ने एक झटके में जिस तरह से एनसीपी में दो फाड़ की, जिस तरह से उनकी तरफ से एनडीए से हाथ मिला लिया गया, ये बताने के लिए काफी था शरद पवार को उनके करियर का सबसे बड़ा झटका दिया गया है। अभी इस समय अजित के पास 32 से ज्यादा विधायकों का समर्थन बताया जा रहा है, ऐसे में वे थोड़ा बहुत जुगाड़ कर खुद को दल बदल कानून की कार्रवाई से बचा सकते हैं। उस स्थिति में एनसीपी पर उनका दावा भी मजबूत माना जाएगा।
वहीं दूसरी तरफ अजित के इस एक खेल ने शिंदे गुट को नाराज कर दिया है। ये नाराजगी इसलिए है क्योंकि अजित के आने से मंत्रालयों का जो बंटवारा होने वाला था, उसमें शिंदे गुट की बारगेनिंग पावर कम हो गई। बीजेपी की बात करें तो इस एक खेल ने उसे और मजबूत स्थिति में खड़ा कर दिया है। अगर शिंदे गुट के विधायकों पर अयोग्यता वाली कार्रवाई हो जाती है, उस स्थिति में अजित गुट के आने से बहुमत के आंकड़े तक फिर पहुंचा जा सकता है, यानी कि सरकार गिरने का खतरा कम हो जाएगा।