पश्चिम बंगाल सरकार ने सीबीआई को राज्य में छापे मारने या जांच करने के लिए दी गयी ‘सामान्य रजामंदी’ शुक्रवार (16 नवंबर, 2018) को वापस ले ली। राज्य सचिवालय के एक शीर्ष अधिकारी ने पीटीआई के ये जानकारी दी। पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले से ठीक पहले आंध्र प्रदेश सरकार ने भी यही कदम उठाया था।
बता दें कि पश्चिम बंगाल में साल 1989 में तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने सीबीआई को आम सहमति दी थी। इस सहमति में ये तय हुआ था कि सीबीआई राज्य सरकार से कोई विशेष अनुमति लिए बिना भी राज्य में जांच या छापेमारी कर सकती है।
एक अधिकारी ने नाम नहीं जाहिर होने की शर्त पर पीटीआई से कहा कि शुक्रवार को जारी आदेश के बाद सीबीआई को अब से अदालत के आदेश के अलावा अन्य मामलों में किसी तरह की जांच करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान कानून के तहत काम करती है।
बता दें कि पश्चिम बंगाल से पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने भी सीबीआई को बिना अनुमति राज्य में छापेमारी करने का अधिकार शून्य कर दिया था। आंध्र प्रदेश सरकार की घोषणा के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनका समर्थन किया था। अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की एक बैठक को संबोधित करते हुए सीएम ममता बनर्जी ने कहा, ‘‘चंद्रबाबू नायडू ने बिल्कुल सही किया। भाजपा अपने राजनीतिक हितों और प्रतिशोध के लिए सीबीआई तथा अन्य एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है।’’
इस ताजा स्थिति से, अधिकारियों को यकीन है कि सारदा, नारदा और रोजवैली पोंजी स्कीम घोटाले की जांच कर रही सीबीआई को फर्क नहीं पड़ेगा और न ही उनकी जांच प्रभावित होगी। इसके पीछे वजह ये है कि ये सभी जांच सीबीआई कोर्ट के आदेश के आधार पर कर रही है। हालांकि अन्य मामलों में जहां कोर्ट के आदेश नहीं हैं, सीबीआई को जांच करने के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता पड़ेगी।